नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) को लेकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है कि वह परीक्षा को दोबारा आयोजित करने के विचार से सहमत नहीं है। यह निर्णय 23 लाख से अधिक छात्रों के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।
सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि “अप्रमाणित आशंकाओं” के आधार पर लाखों छात्रों पर पुनः परीक्षा का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। यह कदम छात्रों के हित में लिया गया प्रतीत होता है, जिससे उनके समय और संसाधनों की बचत होगी।
आईआईटी मद्रास द्वारा किए गए डेटा विश्लेषण में कोई असामान्यता या सामूहिक गड़बड़ी नहीं पाई गई है। यह रिपोर्ट परीक्षा की निष्पक्षता को प्रमाणित करती है। हालांकि, भविष्य में ऐसी किसी भी संभावित समस्या से निपटने के लिए, सरकार ने एक 7 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन प्रस्तावित किया है।
छात्रों और अभिभावकों के लिए राहत की खबर यह है कि नीट काउंसलिंग प्रक्रिया जुलाई के तीसरे सप्ताह में शुरू होने की संभावना है। यह प्रक्रिया चार चरणों में संपन्न होगी। सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह इस पूरी प्रक्रिया पर बारीकी से नज़र रख रही है।
सरकार की यह स्थिति छात्रों के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। एक ओर जहां यह परीक्षा की पुनरावृत्ति से बचाता है, वहीं दूसरी ओर यह भविष्य में ऐसी किसी भी अनियमितता को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है। यह कदम शैक्षणिक समुदाय में विश्वास बहाल करने में मदद कर सकता है।
अंत में, यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। छात्रों और उनके परिवारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण समय है, और सरकार का यह निर्णय उनके भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम प्रतीत होता है।
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