नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। विदेश मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में स्पष्ट किया कि भारत ने 1963 में हुए चीन-पाकिस्तान तथाकथित “सीमा समझौते” को कभी मान्यता नहीं दी है। यह समझौता पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा की गई भारतीय भूमि, शक्सगाम घाटी, को चीन को सौंपने से संबंधित है। मंत्रालय ने इसे पूरी तरह से अवैध और भारत की संप्रभुता का उल्लंघन बताया।
भारत के अधिकार और क्षेत्र
आरटीआई के अनुसार, इस तथाकथित समझौते के तहत, पाकिस्तान ने 5,180 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र चीन को सौंपा था, जो कि जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख का हिस्सा है। सरकार ने दोहराया कि लद्दाख का यह क्षेत्र हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा। लद्दाख का कुल क्षेत्रफल लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर है।
विदेश मंत्रालय ने बताया कि इस मुद्दे पर कई बार चीन को सूचित किया गया है और संसद में इस विषय पर प्रश्नों के माध्यम से जानकारी दी गई है। सरकार का यह रुख स्पष्ट है कि भारत के क्षेत्र पर किसी भी प्रकार के अवैध कब्जे को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
जानकारी की सीमा
आरटीआई के उत्तर में कहा गया कि मंत्रालय के पास इस मुद्दे पर उपलब्ध जानकारी का विवरण सीमित है। आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत केवल वही जानकारी प्रदान की जा सकती है जो रिकॉर्ड में उपलब्ध है और संबंधित प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में है।
अपील का विकल्प
यदि आवेदक इस उत्तर से असंतुष्ट हैं, तो उन्हें एक महीने के भीतर विदेश मंत्रालय के अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील करने का विकल्प दिया गया है।
इस उत्तर से यह स्पष्ट होता है कि भारत अपनी संप्रभुता के प्रति कितना संवेदनशील और सशक्त है। चीन और पाकिस्तान के बीच हुए इस कथित समझौते पर भारत का स्पष्ट विरोध यह दर्शाता है कि क्षेत्रीय अखंडता से समझौता करने का कोई सवाल नहीं है। भारतीय नागरिकों के लिए यह आश्वासन का प्रतीक है कि सरकार इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपने अधिकारों का पूरी दृढ़ता से पक्ष लेती रहेगी।
(इस रिपोर्ट का आधार आरटीआई से प्राप्त जानकारी है, जिसमें सरकार की स्थिति और रुख को स्पष्ट किया गया है।)
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