कांकेर (पब्लिक फोरम)। नगर निकायों में कार्यरत प्लेसमेंट कर्मचारियों का शोषण थमने का नाम नहीं ले रहा है। विगत 25 दिनों से अस्थायी कर्मचारी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। मजदूर नेताओं नजीब कुरैशी और सुखरंजन नंदी ने पत्रकार वार्ता में आरोप लगाया कि सरकार की प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से कर्मचारियों का शोषण हो रहा है। उन्होंने मांग की कि सरकार इन कर्मचारियों को नगर निकाय के स्थायी कर्मचारी घोषित करे।
कर्मचारियों को नहीं मिल रहा अधिकार
तथाकथित प्लेसमेंट कर्मचारियों की नियुक्ति नगर पालिका या पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीएमओ) के निर्देश पर की जाती है। उनकी उपस्थिति का रिकॉर्ड नगर निकाय के हाजिरी रजिस्टर या ऐप में दर्ज होता है। यह स्पष्ट करता है कि इन कर्मचारियों को हटाने का अधिकार भी सीएमओ के पास है, न कि प्लेसमेंट एजेंसी के।
प्लेसमेंट एजेंसी केवल कागजों पर मौजूद है और जमीनी स्तर पर इन कर्मचारियों की नियुक्ति में उसकी कोई भूमिका नहीं है। यह प्रक्रिया केवल सरकारी धन को प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से बर्बाद करने और कर्मचारियों का शोषण करने के लिए अपनाई गई है।
प्लेसमेंट नीति के पीछे का सच
सरकार का तर्क है कि प्लेसमेंट एजेंसियां मितव्ययता के लिए नियुक्त की गई हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि एजेंसियां कर्मचारियों के वेतन का 25-31% हिस्सा सर्विस चार्ज के रूप में वसूलती हैं। इस कारण सरकार का वित्तीय भार बढ़ता है, जो जनता के धन की बर्बादी है। दूसरी ओर, कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिलता।
श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन
प्लेसमेंट एजेंसी और नगर निकाय के अधिकारियों की मिलीभगत से श्रम कानूनों का उल्लंघन हो रहा है:
भविष्य निधि जमा नहीं होती: 1997 से कार्यरत कर्मचारियों के भविष्य निधि खातों में नियमित अंशदान नहीं किया गया। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि कर्मचारियों को पेंशन के अधिकार से भी वंचित कर सकता है।
ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं: श्रम कानून के अनुसार, कर्मचारियों को सेवा समाप्ति पर ग्रेच्युटी मिलनी चाहिए। लेकिन प्लेसमेंट एजेंसियों की प्रक्रिया के कारण यह लाभ कर्मचारियों को नहीं मिलता।
ईएसआई का अंशदान नहीं जमा: कर्मचारी और उनके परिवार को मुफ्त चिकित्सा सुविधा से भी वंचित रखा गया है।
देर से होता है वेतन भुगतान
श्रम कानून के अनुसार, प्रत्येक माह की 7 तारीख तक वेतन का भुगतान होना चाहिए। लेकिन प्लेसमेंट कर्मचारियों को 25-26 दिनों की देरी से वेतन मिलता है। इस देरी के बावजूद, कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती।
सरकार और एजेंसी के बीच संबंध पर सवाल
मजदूर नेताओं ने सवाल उठाया कि सरकार और प्लेसमेंट एजेंसी के बीच ऐसा क्या रिश्ता है, जो कर्मचारियों के अधिकारों की अनदेखी की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर एजेंसियां मोटी कमाई कर रही हैं।
कोरोना काल में निभाई थी अहम भूमिका
कोरोना महामारी के दौरान ये कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर नागरिकों की सेवा में लगे रहे। बावजूद इसके, आज उन्हें उपेक्षित कर दिया गया है।
कर्मचारियों का कहना है कि उनका उद्देश्य नागरिकों को परेशान करना नहीं है। वे केवल जीने लायक सम्मानजनक वेतन, श्रम कानूनों का पालन और दोषियों पर कानूनी कार्रवाई चाहते हैं।
कर्मचारियों ने जिला प्रशासन से इस गतिरोध को समाप्त करने की अपील की है। उन्होंने मांग की है कि उनकी समस्याओं का शीघ्र समाधान कर उन्हें काम पर लौटने का अवसर दिया जाए।
सरकार और प्लेसमेंट एजेंसियों की नीतियों ने कर्मचारियों को असहाय बना दिया है। श्रम कानूनों की अनदेखी और प्लेसमेंट नीति के नाम पर भ्रष्टाचार ने सवाल खड़े कर दिए हैं। अब जरूरत है कि सरकार इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाए और कर्मचारियों के हक को सुरक्षित करे।
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