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शुक्रवार, फ़रवरी 7, 2025
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राहुल गांधी को संसद के अयोग्य ठहराना राजनीतिक प्रतिशोध और लोकतंत्र पर शर्मनाक हमला

राहुल गांधी पर ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) का बयान

राजनीति का अपराधीकरण भारत में गंभीर चिंता का विषय रहा है क्योंकि यह संस्थानों की विश्वसनीयता को कम करता है.इसी लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 को पारित किया गया था जो निर्वाचित प्रतिनिधियों को आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने पर सजा के साथ-साथ चुनावी राजनीति में उसके बाद शरीक होने पर भी रोक लगाता है।

आइलाज का मानना है कि एक आपराधिक मानहानि के लिए गुजरात में एक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा 2 साल की सजा के एलान के बाद लोकसभा की सदस्यता से राहुल गांधी को नाक़ाबिल करार करना राजनीति के अपराधीकरण के बारे में नहीं है. यह हकीकत में राजनीतिक प्रतिशोध और लोकतंत्र पर शर्मनाक हमले का मामला है।
सबसे पहले तो आपराधिक मानहानि के लिए दोषसिद्धि के क़ानून को ही खत्म कर देना चाहिए. आपराधिक मानहानि को परिभाषित करने वाली और सजा प्रदान करने वली भारतीय दंड संहिता-1860 की धारा – 499 और धारा- 500 औपनिवेशिक अवशेष हैं जो लोकतांत्रिक भारत के लिए ना-मुनासिब है,क्योंकि साफ़तौर पर यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है . राहुल गांधी मामला मनमाना आवेदन और एक तकलीफदेह आपराधिक मुकदमे का परिणाम है. दुर्भाग्य से, सर्वोच्च न्यायालय ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ [(2016) 7 SCC 221] के अपने त्रुटिपूर्ण निर्णय में इस कानून की वैधता को बरकरार रखा।
दूसरा, मानहानि के अपराध के लिए जरूरी है कि शिकायतकर्ता यह साबित कर कि उसकी खुद की मानहानि हुई है – और वह व्यक्तियों के एक वर्ग को लक्षित करने वाले आम बयान के भुक्तभोगी होने का दावा नहीं कर सकता है। इस मामले में राहुल गांधी ने कहा था कि कैसे सभी चोरों के उपनाम मोदी है, ”नीरव मोदी, ललित मोदी,नरेंद्र मोदी है. शिकायतकर्ता जिसने कोर्ट में अर्जी दी थी कि राहुल गांधी ने ‘मोदी’ उपनाम वाले सभी व्यक्तियों को अपमानित किया है ,वो विधायक पुरणेश मोदी इसका भुक्तभोगी नही है और यह मानहानि का दावा पूर्व दृष्टया कानूनी रूप से नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है।
तीसरा, यह तथ्य कि अधिकतम दो साल की सजा दी गई है स्पष्ट तौर से सत्तासीन निजाम के हाथ को दर्शाता है. वास्तव में, आपराधिक मानहानि के अपराध के लिए दो साल की अधिकतम सजा की सजा मिलना अबतक अनसुना है।

इसके अलावा जिस तेजी से दोषसिद्धि के 24 घण्टे के अंदर संसद से अयोग्यता की प्रक्रिया लाई गई वह भी उतनी ही अनसुनी है. वास्तव में, कर्नाटक के भाजपा विधायक नेहरू ओलेकर [भ्रष्टाचार के लिए 2 साल की जेल की सजा] या कर्नाटक के भाजपा विधायक सांसद कुमारस्वामी [चेक-बाउंस मामले में 4 साल की जेल की सजा] के लिए ऐसी कोई अयोग्यता नहीं की गई थी. दोनों को फरवरी, 2023 में दोषी ठहराया गया था. वास्तव में भारत के विधि आयोग ने अपनी 244वीं रिपोर्ट में नोट किया है कि लिली थॉमस के फैसले के बाद केवल 3 विधायकों को सजा के परिणामस्वरूप अयोग्य घोषित किया गया था।

अयोग्यता के प्रावधानों का उद्देश्य भारत के विधि आयोग की रिपोर्ट संख्या 244 ‘चुनावी अयोग्यता’ शीर्षक (फरवरी 2014) में संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है – “एक सच्चाई है कि समाज के आपराधिक तत्व, यानी जिन पर कानून तोड़ने का आरोप लगाया गया है, वो एमपी और एमएलए होने की वजह से अपने पूर्ववर्तियों के बनाये कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं , यह कानून निर्माताओं की निगाह से भारतीय लोकतंत्र की प्रकृति और कानून के शासन के विपरीत होगा. सुप्रीम कोर्ट के निम्न निर्णयों को एकसाथ पढ़ने एक साफ समझ बनती है कि राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे के कानूनों निहितार्थ क्या है।

