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1972 को प्रथम विश्व पर्यावरण सम्मेलन स्वीडन में मनाया गया

सन 1972 को स्वीडन के स्टॉकहोम शहर में 05 से 16 जून को प्रथम विश्व पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसके बाद से प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। हाल ही में ऑक्सफैम इंटरनेशनल और स्टॉकहोम एन्वायरनमेंटल इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्सर्जन के मामले में विश्व के 1% सबसे अमीर लोग 50 % सबसे गरीब लोगो से अधिक उत्तरदायी हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार 1999 से 2015 तक उत्सर्जन बुद्धि में विश्व के 10% के सबसे अमीर लोगो की भूमिका 46% रही हैं जबकि सबसे गरीब वर्ग की 50% लोगो की भूमिका मात्र 6% रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी विश्व के 10 % सबसे अमीर लोगों में से आधे लोग उत्तरी अमरीका और यूरोपीय संघ से संबंधित हैं।

उत्सर्जन वृद्धि में भारत की भूमिका

वर्ष 2018 में दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एण्ड एन्वायरनमेंट नामक एक संस्था द्वारा प्रस्तुत आंकड़ो के अनुसार एक भारतीय प्रति वर्ष औसतन केबल 1.97 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता हैं। जबकि कनाडा के एक व्यक्ति प्रति वर्ष, 16 टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता हैं।वही यूरोपीय संघ के प्रति व्यक्ति औसतन 6.78 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करता हैं।

भारत में भी 10 % सबसे अधिक अमीर लोगो द्वारा किया गया उत्सर्जन 4.4 टन था वही अमरीका के 10% सबसे अधिक अमीर लोगो के द्वारा 52. 4 टन है जो भारत से 12 गुना अधिक हैं। पर्यावरण दूषित मुख्य रूप से विकसित देशों द्वारा किया हैं। दुनियां के कुल कार्बन उत्सर्जन का 1/5 हिस्सा सिर्फ अमरीका ही करता हैं।
पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली जिसका मुख्य उद्देश्य सिर्फ मुनाफा अर्जन करना है वे मनुष्य के श्रम और प्राकृतिक संसाधनों का भी शोषण करता हैं।एक तथ्य के अनुसार वर्ष 2019 में पिछले 20 लाख वर्ष में सबसे अधिक वायुमंडल में सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड की घनत्व में बुद्धि हुई हैं।सन 1950 के बाद वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की घनत्व में 47% व मिथेन की घनत्व में 156% की बुद्धि हुई हैं।और इसका उत्तरदायित्व प्रमुख रूप से अमरीका सहित विकसित देश हैं।

दुनियां के कुल आबादी का 5% अमरीका की जनसंख्या है वहा प्रति व्यक्ति औसतन 19.3 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता हैं।अमरीका सहित तमाम पूंजीवादी देश जितना कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है वह दुनियां देशो के कुल उत्सर्जन के दोगुना अधिक हैं।इसके साथ ही पूंजीवादी कृषि भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का 22% 37% के लिए जिम्मेदार हैं।

सन 2020 के एक रिपोर्ट के अनुसार सन 1970 से 2016 (46 वर्षों) के बीच पर्यावरण दुषण और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियां के कुल 80 लाख प्रजातियों ( पौधे,वनस्पति,पक्षी, कीड़े,पशु) में से 68% प्रजाति लुप्त हो गये हैं और 10 लाख प्रजाति लुप्त होने के कगार पर हैं। पूंजीवाद का मुख्य लक्ष्य सिर्फ मुनाफा होता हैं। मूनाफा का हवस के कारण ही पूंजीपियों प्रकृतिक संसाधनों का दोहन करता हैं। सभ्यता की शुरुआत से ही प्रकृति पर श्रम का उपयोग कर मनुष्य जरूरतों को पूरा करता था। लेकिन पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली मनुष्य की आवश्यकता के बदले अपने मूनाफा को केन्द्र में प्रकृति का दोहन-शोषण करता रहा हैं। आज इस भयावह स्थिति के लिए पूजीवादी व्यावस्था ही जिम्मेदार हैं।

पूंजीवादी व्यावस्था को जिंदा रहते है प्रकृतिक संसाधनों की लूट को रोका नहीं जा सकता है।पर्यावरण दिवस के अवसर पर कुछ पौधारोपण कर भी इस भयानक चुनौती का मुकाबला नही हो सकता। इस भयानक स्थिति के लिए बैकल्पिक नीति की जरूरत है। और यह नीति विकसित देशों को स्वीकार नहीं हैं। संघर्ष इस व्यावस्था को परिवर्तन करने के लिए हो। श्रम के शोषण और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण के खिलाफ एकसाथ आवाज उठना आवश्यक है। यूरोप के ग्रेटा थूनवर्ग के नेतृत्व में नारा दिया गया था “व्यवस्था में परिवर्तन करो!” बाद में इसे परिवर्तन कर नारा दिया गया “व्यवस्था को उखाड़ फैको!” -सुखरंजन नंदी

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