आइए, आज हम एक सपना देखते हैं। कैसा सपना? अरे वही, जो सब देखते हैं, लेकिन आज हम एक बड़ा सपना देखेंगे। क्या कहा? डर लगता है? वैसे बड़े सपने देखने में डर तो लगता ही है। फिर भी सपना देखने की एक बार हिम्मत तो कीजिए। अपनी पलकों को बंद कीजिए और कुछ देर के लिए उन्हें यूं ही बंद रहने दीजिए। अब आप आराम से सपना देखना शुरू कीजिए।
आइए, हम अपने इस अनोखे सपनों में अपने उस अनोखे भविष्य के बारे में सोचें कि हमारा प्यारा भारत एक बहुत ही प्यारा और खूबसूरत देश है।हमारे लोग और हमारा समाज इंसानियत से लबरेज एवं सभी का परवाह करने वाला एक जिम्मेदार समाज है। हम सभी हौसला और ईमानदारी में विश्व में एक आदर्श उदाहरण बन चुके हैं। हमने इस देश से गरीबी जैसे महामारी को जड़ से उखाड़ फेंका है।
बिजली, पानी, सड़क जैसी छोटी-छोटी समस्याओं से लेकर रोजी-रोजगार, रोटी कपड़ा और मकान स्वास्थ्य-चिकित्सा और शिक्षा जैसी कई बड़ी कमजोर कर देने वाली सरकारी परेशानियां भी दूर हो चुकी है। हम बिजनेस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पूरे विश्व का नेतृत्व करने लगे हैं। हमारी सांसे कितनी सुखद अनुभूति दे रही हैं। हवाएं कितनी प्रदूषण रहित हैं और हम कोई घुटन महसूस किए बिना कितनी अच्छी चैन की नींद से सोते हैं। हम, हमारा समाज और हमारा प्यारा देश बिना कोई भेदभाव के सबको समानता की भाव से देखता है और व्यवहार करता है। हम सभी एक दूसरे का सम्मान करते हुए सम्मान से जीते हैं। पूरा संसार हमें सम्मान की नजरों से देखता है।
हमारा समाज पूरी तरह से अपराध मुक्त हो चला है। अब हमारे बच्चों को और हमारी बेटियों को कभी भी, कहीं भी आने-जाने में अब कोई डर नहीं लगता। दुनिया के सभी देशों के लोग हमारे देश का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और आहें भरते हुए कहते हैं कि काश! हम भी भारत के नागरिक होते। कैसा लगा यह सपना? बहुत अच्छा लगा न! लगेगा ही।कितने प्यारे थे हमारे सपने।
अब यह तो थी सपने की बात! लेकिन वास्तव में सपनों की दुनिया से बाहर आकर हम अपने देश और अपनी दुनिया को खुली आंखों से देखें तो हमें यकीन करना होगा और हमें यकीन करना ही चाहिए कि ये सपने सच भी हो सकते हैं। और हम, यह सभी, और यूं कहें कि हम उन सपनों से भी ज्यादा हासिल कर सकते हैं जो अभी-अभी हमने देखा है। बहुत से देशों ने तो यह सब हम से पहले ही प्राप्त कर लिया है। फिर हम क्यों नहीं? हमारे पास भी सफलता प्राप्त करने के तमाम साधन व संसाधन मौजूद हैं। हम प्रतिभाशाली नागरिक हैं। हमारे पास भी अकूत-अथाह प्राकृतिक साधन हैं। हम भी एक एक्टिव प्रजातांत्रिक गणराज्य के लोग हैं। हमारी आंखों में भी आगे बढ़ने, ग्रोथ करने और विश्व में नंबर वन तथा यूनिक बनने के अदम्य लालसा लिए युवा और हसीन सपने हैं।
फिर भी हम अभी तक वहां क्यों नहीं पहुंच पाए जहां तक अन्य देशों के लोग कब से पहुंच चुके हैं। और अब तो वे हम से काफी दूर आगे भी निकल चुके हैं। अपने सपनों को याद रखते हुए आइए हम सोचते हैं कि आखिरकार हम भारत के लोग वहां तक क्यों नहीं पहुंच पाए।
क्या हम को कभी इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होता कि दूसरों के मुकाबले क्यों कुछ समाज ज्यादा ईमानदार और ज्यादा विकासशील होते हैं। यह कोई रॉकेट साइंस तो है नहीं। इसमें रहस्य वाली बात भी कुछ नहीं है। वह लोग केवल सोचते ही नहीं है। बल्कि दूसरों को ज्ञान पिला कर खुद को गुरु घोषित करने के बजाय प्रभावशाली ढंग से उन विचारों और उद्देश्यों पर समर्पित होकर अमल भी करते हैं और अपने कार्यों से, तथा अपने कार्य संस्कृति से एक ऐसा वातावरण पैदा कर देते हैं जहां पर मेहनत और ईमानदारी को हमेशा आदर और सम्मान मिलता है और उन्हें सम्मानित किया जाता है। लोकप्रिय विचारक शिव खेड़ा कहते हैं कि लोगों को उनके लक्ष्य तक पहुंचा देने वाली सड़क के नक्शे (road map) का उद्देश्य केवल इतना ही होता है कि उसे पढ़कर और समझ कर यात्रीगण पूरे आत्मविश्वास और सुख चैन से आरामदायक व सुरक्षित सफर कर सकें एवं अपनी मंजिल तक पहुंच सकें।
एक किसान अपने सेबों से भरे बगीचे में कीड़ों को मारने वाली दवाओं का छिड़काव कर रहा था तभी किसान के बगीचे के पास से गुजर रहे एक सज्जन ने किसान से बात करते हुए कहा कि जिस प्रकार से तुम अपने बगीचे में कीड़ों को मारने वाली दवाओं का छिड़काव कर रहे हो इससे तो साफ जाहिर है कि तुम मानवता, दयालुता और कीड़ों की जिंदगी के खिलाफ हो। क्या तुम सचमुच कीड़ों-मकोड़ों के भी खिलाफ हो?
उस किसान ने कुछ देर सोचा फिर कहा कि मैं कीड़ों की जिंदगी के खिलाफ बिल्कुल नहीं हूं लेकिन मैं अपने बगीचे के, और अपने सेबों के हक में जरूर खड़ा हूं, और आगे भी खड़ा रहूंगा। उसने और स्पष्ट करते हुए आगे बताया कि मैं दुनिया भर में कीड़ों को मारने वाली दवाइयों का छिड़काव करते हुए तो नहीं घूमता फिरता। बल्कि मैं तो सिर्फ उन्हीं कीड़ों के ऊपर दवाएं छिड़कता हूं जो मेरे सेबों को खा जाते हैं और मेरे पूरे बगीचों को बर्बाद कर देते हैं। अगर एक जिम्मेदार किसान होने के नाते मैं अपने सेबों और बगीचों की रक्षा में खड़ा होने के लिए तैयार नहीं रहूंगा तो फिर कौन? कौन आएगा? और फिर किसकी जिम्मेदारी होगी मेरे बगीचों की रक्षा करने के लिए?
क्या इस कहानी में सीखने लायक कोई संदेश है?अगर कुछ है तो हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा। शुक्रिया।
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