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रविवार, जुलाई 27, 2025
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50 साल की सेवा, फिर भी न कर्मचारी का दर्जा, न सम्मान: आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की ‘डबल इंजन’ सरकार से गुहार

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का हक और उनका संघर्ष: आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन

रायपुर/नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। देशभर में कार्यरत करीब 27 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने एक बार फिर अपनी मूलभूत मांगों को लेकर केंद्र और राज्य सरकार से न्याय की अपील की है। छत्तीसगढ़ की एक लाख से अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता-सहायिकाओं ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय को ज्ञापन प्रेषित कर उन्हें ‘नारी शक्ति की पीड़ा और मन की बात’ सुनने की अपील की है।

50 वर्षों की सेवा, फिर भी अधिकार से वंचित
ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता-सहायिकाएं देश में 2 अक्टूबर 1975 से आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास सेवा) योजना के तहत सेवा दे रही हैं। बच्चों, गर्भवती महिलाओं और किशोरियों के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी योजनाओं को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में इन कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

लेकिन दुर्भाग्यवश, आज तक इन्हें न कर्मचारी का दर्जा मिला है और न ही श्रमिक अधिकार। उन्हें न न्यूनतम वेतन मिलता है, न पेंशन, न ग्रेच्युटी, न समूह बीमा और न ही स्वास्थ्य सेवाएं – नितांत असंवेदनशीलता का यह उदाहरण 50 वर्षों से कायम है।

मानदेय के नाम पर उपेक्षा
ज्ञापन में बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मात्र 4500 और सहायिकाओं को 2250 रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जाता है – यह किसी भी दृष्टि से जीवनयापन योग्य नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा, न कोई महंगाई भत्ता, न पदोन्नति की व्यवस्था और न ही अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाएं इनके हिस्से आती हैं।

जब भी वे अधिकारों की मांग करती हैं, केंद्र सरकार राज्य सरकार पर और राज्य सरकार केंद्र पर ज़िम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लेती है।

अब केंद्र और राज्य दोनों जगह आपकी सरकार: महिलाओं की पुकार
छत्तीसगढ़ की कार्यकर्ताओं ने इस बार विशेष तौर पर ध्यान दिलाया है कि अब केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है, ऐसे में अब और बहानेबाज़ी की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से अपील की है कि वे इस ऐतिहासिक अन्याय का अंत करें और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता-सहायिकाओं को उनका हक दें।

प्रमुख मांगें:
1. सरकारी कर्मचारी का दर्जा:
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को तृतीय श्रेणी और सहायिका को चतुर्थ श्रेणी का सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए।

2. सम्मानजनक वेतन:
जब तक शासकीयकरण न हो, तब तक कार्यकर्ता को ₹26,000 और सहायिका को ₹22,100 मासिक मानदेय दिया जाए।

3. सामाजिक सुरक्षा:
सेवा निवृत्ति के समय पेंशन, ग्रेच्युटी, कैशलेस मेडिकल सेवा और समूह बीमा जैसी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं।

4. पदोन्नति का अधिकार:
सहायिका को कार्यकर्ता और कार्यकर्ता को पर्यवेक्षक (Supervisor) पद पर सीधी पदोन्नति दी जाए।

5. डिजिटल बाधाओं को समाप्त करें:
फेस केप्चर, FRS, e-KYC जैसे डिजिटल औपचारिकताओं के कारण कार्यकर्ताओं और लाभार्थियों को भारी व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः सभी प्रक्रियाएं ऑफलाइन की जाएं।

“नारी शक्ति को अनदेखा करना, देश की आत्मा को अनसुना करना है”
ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि “हम भी भारत की नागरिक हैं और महिलाएं हैं। हम मातृत्व और सेवा दोनों का बोझ 50 वर्षों से ढो रही हैं, लेकिन अब धैर्य का बंधन टूट रहा है। हमारी पीड़ा को संविधान की भावना के अनुरूप सुनिए।”

यह एक सीधी अपील है – राजनीति से ऊपर उठकर, संवेदनशीलता के साथ इन महिलाओं की दशा पर विचार करने की।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगें केवल वेतन या सुविधाओं तक सीमित नहीं हैं, यह सवाल है एक न्यायपूर्ण, संवेदनशील और सम्मानजनक सामाजिक व्यवस्था का। केंद्र और राज्य सरकार के लिए यह मौका है – इतिहास को सही करने का, नारीशक्ति को उनका वास्तविक सम्मान देने का।

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