रायपुर। दिसंबर 2023 में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान, तीन महत्वपूर्ण कानूनों को पारित किए – भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और भारतीय दंड संहिता 1860 के स्थान पर क्रमशः भारतीय साक्ष्य संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय न्याय संहिता 2023। इन क़ानूनों को 25 दिसंबर 2023 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी, लेकिन ये तब तक लागू नहीं होंगे जब तक कि केंद्र सरकार द्वारा इस आशय की अधिसूचना जारी नहीं की जाती।
कर्नाटक उच्च न्यायालय बेंगलुरु के अधिवक्ता तथा ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) के राष्ट्रीय महासचिव एडवोकेट क्लिफ्टन डी रोजारियो छत्तीसगढ़ में AIPF और AILAJ के संयुक्त आयोजन के संगोष्ठी में विशेष वक्ता के रूप में अपनी बात रख रहे थे। उन्होंने कहा कि नए आपराधिक कानून मुख्य रूप से मौजूदा तीन कानूनों में प्रावधानों के पुन: क्रमांकन और/या पुनर्गठन की एक कवायद है। इसके अलावा “शून्य एफआईआर” को वैधानिक आधार प्रदान करने, समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने, जांच पूरी करने के लिए समय सीमा सुनिश्चित करना, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मान्यता देना, कुछ अन्य बातों के अलावा द्वितीयक साक्ष्य के दायरे का विस्तार करना सहित कुछ आवश्यक बदलाव शामिल किए गए हैं।
हालांकि, बदलावों का एक और समूह है, जो संख्या में कम है, परंतु चिंताजनक है, क्योंकि ये देश में मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से हानिकारक हैं। जैसे – “आतंकवादी कृत्य” के अपराध की शुरूआत, एक नए नामकरण के तहत राजद्रोह कानून को बरकरार रखना, भूख हड़ताल को अपराध घोषित करना, शादी करने का वादा करने का अपराधीकरण, पुलिस की मनमानी शक्तियों को बढ़ाना, पुलिस द्वारा 24 घंटे हिरासत की मंजूरी, अभियुक्तों का विवरण सार्वजनिक करना, वैधानिक रूप से हथकड़ी लगाने का अधिकार, एफआईआर दर्ज करने से बचने के लिए पुलिस को सशक्त बनाना, हिरासत में हिंसा को मंजूरी – पुलिस हिरासत को 15 दिन से बढ़ाकर 60/90 दिन करना, मॉब लिंचिंग से निपटने के आधे-अधूरे उपाय तथा सामुदायिक सेवा व एकान्त कारावास जैसे मनमाने और अमानवीय दण्डों को मंजूरी देना।
इसके मूल में, इन तीन आपराधिक कानूनों के माध्यम से लाए गए महत्वपूर्ण बदलाव, सरकार को हमारे लोकतंत्र को खोखला करने और भारत को एक फासीवादी राज्य में बदलने के लिए पर्याप्त शक्ति से लैस करते हैं – यदि सरकार को नए कानूनों को उनकी पूरी सीमा तक लागू करने का विकल्प चुनती है एवं वैध राजनीतिक असहमति तथा सामाजिक व आर्थिक शोषण के खिलाफ विरोध पर रोक लगाने की सुविधा प्रदान करती है।
भारत को पुलिस राज्य बनने में, जिसकी नए आपराधिक कानूनों में परिकल्पना की गई है, एकमात्र संभावित बाधा, सड़क पर लोगों की आवाज है, क्योंकि केंद्र सरकार ने संसद को वस्तुतः शक्तिहीन बना दिया है, और अदालतें सरकार को जिम्मेदार ठहराने के अपने कर्तव्य से विमुख हो रही हैं। ये वे लोग हैं जो मोदी सरकार को कड़ा सबक सिखा सकते हैं, जैसे ट्रक ड्राइवर यूनियन जिन्होंने नए आपराधिक कानूनों का सफलतापूर्वक विरोध किया है। वास्तव में ट्रक ड्राइवरों ने अनुसरण किया है – उन किसानों का, जो तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सामने आए हैं तथा मजदूर वर्ग का, जिनके संघर्ष ने श्रम संहिताओं को लागू होने नहीं दिया है और नागरिक व मुस्लिम समुदाय के संघर्ष का, जिसके कारण सांप्रदायिक नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू नहीं हो पाया। आने वाले दिनों में, ऐसे कई आंदोलन अपरिहार्य हैं, क्योंकि इन नए आपराधिक कानूनों के परिणाम लोगों के सामने स्पष्ट हो जाएंगे।
एडवोकेट किलफ्टन ने अपने उद्बोधन मे ज़ोर देकर कहा कि, आगामी लोकसभा चुनाव देश में अब तक हुये अन्य चुनावों की तरह के सामान्य चुनाव नहीं है। आगामी लोकसभा चुनाव देश के लोकतंत्र के लिए निर्णायक होंगे। देशवासियों के ऊपर एक ऐसी सरकार के चुनाव की जिम्मेदारी रहेगी, जिससे देश के संविधान और धर्मनिरपेक्ष ढांचे को सुरक्षित रखने के साथ ही आम जन के बुनियादी सवालों को भी हल किया जा सके। हम सभी को पिछले घटनाक्रमों से सबक लेने होंगे और ऐसी वैचारिक, नीतिगत दिशा अपनानी होगी कि देश का लोकतंत्र मजबूत हो। आगामी चुनाव देश के संविधान, लोकतंत्र, हमारी साझा संस्कृति व मूल्यों को बचाने और जीवन स्तर की बेहतरी के अवसर चुनने की घड़ी है।
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