मोदी सरकार की तानाशाही और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ श्रमिक एकता और ऐक्टू ने जनता को बधाई दी है। हालिया चुनाव परिणामों ने स्पष्ट रूप से मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार और उसकी नीतियों को नकारा है। यह जनादेश मजदूरों, किसानों, गरीबों, दलितों और विभिन्न दमित जातियों की आवाज है, जिसने भाजपा को 240 सीटों पर रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह परिणाम स्पष्ट करता है कि देश की जनता ने भाजपा के शासन से मुंह मोड़ लिया है।
संविधान और लोकतंत्र की रक्षा
भारतीय जनता, विशेष रूप से दलित और हाशिये पर पड़े समुदाय, मोदी सरकार के संविधान विरोधी इरादों को समझते हैं। उन्होंने भाजपा और आरएसएस की फासीवादी नीतियों को भी पहचाना है। मोदी का ‘400 सीटों’ का सपना एक बुरे स्वप्न में बदल गया, और अयोध्या जैसे स्थानों पर भाजपा की हार ने इसे और स्पष्ट कर दिया। लोगों ने रोजगार, किसानों के मुद्दे, बेरोजगारी, अग्निपथ योजना, एनपीएस, मूल्य वृद्धि, घटती आय और जीवन स्तर जैसे बुनियादी मुद्दों को प्रमुखता दी।
विपक्ष की भूमिका और जनांदोलन
विपक्ष की रणनीति के साथ-साथ देशभर में किसानों, युवाओं, छात्रों, श्रमिकों और अन्य समूहों के आंदोलनों ने मोदी सरकार की नीतियों को चुनौती दी है। इन आंदोलनों ने वास्तव में चुनावी लड़ाई को एक जनांदोलन में बदल दिया। भाजपा सरकार ने श्रम संहिताओं और अन्य जनविरोधी नीतियों को आगे बढ़ाने के संकेत दिए हैं। यह स्पष्ट है कि भाजपा-मोदी से एनडीए-मोदी तक सिर्फ नाम बदला है, नीतियां वही हैं।
आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा
मोदी सरकार की नीतियों ने सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा को उलट-पुलट कर दिया है और इसका बोझ श्रमिकों पर डाल दिया है। संविदाकरण और निश्चित अवधि रोजगार ने नियमितीकरण को एक मृगतृष्णा बना दिया है। न्यूनतम मजदूरी की अवधारणा को भी कमजोर किया जा रहा है।
निजीकरण और रक्षा क्षेत्र
वित्त मंत्री ने सार्वजनिक और सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण की प्रक्रिया को तेज करने की योजना बनाई है। रक्षा और विमानन जैसे क्षेत्रों का निजीकरण भी इसी रणनीति का हिस्सा है।
नए आपराधिक कानून और मजदूरों पर अत्याचार
नए आपराधिक कानूनों ने जनता के मौलिक अधिकारों को खतरे में डाल दिया है। इन कानूनों का उपयोग वैध विरोधों को अवैध घोषित करने और मजदूरों के विरोध के अधिकार को छीनने के लिए किया जा रहा है।
मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष
मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए ऐक्टू ने आंदोलन तेज करने और संगठन को मजबूत करने का फैसला किया है। 25 जुलाई से 8 अगस्त 2024 तक 15 दिनों का अभियान चलाया जाएगा, जिसका समापन 9 अगस्त को देशव्यापी विरोध कार्यक्रमों की श्रृंखला के रूप में होगा।
अखिल भारतीय सम्मेलन
ऐक्टू ने अगले साल की शुरुआत में दिल्ली में 11वां अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित करने का भी फैसला किया है। इसमें देशभर से चुने गए प्रतिनिधि शामिल होंगे, जो सत्ता में बैठी फासीवादी ताकतों से लड़ने की रणनीति बनाएंगे।
जनता की सड़क की लड़ाई ही फासीवादी मोदी सरकार के विनाश की गारंटी कर सकती है। ऐक्टू अपने संकल्प के साथ मजदूरों के अधिकार, बेहतर जीवन स्तर और सम्मान के लिए संघर्षरत रहेगा।
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