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मंगलवार, फ़रवरी 4, 2025
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बालको ठेका श्रमिकों का संघर्ष: भेदभाव और प्रबंधन की नीतियों के खिलाफ धरना प्रदर्शन

कोरबा/बालकोनगर (पब्लिक फोरम)। बालको संविदा मजदूर संघ के नेतृत्व में ठेका श्रमिकों और सुरक्षा कर्मियों ने बालको प्रबंधन के भेदभावपूर्ण रवैये और अड़ियल नीतियों के खिलाफ मजबूरन धरना-प्रदर्शन किया। संघ के अध्यक्ष कंचन दास और महामंत्री हेतराम कर्ष के नेतृत्व में यह आंदोलन श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनके सम्मान की बहाली के लिए किया जा रहा है।
बालको संविदा मजदूर संघ ने समय-समय पर श्रमिकों और सुरक्षा कर्मियों की विभिन्न मांगों को लेकर बालको प्रबंधन को लिखित ज्ञापन सौंपे थे। इसके अलावा प्रत्यक्ष संवाद के जरिए समाधान की अपील भी की गई। बावजूद इसके, प्रबंधन ने लगातार उपेक्षा और तानाशाही रवैया अपनाया। नतीजतन, संघ को चरणबद्ध तरीके से आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

संघ की प्रमुख मांगें
संघ ने श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए चार प्रमुख मांगें उठाईं:
1. कार्यालय भवन की व्यवस्था: संगठन के सुचारू संचालन के लिए बालको कॉलोनी में एक कार्यालय भवन दिया जाए।
2. भेदभाव का अंत: ठेका श्रमिकों और सुरक्षा कर्मियों के साथ हो रहे भेदभावपूर्ण रवैये को समाप्त किया जाए।
3. एलटीएस में समावेश: जो श्रमिक अभी तक एलटीएस (लॉन्ग टर्म सेटेलमेंट) के लाभ से वंचित हैं, उन्हें इस योजना में शामिल किया जाए।
4. वेतन पर्ची में पारदर्शिता: एलटीएस का लाभ पाने वाले श्रमिकों की वेतन पर्ची में स्पष्ट विवरण दिया जाए और सही वेतन पर्ची उपलब्ध कराई जाए।

बालको संविदा मजदूर संघ ने प्रबंधन को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर उनकी मांगों पर जल्द निर्णय नहीं लिया गया, तो आंदोलन को और भी व्यापक स्तर पर किया जाएगा। संघ ने यह साफ कर दिया है कि उनका संघर्ष सिर्फ श्रमिकों के अधिकारों और सम्मान की बहाली के लिए है।
अध्यक्ष कंचन दास ने कहा, “संगठन किसी भी तरह के अन्याय और तानाशाही को बर्दाश्त नहीं करेगा। श्रमिकों के अधिकारों के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा।”

यह धरना केवल एक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि उन श्रमिकों के दर्द और संघर्ष की कहानी है, जो अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। ठेका श्रमिक और सुरक्षा कर्मी अपनी आजीविका के लिए पूरी मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें बराबरी का सम्मान और सुविधाएं नहीं मिलतीं।
संविधान का पहला अधिकार ‘समानता’ यहां सवालों के घेरे में है। क्या प्रबंधन इन मजदूरों की पीड़ा को सुनकर न्याय करेगा या यह संघर्ष आगे बढ़ेगा? यह देखने वाली बात होगी।

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