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शनिवार, जुलाई 5, 2025
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एक कविता: जनरल बोगी का सफर

सफर जीवन क्रम ही
यात्रा करनी ही होती
चलती ही रहती
आवश्यकता के अनुरूप
बदलते अपना स्वरूप
भारत में यात्रा की बात हो
रेल का न हो जिक्र
ये भला क्यूकर हो
रेल की यात्रा आम
पास या हो दूर का काम
रिजर्वेशन मिला
मंजिल पूरी मिल गई
बिना रिजर्वेशन
न करना पड़े लम्बा सफर
यात्रा का आनंद
थकाऊ सफर में बदलता
जनरल टिकट लेकर
जनरल की यात्रा
आम यात्री की मजबूरी
आवश्यकता पड़ती जरूरी
जनरल बोगी
आगे और पीछे होती
समेटे अपने मे पूरी ट्रैन
बोगी में बिल्कुल नहीं जगह
बनाओगे तो बन भी सकती
गाड़ी जब चल देती
जगह निकल ही आती
यात्री कैसे बैठे -खड़े
शोध का विषय
आधार आधा ही
जो जहां वहीं जमा
हिलना डुलना
सांस लेना दूभर
लम्बा सफर
पानी की खाली बोतल
स्टेशन आने पर
उतरना भारी हुज्जत
टॉयलेट तक सवारी बैठी
चढ़ने वाले कि हिम्मत नहीं
बोगी में घुस सकें
हवा में चद्दर बांध
शयन का इंतजाम
उघरे बदन रोता बच्चा
पसीने की बिखरी खुशबू
संघर्ष शोषण का चरम
क्या जनरल बोगी में
अधिकतम निर्धारित हो
टी टी भीड़ में आते ही नही
जनरल बोगी का सफर
दिग्दर्शन महान भारत का
हम ही तो चुनते
भुगतते भी हम ही
हम सबसे आगे
हम सबसे पीछे
बोगी ही हमारी स्थितियां
संघर्ष में सबसे आगे
प्रगति में सबसे पीछे
ये अलग बात
व्यवस्था में सबके साथ
गन्तव्य सब का एक
आंखों में हसीन सपने
आशा बेहतर कल की

प्रेम चन्द्र पाण्डेय
बालकोनगर-बिलासपुर

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