“न्याज नूर आरबी ने सौंपा ज्ञापन, प्रशासन की चुप्पी और मीडिया की निष्क्रियता पर जताई नाराज़गी”
कोरबा (पब्लिक फोरम)। इंडस्ट्रियल विकास की आड़ में बालको नगर, कोरबा में 440 पेड़ों की कटाई का मामला अब गंभीर पर्यावरणीय संकट का रूप लेता जा रहा है। भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) की एक बहुमंजिला इमारत की परियोजना के लिए इंदिरा मार्केट, पाड़ीमार और बालको नगर क्षेत्र के सैकड़ों पुराने और घने वृक्षों को काटने की तैयारी चल रही है। इस पर नागरिक जन सेवा समिति के अध्यक्ष और भाजपा मोदी मित्र के प्रदेश प्रभारी मो. न्याज नूर आरबी ने विरोध दर्ज करते हुए जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा।
विकास या विनाश?
ज्ञापन में कहा गया है कि यह विकास परियोजना वास्तव में “हरित हत्या” का उदाहरण है, जहां पेड़ों के साथ पक्षियों का बसेरा, छांव और हवा शुद्ध करने वाली व्यवस्था भी नष्ट हो जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि इस परियोजना के लिए पर्यावरणीय प्रभाव का समुचित मूल्यांकन नहीं किया गया और जिला प्रशासन की उदासीनता गंभीर चिंता का विषय है।
“कोरबा देश के सर्वाधिक प्रदूषित जिलों में शामिल है। ऐसे में 440 पेड़ों की कटाई आत्मघाती कदम साबित हो सकती है,” – मो. न्याज नूर आरबी
मीडिया की चुप्पी पर सवाल
मो. न्याज नूर ने कोरबा के स्थानीय मीडिया की निष्क्रियता को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि यहां सैकड़ों पोर्टल्स और रिपोर्टर्स हैं, लेकिन इस “हरित नरसंहार” पर किसी का कैमरा या कलम सक्रिय नहीं है।
“जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ही पर्यावरण की लड़ाई में चुप है, तो आम जनता की आवाज कौन बनेगा?” — न्याज नूर आरबी
पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनी
पर्यावरणविदों का मानना है कि इतनी बड़ी मात्रा में पेड़ कटने से:
– वायु प्रदूषण में तेज़ी से बढ़ोतरी होगी।
– स्थानीय तापमान में असंतुलन उत्पन्न होगा।
– जैव विविधता को गहरा आघात पहुंचेगा। और भविष्य की पीढ़ियों को इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
स्थानीय जन समर्थन और अपील
इस विरोध प्रदर्शन और ज्ञापन सौंपने के दौरान बड़ी संख्या में बालको क्षेत्र के पुरुष, महिलाएं, वरिष्ठ नागरिक व आम नागरिक उपस्थित रहे। उन्होंने विकास के नाम पर हो रहे इस विनाश पर अपना आक्रोश जताया।
“विकास की रफ्तार जरूरी है, लेकिन अगर वह प्रकृति की कीमत पर हो तो वह प्रगति नहीं, विनाश का रास्ता होता है।” — मो. न्याज नूर आरबी
संतुलन की आवश्यकता
यह प्रकरण दर्शाता है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना अब केवल विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन चुका है। ज़रूरत है कि बालको प्रबंधन, जिला प्रशासन और पर्यावरण संगठनों के बीच तत्काल संवाद हो, जिससे कोई स्थायी और न्यायसंगत समाधान निकल सके।
बालको नगर में पेड़ों की कटाई का यह मामला एक चेतावनी है— यदि आज नहीं जागे तो कल सांस लेने को हवा भी नहीं बचेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रशासन, मीडिया और समाज इस संकट को गंभीरता से लेकर सकारात्मक कदम उठाएंगे।
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