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शनिवार, जुलाई 5, 2025
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महाराजाधिराज अब आप से बढ़कर कौन!

मोदी जी! आपको इतनी समझ तो होनी चाहिए कि सैंगोल (राजदंड) राजाओं-महाराजाओं के शासनकाल में चलता था। अब यह देश एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य है जिसमें जनता के चुने प्रतिनिधि होते हैं और देश का शासन संविधान के अनुसार चलता है। भारतीय गणराज्य के संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति तक को आपने अपना बंधुआ मजदूर समझ लिया।

जहाॅपनाह, ऐसा कर आपने तो इतिहास में दर्ज क्रूर तानाशाहों को भी मात दे दिया और खुद मुख़्तार बन बैठे। आपने तो देश के संविधान की और संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति की गरिमा का जरा भी ख्याल नहीं रखा। इसे हम क्या समझें? तानाशाही या राजतंत्र?

आपने कैसे समझ लिया कि यह देश आज भी रियासतों में बॅटा राजे-रजवाड़ों का देश है और आप सबके महाराजधिराज हैं या देश आपकी जागीर बन चुका है? इस देश को अपना जागीर बनाने में आपने ऐसी कौन सी कीमत चुकाई है? सिवाय देश की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष अस्मिता को तार-तार करने के आपने ऐसा कौन सा महान कार्य कर दिया है कि देश को सचमुच विश्वगुरु का ताज मिल गया है?

आपने ऐसा क्या महान कार्य किया है कि देश आपके शासन में चौतरफा खुशहाल हो गया है और लोग सुख-चैन की बाॅसुरी बजा रहे हैं और चारों तरफ आपकी जयकारा हो रही है? आप किस गफलत में हैं कि देश का ताज का अब आपके ही सिर में शोभायमान रहेगा? उल्टे हे महाराजधिराज, चारों तरफ जन-हाहाकार मचा हुआ है, जनता शोषण-दमन-लूट-अत्याचार, बलात्कारियों के प्रकोप, महंगाई और बेकारी से त्राहि-त्राहि कर रही है। लोग बुनियादी समस्याओं तक के समाधान के लिए तरस रहे हैं और कहीं कोई उनकी फरियाद सुनने वाला नहीं है।

आपने अपने नौ साल के शासन में तमाम जनविरोधी कार्य किए सिवाय अपने चंद पूंजीपति मित्रों को खुश करने, जनता को लूटकर उन्हें मालामाल करने के। शासन का बागडोर हाथ में आते ही आपकी बाॅछें ऐसी खिलीं और भवें ऐसी तनीं कि आपने अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझा। विकास के नाम पर पहले किसानों की जमीन हड़पकर अपने कार्पोरेट मित्रों के चरणकमलों में बिछा देने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहां दाल नहीं गली तो कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई से उनकी जमा-पूंजी तक पूंजीपतियों के भोभस में भर देना चाहा। वहां भी मुॅह की खानी पड़ी तो छोटी बचत वाले बेचारे मजदूरों की छोटी-छोटी जमा पूंजियों पर भी आपकी ऑखें गड़ गईं और उनकी ब्याज दरों में कटौती कर उनकी जमापूंजियों को भी हड़पने की कोशिश की। आपकी हड़पनीति का सिलसिला यहीं नहीं रूका। श्रमिकों के बरसों की तपस्या और शहादतों के बाद उनके हक में बने श्रम कानूनों को भी खत्म कर दिया। मजदूरों के बहुत से कानूनी अधिकार खत्म कर दिए और उन्हें चार श्रम-संहिताओं का ऐसा झुनझुना पकड़ा दिया कि वे अब झुनझुना भी नहीं बजा सकते।

इन तमाम तिकड़मों और साज़िशों से भी आपका जी नहीं भरा तो सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्रों को भी बेचना शुरू कर दिया। जबकि आपने और आपके सिपहसालारों ने यह ढिंढोरा खूब पीटा कि 70 सालों में आपके बाप-दादाओं ने कुछ नहीं किया। मैं आपसे पूछता हूं कि आपके बाप-दादाओं ने कुछ नहीं किया तो फिर देश विकासशील देशों में सबसे आगे निकल विकसित देशों से होड़ कैसे कर रहा था? बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान, स्वास्थ्य संस्थान वैज्ञानिक प्रयोग शालाएं, वेध शालाएं, तकनीकी शिक्षण संस्थान, बड़े-बड़े बांध, लंबी-लंबी रेलें व सड़कें और हवाई पट्टियों के जाल कैसे बिछे?

चलो मान लेते हैं कि आपके बाप-दादाओं ने कुछ नहीं किया तो फिर आप किन्हें बेच रहे हो? बाप-दादाओं पर एक निकम्मा, नाकारा या कपूत ही ऐसे तोहमत लगा सकता है जिसे आपने सिद्ध कर दिया है। आपके कुकर्मों का अंत नहीं। अगर आपके कुकर्मों का हिसाब करने लगूं तो दास्तानों की एक पूरी पोथी बन जाएगी।

अब आपने जो कुकर्म किया है इसका तो साफ संदेश यही है कि आपको अवाम, देश के लोकतांत्रिक ढाॅचे , उसकी संघीय प्रणाली और संविधान किसी में कोई आस्था नहीं है।

देश की विडंबना कहें या दुर्भाग्य कि कैसे यह सब देखकर इस देश के तथाकथित प्रबुद्ध जन, बड़े-बड़े पंडित, दार्शनिक, इतिहासकार, पुरातात्त्विक, वैज्ञानिक, विधि विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री, साहित्यकार और कलाकार सब के सब बस, बेजुबाॅ, बेबस, सलाम की मुद्रा में हैं!
-श्याम लाल साहू, छत्तीसगढ़

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