back to top
बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
होमझारखंडझारखंड विधानसभा चुनाव 2024: आदिवासी अस्मिता ने भाजपा के सांप्रदायिक एजेंडे को...

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024: आदिवासी अस्मिता ने भाजपा के सांप्रदायिक एजेंडे को ठुकराया

रांची (पब्लिक फोरम)। झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 ने एक ऐतिहासिक संदेश दिया है। राज्य के आदिवासी समुदाय ने भाजपा के विभाजनकारी और सांप्रदायिक राजनीति के एजेंडे को ठुकराते हुए महागठबंधन को भारी बहुमत से विजयी बनाया। इस चुनाव परिणाम ने न केवल राज्य की राजनीतिक दिशा को नया मोड़ दिया है, बल्कि आदिवासी अस्मिता और झारखंडी पहचान को मजबूती से स्थापित किया है।

राज्य की 81 विधानसभा सीटों में महागठबंधन ने 56 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने 34, कांग्रेस ने 16, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने 4 और भाकपा (माले) ने 2 सीटें जीतीं। दूसरी ओर, भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए मात्र 24 सीटों पर सिमट गया।

चौंकाने वाली बात यह रही कि आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में भाजपा को केवल एक सीट मिली, वह भी पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की, जिन्होंने चुनाव से पहले झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामा था। इस परिदृश्य ने स्पष्ट किया कि झारखंड के आदिवासी समुदाय ने भाजपा के सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति को खारिज कर दिया।चुनाव से पहले भाजपा ने धार्मिक ध्रुवीकरण को अपना मुख्य चुनावी हथियार बनाया। बांग्लादेशी घुसपैठ, लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे मुद्दों को उछालकर भाजपा ने आदिवासी समुदाय को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। लेकिन यह रणनीति पूरी तरह विफल रही। आदिवासी समुदाय ने भाजपा के इन मुद्दों को नकारते हुए विकास, जनकल्याण और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी।

महागठबंधन की जीत: क्या कहता है परिणाम?
महागठबंधन की अप्रत्याशित जीत ने स्पष्ट किया कि राज्य की जनता भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे के खिलाफ है। इस जीत ने झारखंड में भाजपा के लिए यह संदेश दिया कि सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति से झारखंडी अस्मिता को नहीं दबाया जा सकता।

चुनाव आयोग पर उठे सवाल
इस चुनाव में सबसे गंभीर मुद्दा चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठा। भाजपा के सांप्रदायिक बयानों और सोशल मीडिया पर फैलाई गई नफरत के खिलाफ शिकायतों के बावजूद आयोग की निष्क्रियता ने जनता को निराश किया। केवल चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में एक सांप्रदायिक विज्ञापन पर मामूली कार्रवाई की गई, जो आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।

जनता की प्राथमिकताएं और आदिवासी अस्मिता
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में झारखंड की जनता ने भाजपा की नीतियों को नकारते हुए राज्य के विकास और कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता दी। सामाजिक कार्यकर्ता रजनी मुर्मू ने भाजपा के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “अगर भाजपा को वास्तव में आदिवासी महिलाओं की चिंता होती, तो वह उनके लिए योजनाएं लाती। लेकिन उनका उद्देश्य केवल आदिवासी महिलाओं को बदनाम करना और उनकी प्रगति को रोकना था।”

भविष्य की चुनौतियां
अब सवाल उठता है कि महागठबंधन की सरकार इस भारी जीत के बाद जनता की अपेक्षाओं पर कैसे खरी उतरेगी। झारखंड की जनता ने इस बार विकास, जनकल्याण और सामाजिक न्याय के पक्ष में वोट दिया है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी योजनाएं और नीतियां जनता की आकांक्षाओं को पूरा करें।

चुनाव से पहले भाजपा ने धार्मिक ध्रुवीकरण को अपना मुख्य चुनावी हथियार बनाया। बांग्लादेशी घुसपैठ, लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे मुद्दों को उछालकर भाजपा ने आदिवासी समुदाय को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। लेकिन यह रणनीति पूरी तरह विफल रही। आदिवासी समुदाय ने भाजपा के इन मुद्दों को नकारते हुए विकास, जनकल्याण और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी।

“झारखंड ने इस चुनाव के माध्यम से पूरे देश को संदेश दिया है कि विकास, सामाजिक न्याय और समरसता से ही लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं।”

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments