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रविवार, जुलाई 27, 2025
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सरकारी जमीन पर फर्जीवाड़ा: 80 एकड़ भूमि के नाम पर 20 लाख का लोन, कलेक्टर ने दिए FIR के निर्देश

बिलासपुर (पब्लिक फोरम)। तखतपुर ब्लॉक के ग्राम पौड़ी में 80 एकड़ सरकारी जमीन को फर्जी तरीके से चार निजी व्यक्तियों के नाम दर्ज कर, भाटापारा स्थित आईडीएफसी फर्स्ट बैंक से 20 लाख रुपये का लोन लेने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस फर्जीवाड़े की जांच के बाद कलेक्टर अवनीश शरण ने दोषी पटवारी, उनके सहयोगी और बैंक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं।

कैसे हुआ यह फर्जीवाड़ा?

ग्राम पौड़ी के पटवारी
राजकुमार सवैया ने भुईयां पोर्टल पर सरकारी जमीन की फर्जी प्रविष्टि कर, इसे पांच अलग-अलग खसरा नंबरों में दर्ज किया। इन खसरा नंबरों में न केवल जमीन मौजूद नहीं थी, बल्कि इसे निजी व्यक्तियों के नाम पर चढ़ा दिया गया।
जांच में पाया गया कि 17.5 एकड़ जमीन को गिरवी दिखाकर आईडीएफसी फर्स्ट बैंक से 20 लाख रुपये का लोन लिया गया। हैरानी की बात यह है कि बैंक ने बिना जरूरी दस्तावेजों की जांच किए यह लोन स्वीकृत कर दिया।

जांच रिपोर्ट में क्या आया?
तखतपुर की एसडीएम ज्योति पटेल की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पटवारी राजकुमार सवैया, उनके सहयोगी सतवंत टंडन और बैंक अधिकारियों की इस फर्जीवाड़े में संलिप्तता थी। खसरा और रकबा की फर्जी प्रविष्टियां दर्ज कर बैंक को गुमराह किया गया।
इसके बाद, जब फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ, तो भुईयां पोर्टल से जमीन की प्रविष्टियां हटा दी गईं, ताकि सबूत न बचें। कलेक्टर ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए बैंक प्रबंधन को भी जिम्मेदार ठहराया और दस्तावेजों की पुनः जांच व सुधारात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए।

कलेक्टर अवनीश शरण ने बैंक प्रबंधन को निर्देश दिया है कि लोन से जुड़े सभी दस्तावेजों की समीक्षा की जाए और जांच की रिपोर्ट बिलासपुर प्रशासन को सौंपी जाए। इसके साथ ही, दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करने के आदेश दिए गए हैं।

बैंक प्रबंधन की भूमिका सवालों के घेरे में
इस मामले में बैंक प्रबंधन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। जमीन के स्वामित्व से संबंधित दस्तावेजों की जांच किए बिना लोन स्वीकृत करना बैंक की बड़ी चूक है। यह न केवल वित्तीय नियमों का उल्लंघन है, बल्कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला कदम भी है।
यह घटना सरकारी संपत्तियों और वित्तीय संस्थानों की लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है। ऐसे मामलों में न केवल दोषियों को सजा मिलनी चाहिए, बल्कि प्रशासन को इस तरह के फर्जीवाड़े रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र लागू करना चाहिए।

जनता के लिए सबक
यह घटना नागरिकों और सरकारी अधिकारियों दोनों के लिए एक चेतावनी है कि सरकारी संपत्तियों और वित्तीय प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाए। ऐसे मामलों से समाज में भरोसा टूटता है, और जरूरत है कि न्याय प्रणाली इस पर सख्त रुख अपनाए।
इस प्रकरण ने प्रशासन, बैंकिंग प्रणाली और भ्रष्टाचार पर एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। आगे की कार्रवाई पर पूरे जिले की नजरें टिकी हैं।

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