सन 1975 में भारत सरकार ने एकीकृत बाल विकास सेवाएं (ICDS) योजना की शुरुआत की, जिसका मकसद बच्चों में कुपोषण और भुखमरी से लड़ना था। 2025 में यह योजना अपने 50 साल पूरे कर रही है। इन पांच दशकों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों की सेवा में अपनी जिंदगी लगा दी। ग्रामीण इलाकों में ये कार्यकर्ता बच्चों को पोषण, स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और प्री-स्कूल शिक्षा देने का काम करती हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि 50 साल बाद भी इनकी मेहनत को सही सम्मान और पहचान नहीं मिली। इन्हें नियमित कर्मचारी का दर्जा नहीं दिया गया और बहुत कम मानदेय में काम करने को मजबूर किया जाता है। यह आर्टिकल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्याओं को उजागर करता है और उनके हकों के लिए एक मजबूत आवाज उठाता है।
ICDS और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता क्या हैं?
ICDS दुनिया की सबसे बड़ी बाल विकास योजनाओं में से एक है। इसके तहत 6 साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती-स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण, स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा दी जाती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इस योजना की नींव हैं। ये ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्र चलाती हैं और जरूरतमंद परिवारों तक ये सेवाएं पहुंचाती हैं। ये सिर्फ कार्यकर्ता नहीं, बल्कि समाज की धुरी हैं जो आने वाली पीढ़ी को संभालती हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का काम बेहद महत्वपूर्ण है। ये:
– बच्चों के स्वास्थ्य और वजन की निगरानी करती हैं।
– कुपोषण से लड़ने के लिए पौष्टिक भोजन देती हैं।
– टीकाकरण अभियान चलाती हैं।
– प्री-स्कूल शिक्षा से बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती हैं।
– माताओं को स्वास्थ्य और स्वच्छता की जानकारी देती हैं। इनके प्रयासों से ग्रामीण भारत में बच्चों की मृत्यु दर घटी है और मातृ स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।
इनके प्रयासों से ग्रामीण भारत में बच्चों की मृत्यु दर घटी है और मातृ स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।
नियमित कर्मचारी की मान्यता से वंचित
इतने बड़े योगदान के बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सरकार नियमित कर्मचारी नहीं मानती। इन्हें “स्वैच्छिक कार्यकर्ता” कहा जाता है और वेतन की जगह मामूली मानदेय दिया जाता है। इससे इन्हें नौकरी की सुरक्षा, पेंशन या अन्य सुविधाएं नहीं मिलतीं। 50 साल तक देश की सेवा करने के बाद भी इन्हें वह सम्मान नहीं मिला, जिसकी ये हकदार हैं।
कम मानदेय और आर्थिक तंगी
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मिलने वाला मानदेय बेहद कम है। 2024 तक कई राज्यों में यह 4,500 से 7,500 रुपये महीने के बीच है। बढ़ती महंगाई में यह राशि उनके परिवार का पेट भरने के लिए भी काफी नहीं। कई कार्यकर्ता गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताती हैं, जबकि ये दूसरों के बच्चों को भूख से बचाती हैं।

अतिरिक्त योजनाओं का बोझ
ICDS के काम के अलावा सरकार इन्हें कई अन्य जिम्मेदारियां सौंपती है, जैसे:
– जनगणना डेटा जुटाना।
– चुनाव ड्यूटी।
– स्वास्थ्य सर्वेक्षण।
– कोविड-19 राहत कार्य।
बिना अतिरिक्त भुगतान या संसाधनों के ये बोझ उनकी मुख्य जिम्मेदारियों को प्रभावित करता है। फिर भी इनसे हर काम में perfection की उम्मीद की जाती है।
स्वास्थ्य और सुरक्षा की अनदेखी
