सच का खोज करने वाले कोपरनिकस और गैलीलियो को भी सजा दी गई थी। लेकिन वे सच के रास्ता को त्यागकर झूठ को नही अपनाये थे।उनको सच बोलने की यह ताकत विज्ञान से मिली थी। क्यों कि विज्ञान कभी गलत नही हो सकता। विज्ञान में ही वह ताकत हैं जो मनुष्य को किसी के आगे झुकने से रोकता हैं।
विषम परिस्थितियों को सामना कर मार्क्स ने भी दुनियां में समाज में उत्पादन संबंध का बदलने के कारण का खोज किया।मार्क्स ही सबसे पहला दार्शनिक है जिन्होने समाज के परिवर्तन में किसी ईश्वरीय शक्ति को नकार कर जनता की भूमिका को प्रमुखता दिया।
वैज्ञानिक समाजवाद यानि निजी संपत्ति का खात्मा । वर्गीय समाज में शोषित जनता के आंसू पोछने के लिए कुध दार्शनिकों का मत था कि दुनियां में सभी मनुष्य भाई-भाई है इसलिए अमीरों को चाहिए कि वे अपनी आय का एक हिस्सा गरीबों को दान दे।
मार्क्स ने ही पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली की पूरी प्रक्रिया में ही किस तरह मनुष्य का शोषण होता है उसे उजागर किया।मार्क्स ने ही बताया कि पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली की खात्मा से ही मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण को समाप्त किया जा सकता हैं और मनुष्य (सर्वहारा वर्ग) ही इस पूंजीवादी समाज को उखाड़ फेक सकता हैं।
मार्क्स ने यह भी बताया कि सर्वहारा वर्ग को अपने आपको एक वर्ग के रूप मे संगठित होकर समूचे पूंजीवादी वर्ग के खिलाफ निर्णायक संघर्ष के जरिए वे इस शोषण और अत्याचार से मुक्ति हासिल कर सकते हैं।
अपनी कम्युनिस्ट घोषणापत्र की शुरूआत वे इस पंक्ति से करते है ” एक भूत यूरोप को सता रहा हैं- साम्यवाद का भूत”।
-सुखरंजन नंदी
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