भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जो डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि अब केवल बाल यौन शोषण सामग्री को देखना या डाउनलोड करना भी एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आएगा। यह फैसला न सिर्फ कानूनी प्रक्रिया में स्पष्टता लाता है, बल्कि समाज में बच्चों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता का भी प्रतीक है।
फैसले की मुख्य बातें
1. बाल यौन शोषण सामग्री देखना या डाउनलोड करना: अब POCSO (बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम) और IT अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध होगा।
2. ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का स्थान: अब इसे “बाल यौन शोषण और दुरुपयोग सामग्री” (CSEAM) के नाम से संबोधित किया जाएगा।
3. केंद्र सरकार से अध्यादेश की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में तुरंत अध्यादेश लाने का आग्रह किया है।
4. संसद से POCSO अधिनियम में संशोधन की सिफारिश: अदालत ने संसद से POCSO अधिनियम में आवश्यक बदलाव करने का सुझाव दिया है, ताकि इसे अधिक सख्त और प्रभावी बनाया जा सके।
यह निर्णय मद्रास उच्च न्यायालय के उस पूर्व फैसले को खारिज करता है, जिसमें कहा गया था कि केवल बाल यौन शोषण सामग्री को देखना या डाउनलोड करना अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि इसे प्रसारित न किया जाए। इस नए फैसले ने अब इसे स्पष्ट रूप से दंडनीय अपराध घोषित कर दिया है, जिससे बाल सुरक्षा को लेकर एक बड़ा कदम उठाया गया है।
विशेषज्ञों की राय
बाल अधिकार कार्यकर्ता रीना मिश्रा का मानना है, “यह फैसला बच्चों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा, बल्कि समाज में बच्चों के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता को भी बढ़ाएगा।”
साइबर कानून विशेषज्ञ अमित शर्मा ने इस फैसले की सराहना करते हुए कहा, “तकनीकी प्रगति के साथ-साथ बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए यह निर्णय आवश्यक था। यह भविष्य में ऑनलाइन बाल शोषण की घटनाओं पर अंकुश लगाने में मदद करेगा।”
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी इस मुद्दे पर सख्त कानून बनाए हैं। वहां “प्रिवेंशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स एक्ट” (PECA) 2016 के तहत, बाल यौन शोषण सामग्री के मामलों में 7 साल तक की सजा और 50 लाख पाकिस्तानी रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यह स्पष्ट करता है कि इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए पड़ोसी देशों ने भी कड़े कदम उठाए हैं।
भारत में मौजूदा कानूनी ढांचा
POCSO अधिनियम: बाल यौन शोषण से संबंधित अपराधों के लिए मुख्य कानून।
IT अधिनियम 2000: इस अधिनियम की धारा 67 और 67A के तहत अश्लील सामग्री का निर्माण, प्रकाशन, या वितरण दंडनीय है।
भारतीय दंड संहिता (IPC): IPC की धारा 292, 293, 500, और 506 इस तरह के अपराधों को नियंत्रित करने में सहायक हैं।
यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला डिजिटल युग में बाल सुरक्षा को लेकर एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। बच्चों के खिलाफ हो रहे ऑनलाइन अपराधों पर सख्त कार्रवाई करने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी, और यह निर्णय इस दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न केवल कानूनी प्रावधानों में स्पष्टता आएगी, बल्कि समाज में बाल सुरक्षा को लेकर एक नई जागरूकता भी विकसित होगी।
हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि इस फैसले को जमीनी स्तर पर प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। कानून बनाने भर से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसके लिए सरकार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, और समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा। बच्चों की सुरक्षा के प्रति एक समर्पित और ठोस प्रयास ही इस कानून को सफल बना सकेगा।
यह निर्णय हमें यह भी याद दिलाता है कि डिजिटल युग में बाल सुरक्षा हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें मिलकर एक ऐसा समाज बनाना होगा, जहां हर बच्चा सुरक्षित, खुशहाल और अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हो सके। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है।
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