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मुश्किल हालातों में काम करती हैं। कई केंद्रों में पीने का पानी, शौचालय या बिजली तक नहीं होती। कोविड-19 के दौरान इन्होंने बिना सुरक्षा उपकरणों के लोगों तक खाना और दवाइयां पहुंचाईं। इनकी सेहत और सुरक्षा की कोई चिंता नहीं की जाती, जो बेहद चिंताजनक है।
प्रशिक्षण और संसाधनों की कमी
इनसे बहुत कुछ करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन इन्हें ठीक से प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। स्वास्थ्य या शिक्षा से जुड़े जटिल कामों के लिए इनके पास जरूरी स्किल्स नहीं होतीं। साथ ही, केंद्रों में भोजन, दवाइयां और शिक्षण सामग्री की कमी रहती है। इससे इनका काम और मुश्किल हो जाता है।
सेवा की गुणवत्ता पर असर
कम मानदेय, संसाधनों की कमी और अतिरिक्त बोझ से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवा प्रभावित होती है। थकी और निराश कार्यकर्ता पूरी क्षमता से काम नहीं कर पातीं। इसका नुकसान उन लाखों बच्चों और माताओं को होता है, जो ICDS पर निर्भर हैं। योजना की सफलता इनके कंधों पर टिकी है, लेकिन इन्हें सहारा नहीं दिया जाता।
दूसरे देशों से तुलना
दुनिया के कई देशों में ऐसी कार्यकर्ताओं को बेहतर सम्मान मिलता है। जैसे:
– ब्राजील में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता सरकारी कर्मचारी हैं और उन्हें वेतन व सुविधाएं मिलती हैं।
– इथियोपिया में स्वास्थ्य विस्तार कार्यकर्ताओं को औपचारिक प्रशिक्षण और मान्यता दी जाती है।
भारत में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ऐसा ही काम करती हैं, लेकिन इन्हें ये हक नहीं मिलते। यह अंतर बदलाव की जरूरत को दर्शाता है।
सरकारी कदम और उनकी नाकाफी कोशिशें
कभी-कभी सरकार ने मानदेय में थोड़ी बढ़ोतरी की है। 2018 में केंद्र सरकार ने 1,500 रुपये की बढ़ोतरी की थी। लेकिन यह नाकाफी है। मान्यता, उचित वेतन और सुविधाओं के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई। यह इन कार्यकर्ताओं के प्रति सरकार की उदासीनता को दिखाता है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की आवाज
देशभर में ये कार्यकर्ता प्रदर्शन और यूनियनों के जरिए अपनी मांगें उठा रही हैं। ये चाहती हैं:
– नियमित कर्मचारी का दर्जा।
– मेहनत के हिसाब से उचित वेतन।
– बेहतर कामकाजी हालात और संसाधन।
– पेंशन और स्वास्थ्य बीमा।
उत्तर प्रदेश की एक कार्यकर्ता कहती हैं, सरकार के द्वारा महिला एवं बाल विकास के नाम पर “हमें इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है, जबकि हम देश के बच्चों का भविष्य संवारते हैं।”
बेहतर सम्मान और अधिकारों के लिए पुकार
ICDS के 50 साल पूरे होने पर सरकार को इनकी मेहनत का सम्मान करना चाहिए। इन्हें चाहिए:
– सरकारी कर्मचारी की मान्यता।
– न्यूनतम मजदूरी के बराबर मानदेय।
– बेहतर प्रशिक्षण और संसाधन।
– सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं। – आंगनबाड़ी केंद्रों में बुनियादी ढांचा।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को इन सुधारों को प्राथमिकता देनी होगी।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ग्रामीण भारत की वह अनसुनी ममतामयी Parent हैं। जिन्होंने 50 साल तक देश के सबसे कमजोर तबके की सेवा की, लेकिन बदले में इन्हें सिर्फ अनदेखी मिली। यह बेहद शर्मनाक है कि जो देश का भविष्य संभालती हैं, उन्हें सम्मान और हक नहीं मिलता। ICDS के 50 साल पूरे होने का जश्न तभी सार्थक होगा, जब इन कार्यकर्ताओं को उनका हक मिलेगा। अब वक्त है बदलाव का – और अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को उनका हक और सम्मान तो चाहिए ही चाहिए!
– उमा किशोरी नेताम
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