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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
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वनाधिकार के लिए अभियान: आदिवासी और परंपरागत निवासियों के लिए न्याय की पहल

पखांजूर में वनाधिकार संघर्ष मंच का गठन, वनभूमि पट्टों के लिए तेज होगा आंदोलन

उत्तर बस्तर कांकेर (पब्लिक फोरम)। पखांजूर क्षेत्र में वनभूमि पर काबिज आदिवासी और परंपरागत निवासियों को उनके कानूनी अधिकार दिलाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया है। घोड़ागांव पंचायत के आश्रित गांव मरकाचुआ में आयोजित बैठक में वनाधिकार संघर्ष मंच का गठन करते हुए वनभूमि पट्टा वितरण अभियान चलाने का फैसला किया गया। मंच के संरक्षक महेश्वर शर्मा ने प्रेस बयान जारी कर इस अभियान की जानकारी दी।

वनाधिकार कानून और वर्तमान स्थिति

संरक्षक महेश्वर शर्मा ने बताया कि 2006 में वामपंथी दलों के दबाव में वनाधिकार कानून पारित किया गया था। यह कानून आदिवासियों और अन्य परंपरागत निवासियों को उनकी वनभूमि का अधिकार दिलाने के लिए तैयार किया गया था। लेकिन आज, लगभग 18 साल बाद भी, यह कानून धरातल पर पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया है।
अभी भी हजारों आदिवासी और परंपरागत निवासी वनभूमि पर दशकों से काबिज होने के बावजूद वनाधिकार पत्रक से वंचित हैं।

सरकार पर आरोप और नीतियों की आलोचना

बैठक में वामपंथी विचारक सुखरंजन नंदी ने केंद्र और राज्य सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा की डबल इंजन सरकारें आदिवासियों के कानूनी अधिकारों का खुलेआम हनन कर रही हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारें जंगल की जमीन को उद्योगपतियों और खनन कंपनियों के हाथों बेच रही हैं, जबकि वनभूमि पर वर्षों से बसे हुए लोगों को उनका हक देने में असफल रही हैं।

श्री नंदी ने कहा कि हजारों वनाधिकार आवेदन प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हैं। न तो इन आवेदनों पर समयबद्ध निर्णय लिया जा रहा है और न ही आवेदकों को उनकी आवेदन स्थिति की जानकारी मिल रही है।

गैर-आदिवासियों के अधिकार पर भ्रम
सुखरंजन नंदी ने यह भी स्पष्ट किया कि वनाधिकार कानून केवल आदिवासियों तक सीमित नहीं है। कानून के तहत वे गैर-आदिवासी भी पात्र हैं, जो कम से कम 75 वर्षों या तीन पीढ़ियों से वनभूमि पर काबिज हैं।
यह धारणा कि केवल आदिवासी ही आवेदन कर सकते हैं, पूरी तरह गलत है। उन्होंने इस भ्रम को दूर करते हुए पूरे क्षेत्र में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

बैठक के दौरान सर्वसम्मति से वनाधिकार संघर्ष मंच का गठन किया गया। इसके तहत निम्नलिखित पदाधिकारियों को चुना गया।
संरक्षक: महेश्वर शर्मा
अध्यक्ष: छोटेलाल
उपाध्यक्ष: सुरेश कुमार, हृदय राम, ईश्वर रजक
सचिव: खमेश शोरी
सहसचिव: तुलेश साहू, रमेश नरेटी
कोषाध्यक्ष: धनराज टांडिया
उप-कोषाध्यक्ष: बीरबल बेसरा

मंच की 25 सदस्यीय कार्यकारिणी का गठन किया गया, जिसमें प्रमुख नामों में देवलाल नेताम, रामलाल कोमरा, श्यामलाल यादव, विश्वेश्वर जैन, और राजू राम कावड़े शामिल हैं।
बैठक में तय किया गया कि पूरे पखांजूर क्षेत्र में वनाधिकार पत्रक वितरण के लिए सघन अभियान चलाया जाएगा। मंच का उद्देश्य न केवल वनभूमि पर काबिज लोगों को उनका हक दिलाना है, बल्कि वनभूमि अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना भी है।

बैठक में सैकड़ों लोगों की भागीदारी इस बात का संकेत है कि यह मुद्दा क्षेत्र के निवासियों के लिए कितना महत्वपूर्ण है। सभा में महिलाओं और युवाओं की सक्रियता ने इस आंदोलन को और मजबूती दी है।
यह अभियान वनभूमि पर काबिज लोगों को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वनाधिकार संघर्ष मंच का गठन और सघन अभियान की घोषणा क्षेत्र के आदिवासी और परंपरागत निवासियों को एक नई उम्मीद दे रहा है। अब देखना यह है कि यह आंदोलन प्रशासनिक उपेक्षा और राजनीतिक उदासीनता को कितनी प्रभावी चुनौती दे पाता है।

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