बजट 2025-26 पर ट्रेड यूनियनों का तीखा हमला: श्रमिक, किसान, युवा और मध्यम वर्ग के लिए निराशाजनक
नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए बजट 2025-26 पर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र क्षेत्रीय संघों/संघों के मंच ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका आरोप है कि यह बजट पूरी तरह से कॉरपोरेट जगत के हितों को साधता है, जबकि श्रमिकों, किसानों, बेरोज़गार युवाओं, छात्रों और महिलाओं की उम्मीदों पर पानी फेरता है।
यूनियनों ने इस बजट को आम जनता के खिलाफ बताते हुए 5 फरवरी को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।
कॉरपोरेट्स को फायदा, आम जनता को निराशा
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि बजट में फिर से बड़े उद्योगपतियों और कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने पर ज़ोर दिया गया है। वहीं, अभूतपूर्व बेरोज़गारी, महंगाई, और कृषि संकट को नज़रअंदाज़ किया गया है।
महत्वपूर्ण बिंदु:-
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं।
बेरोज़गारी दर में गिरावट लाने के लिए सार्थक योजना का अभाव।
निजीकरण की नीतियां तेज़ी से आगे बढ़ाई जा रही हैं, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और बुनियादी ढांचे को नुकसान होगा।
शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र को बेहद कम बजट दिया गया है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग प्रभावित होंगे।
बीमा में 100% FDI और निजीकरण की आलोचना
बजट में बीमा क्षेत्र में 100% विदेशी निवेश (FDI) की घोषणा की गई है, जिसे ट्रेड यूनियनों ने आम लोगों और देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक बताया है। इसके अलावा, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) के ज़रिए सार्वजनिक परिसंपत्तियों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया तेज़ कर दी गई है। यूनियनों का कहना है कि सरकार की ये नीतियां आर्थिक असमानताओं को और बढ़ावा देंगी।
आंकड़े जो चिंता बढ़ाते हैं!
2017-18 से 2023-24 के बीच स्व-नियोजित पुरुषों की आमदनी में 9.1% की गिरावट और महिलाओं की आय में 32% की गिरावट दर्ज की गई है।
वेतनभोगी कर्मचारियों में पुरुषों के वेतन में 6.4% और महिलाओं के वेतन में 12.5% की कमी आई है। इस अवधि में कॉरपोरेट्स के मुनाफे में 22.3% की बढ़ोतरी हुई है।
यह दर्शाता है कि आम लोगों की आय घटी है, जबकि बड़े कारोबारियों के मुनाफे में तेज़ी आई है।
शिक्षा और स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़
बजट में शिक्षा के लिए सिर्फ 2.6% और स्वास्थ्य के लिए मात्र 1.9% बजट आवंटित किया गया है, जो देश की बढ़ती जरूरतों के मुकाबले बेहद कम है।
इसके अलावा, ICDS, ASHA और मिड-डे मील जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के बजट में भी कटौती की गई है, जिससे इनसे जुड़े लाभार्थियों और कार्यकर्ताओं को नुकसान होगा।
मध्यम वर्ग के लिए भी कोई बड़ी राहत नहीं
सरकार ने आयकर में मामूली छूट दी है, लेकिन मुद्रास्फीति, महंगी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं, और ज़रूरी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी ने इस राहत के असर को खत्म कर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह छूट महज़ आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए दी गई है, जिसका मध्यम वर्ग पर कोई बड़ा सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
रोज़गार के अवसर घटे, घोषणाएं बढ़ीं!
बजट में सरकार ने कई नई योजनाओं की घोषणाएं की हैं, लेकिन ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि ये योजनाएं केवल कागज़ों पर ही सीमित रहेंगी। मनरेगा (MGNREGA) के बजट में बढ़ोतरी की मांग को भी नज़रअंदाज़ किया गया है, जबकि ग्रामीण इलाकों में रोज़गार की भारी कमी है।
ट्रेड यूनियनों का आह्वान: 5 फरवरी को करें राष्ट्रव्यापी विरोध
सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुए ट्रेड यूनियनों ने देशभर के श्रमिकों, किसानों, छात्रों और आम जनता से 5 फरवरी 2025 को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की है।
इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC जैसे प्रमुख यूनियन कर रहे हैं।
बजट 2025-26 ने जहां कॉरपोरेट्स को राहत दी है, वहीं आम जनता के लिए चुनौतियों का अंबार खड़ा कर दिया है। ट्रेड यूनियनों का कहना है कि यह बजट आर्थिक असमानता को बढ़ाएगा और आम लोगों की जीवन गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
अब देखना यह है कि सरकार इस विरोध प्रदर्शन के दबाव में कोई बदलाव करती है या नहीं।
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