हाथरस (पब्लिक फोरम)। सिकंदरराऊ के गांव फुलरई में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने एक बार फिर धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। तथाकथित “नारायण साकार विश्व हरि” उर्फ़ “भोले बाबा” के सत्संग में मची भगदड़ में कई लोगों की जान चली गई। इस घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि ऐसे आयोजनों की नैतिकता पर भी बहस छेड़ दी है।
पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है, लेकिन उसमें “भोले बाबा” का नाम न होना जनता के गले नहीं उतर रहा। राष्ट्रीय महिला आयोग सहित कई संगठनों ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है। वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष कुमार के अनुसार, “यह घटना बाबा की घोर लापरवाही का परिणाम है। उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।”
प्रशासनिक चूक भी इस त्रासदी का एक बड़ा कारण रही। एसडीएम द्वारा दी गई अनुमति के बावजूद उचित व्यवस्था न किए जाने पर कानूनी विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप कौशिक का मानना है कि “बाबा को भी साजिश के आरोप में शामिल किया जाना चाहिए। उनके भाषण से अंधविश्वास फैलाने का आरोप भी लग सकता है।”
पुलिस ने मामले में भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है। कोतवाली सिकंदराराऊ के एसएचओ आशीष कुमार ने बताया कि “जांच के बाद साकार विश्व हरि का नाम भी शामिल किया जा सकता है।” आयोजकों पर 80 हजार की मंजूरी के बावजूद तीन गुना अधिक भीड़ जुटाने का आरोप है।
यह घटना सामूहिक आयोजनों के लिए अनुमति प्रक्रिया की जटिलता को भी उजागर करती है। अनुमति प्राप्त करने की लंबी प्रक्रिया के बावजूद, ऐसी घटनाएं होना चिंताजनक है। स्थानीय अधिकारियों का दावा है कि सभी औपचारिकताएं पूरी की गईं, लेकिन वास्तविक भीड़ अनुमानित संख्या से कहीं अधिक थी।
इस त्रासदी ने धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा, प्रशासनिक जवाबदेही और आध्यात्मिक नेताओं की सामाजिक जिम्मेदारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाया है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि अंधभक्ति और लापरवाही का मिश्रण कितना घातक हो सकता है। आशा है कि इस दुखद घटना से सबक लेकर भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सकेगा।
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