लिली थॉमस बनाम भारत संघ [(2013) 7 SCC 653] मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा-8(4) को रद्द करते हुए कहा था कि जब तक ऐसे मामलों में अपील का निपटारा नही हो जाता, सांसदों और विधयकों को दोषी ठहराए जाने तक वे पद पर बने रहेंगे।
पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन फाउंडेशन बनाम भारत संघ और अन्य [AIR 2018 SC 4550] मामले में देश में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण और नागरिकों के बीच इस तरह के अपराधीकरण के बारे में जानकारी की कमी के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि चुनाव लड़ने वाला हर उम्मीदवार अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का खुलासा करे।

रामबाबू सिंह ठाकुर बनाम सुनील अरोड़ा व अन्य [AIR 2020 SC 952] मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी किया कि राजनीति में अपराधियों की घटनाओं में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है और राजनीतिक दल सबसे पहले तो इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं देते हैं कि लंबित आपराधिक मामलों वालों को उम्मीदवारों के रूप में क्यों चुना जाता है और निर्देश दिया कि राजनीतिक दलों के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे अपनी वेबसाइट पर लंबित आपराधिक मामलों वाले व्यक्तियों जो उम्मीदवार हैं, उनके (अपराधों की प्रकृति, और प्रासंगिक विवरण जैसे कि आरोप तय किए गए हैं, संबंधित न्यायालय, मामला संख्या आदि) बारे में विस्तृत जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करें और साथ ही यह भी जानकारी दें कि ऐसे चयन की वजह क्या है व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अन्य व्यक्तियों को उम्मीदवारों के रूप में क्यों नहीं चुना गया।
अश्विनी कुमार बनाम भारत संघ और अन्य (W.P. (C. No. 699/2016) मामले में दिनांक 10.08.2021 के अपने आदेश में, सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में विभिन्न मामलों का न्यायिक नोटिस लेते हुए विभिन्न राज्य सरकारों जो धारा-321पी.सी के तहत निहित शक्ति का प्रयोग करके सांसदों और विधायकों के खिलाफ कई लंबित आपराधिक मामलों को वापस ले लिया था , यह निर्देश दिया कि हाइकोर्ट की अनुमति के बिना किसी मौजूदा या पूर्व सांसदों / विधायकों के खिलाफ कोई भी मुकदमा वापस नहीं लिया जाएगा।

उपरोक्त मामलों से स्पष्ट होता है कि राहुल गांधी का मामला राजनीति के अपराधीकरण का नहीं, बल्कि सियासी बदले का मामला है. वास्तव में यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि केंद्र सरकार पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत सरकार और अन्य मामलों [एआईआर 2018 एससी 4550] में सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव का पालन करने में विफल रही है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि संसद एक मजबूत कानून बनाये जिसके तहत राजनीतिक दलों के लिए उन लोगों की सदस्यता रद्द करना अनिवार्य है जिनके खिलाफ जघन्य और गंभीर अपराधों में आरोप तय किए गए हैं और उन्हें चुनाव में उम्मीदवारी प्रदान की जाय।
कानून की राजनीतिक उपयोग भाजपा की राज्य सरकारों द्वारा अपने विधायकों और सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस लेने के कई उदाहरणों से भी साफ झलकता है. उदाहरण के बतौर सितंबर 2020 में कर्नाटक में भाजपा सरकार ने सांसदों और विधायकों सहित विभिन्न भाजपा नेताओं के खिलाफ 62 आपराधिक मामलों को वापस लेने की सिफारिश की।ऐसा पुलिस विभाग, विधि विभाग और अभियोजन निदेशालय के इन मामलों को वापस न लेने की सर्वसम्मत राय के बावजूद किया गया. राज्य सरकार के इस निर्णय से लाभान्वित होने वालों में मैसूर के मौजूदा सांसद श्री प्रताप सिम्हा, तत्कालीन कानून मंत्री श्री जे.सी. मधुस्वामी, तत्कालीन पर्यटन मंत्री श्री सी.टी. रवि, तत्कालीन कृषि मंत्री श्री बी.सी. पाटिल, विधायक श्री आनंद सिंह, श्री हलप्पा अचार, मुख्यमंत्री के राजनीतिक सचिव एम. पी. रेणुकाचार्य सहित अन्य भी हैं. इसे कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई, जिसने 11 अगस्त 2021 के आदेश के तहत सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस लेने की अनुमति रद्द कर दी।

राहुल गांधी को दोषसिद्धि से लेकर अयोग्य ठहराए जाने तक की घटनाओं की पूरी कड़ी को लोकतंत्र पर एक शर्मनाक हमला और कार्यपालिका द्वारा न्यायिक प्रक्रिया को विकृत करने के बतौर देखा जाना चाहिए।

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