सप्ताह में 90 घंटे काम का प्रस्ताव
नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (AICCTU) ने लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन एस.एन. सुब्रह्मण्यन द्वारा सप्ताह में 90 घंटे काम करने के सुझाव की कड़ी निंदा की है। उन्होंने यह बयान श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने के नाम पर दिया। इससे पहले, इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति और अन्य कारोबारी दिग्गजों ने भी लंबे कार्यदिवसों का समर्थन किया था।
AICCTU का कहना है कि मोदी सरकार की कॉरपोरेट-समर्थक नीतियाँ ऐसे बयान देने वाले उद्योगपतियों को बढ़ावा दे रही हैं। इन बयानों में न केवल श्रमिकों की भलाई की अनदेखी है, बल्कि उनके मौलिक अधिकारों को भी खतरे में डालने की कोशिश की गई है।
8 घंटे का कार्यदिवस: संघर्ष और अधिकार
8 घंटे का कार्यदिवस कई संघर्षों और बलिदानों का परिणाम है। भारत में यह अधिकार 1934 के फैक्टरी एक्ट और 1946 के संशोधन के बाद लागू हुआ, जिसे डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने श्रम सदस्य के रूप में प्रस्तुत किया था। यह केवल कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि श्रमिकों की शारीरिक और मानसिक सुरक्षा का आधार भी है।
लंबे काम के घंटे: स्वास्थ्य और उत्पादकता पर असर
कई अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि लंबे काम के घंटे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। तनाव, मस्कुलोस्केलेटल विकार, नींद की समस्याएँ और संज्ञानात्मक क्षमताओं में कमी जैसी समस्याएँ आम हैं। थकान से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और निर्णय लेने की योग्यता कम हो जाती है।
इसके विपरीत, कम काम के घंटे और बेहतर वेतन से उत्पादकता में सुधार होता है। कई देश अब 6 घंटे के कार्यदिवस की ओर बढ़ रहे हैं।
भारतीय श्रमिकों की स्थिति
भारत पहले ही दुनिया के सबसे मेहनती कार्यबलों में शामिल है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारतीयों का औसत कार्य सप्ताह दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे लंबा था। इसके बावजूद, कम मजदूरी और महँगाई के कारण श्रमिक अक्सर अतिरिक्त काम करने के लिए मजबूर हैं।
महिला श्रमिकों पर असर
एलएंडटी चेयरमैन के बयान में महिला श्रमिकों की उपेक्षा स्पष्ट है। महिलाएँ न केवल वेतनभोगी श्रम में योगदान देती हैं, बल्कि घरेलू काम का बोझ भी उठाती हैं। कार्यदिवस बढ़ने से महिलाओं की स्थिति और खराब होगी। यह लैंगिक असमानता को और बढ़ाएगा।
AICCTU की मांग
AICCTU ने सरकार से माँग की है कि:-
1. 8 घंटे के कार्यदिवस और 48 घंटे के साप्ताहिक कार्य समय को सख्ती से लागू किया जाए।
2. श्रमिकों को अतिरिक्त काम करने के लिए मजबूर न किया जाए।
3. श्रमिकों के स्वास्थ्य, सम्मान और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाए जाएँ।
“AICCTU का यह बयान श्रमिक वर्ग के अधिकारों की सुरक्षा और उनके सम्मान के लिए एक गंभीर कदम है। यह स्पष्ट करता है कि कॉरपोरेट मुनाफे के लिए श्रमिकों के स्वास्थ्य और जीवन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
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