केरल (पब्लिक फोरम)। केरल के वायनाड जिले में हाल ही में हुए भीषण भूस्खलन ने एक बार फिर जलवायु परिवर्तन के खतरनाक परिणामों को उजागर किया है। इस त्रासदी में अब तक 126 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि सैकड़ों घायल हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अरब सागर में बढ़ते तापमान ने इस आपदा को और भी विकराल बना दिया।
अरब सागर का बढ़ता तापमान बना मुसीबत
वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार, अरब सागर का बढ़ता तापमान घने बादलों के निर्माण का कारण बन रहा है। इसके परिणामस्वरूप केरल में अल्प समय में भारी वर्षा हो रही है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।
कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के वायुमंडलीय रडार अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. एस. अभिलाष ने बताया, “हमारे शोध से पता चला है कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर में तापमान वृद्धि से केरल सहित इस क्षेत्र का वायुमंडल अस्थिर हो गया है। यह अस्थिरता घने बादलों के निर्माण में सहायक है और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है।”
भूस्खलन की भविष्यवाणी और सुरक्षा उपाय की आवश्यकता
वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भूस्खलन की पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने और जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सुरक्षित आवास बनाने की मांग की है।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन ने कहा, “हमें भूस्खलन का पूर्वानुमान करने के लिए एक विशेष तंत्र की आवश्यकता है। यह चुनौतीपूर्ण है, लेकिन असंभव नहीं।”
केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान के आपदा जोखिम प्रबंधन विशेषज्ञ श्रीकुमार ने सुझाव दिया कि अधिकारियों को जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए मानसून-प्रतिरोधी आवास बनाने चाहिए।
भविष्य के लिए सावधानी
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने केरल के भूस्खलन संभावित क्षेत्रों के मानचित्रण और स्थानीय निवासियों के बीच जागरूकता फैलाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस त्रासदी ने एक बार फिर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित किया है। केरल सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके और जान-माल की क्षति को कम किया जा सके।
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