भारत के पूंजी बाजार की निगरानी करने वाली संस्था, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), इन दिनों गंभीर सवालों के घेरे में है। सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच के खिलाफ उठाए गए आरोपों ने इस महत्वपूर्ण नियामक संस्था की विश्वसनीयता पर गहरी चोट की है। सूचीबद्ध कंपनियों के शीर्ष प्रबंधन और अन्य बाजार सहभागियों से पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीद करने वाली सेबी खुद ही इन्हीं कसौटियों पर खरा नहीं उतरती दिख रही है।
सेबी पर लगे आरोप और बढ़ती चिंताएं
हिंडनबर्ग रिसर्च, कांग्रेस पार्टी और जी समूह के संस्थापक सुभाष चंद्र गोयल द्वारा लगाए गए आरोपों ने सेबी की अध्यक्ष बुच की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया कि बुच ने अडानी समूह की जांच से खुद को अलग नहीं किया, जबकि उनके और उनके पति के पास अडानी से संबंधित नेस्टेड संस्थाओं में निवेश थे। इसके अलावा, हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि बुच ने एक निजी सलाहकार संस्था में 99% हिस्सेदारी रखी, जिससे उन्होंने भारतीय संस्थाओं से आय प्राप्त की।
कांग्रेस ने दावा किया कि अपने सेबी के कार्यकाल के दौरान, बुच ने आईसीआईसीआई बैंक से अर्जित आय के पांच गुना से अधिक कमाई की। इस संदर्भ में, यह सवाल उठता है कि क्या बुच ने ईएसओपी के तहत आईसीआईसीआई बैंक के शेयरों का उपयोग करते समय बाजार के नियमों का उल्लंघन किया।
सेबी की कार्य संस्कृति और कर्मचारियों की असंतुष्टि
सेबी के भीतर कार्य संस्कृति, भत्तों और मुआवजे को लेकर भी विवाद बढ़ता जा रहा है। कर्मचारियों ने सेबी के नेतृत्व पर झूठे बयान देने और कर्मचारियों की आवाज को दबाने के आरोप लगाए। सेबी कर्मचारियों के मुताबिक, उन्हें बाहरी तत्वों द्वारा गुमराह किए जाने की बात एक गलत प्रचार के रूप में पेश की गई।
विश्वसनीयता की रक्षा के लिए पारदर्शिता की जरूरत
सेबी को बाजार के हितधारकों से पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद है, लेकिन अपने ही नेताओं के लिए इसे लागू करने में विफल रही है। इसके विपरीत, अमेरिका जैसे विकसित देशों में, सार्वजनिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को संभावित हितों के टकराव से बचने के लिए अपनी संपत्तियों को अंधे ट्रस्ट में रखना आवश्यक होता है।
भारत में सेबी के बोर्ड में कई उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी और शिक्षाविद् शामिल हैं, लेकिन वे अध्यक्ष से सवाल पूछने या निष्पक्ष जांच करने में विफल रहे हैं। यह स्थिति सेबी के नियामक ढांचे में बड़ी कमी की ओर इशारा करती है, जिससे बाजार की पारदर्शिता और जवाबदेही प्रभावित हो रही है।
सरकार और सेबी के लिए अगला कदम
सरकार और प्रशासनिक मंत्रालय की इस मामले में चुप्पी से भी लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। एनडीए सरकार की ओर से इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे बाजार पर नजर रखने वालों की नाराजगी और बढ़ गई है। सेबी के बोर्ड को चाहिए कि वह अपने पारदर्शिता और जवाबदेही के मानकों को कड़ा करें और इस मामले में निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करें।
सेबी के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां उसे अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाने होंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो भारतीय पूंजी बाजार के नियामक ढांचे पर विश्वास करना मुश्किल हो जाएगा।
(लेख: सुचेता दलाल, अनुवाद: संजय पराते, साभार: द ट्रिब्यून)
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