रविवार, जुलाई 20, 2025
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वेदांता पर हिंदुस्तान जिंक को कमजोर करने और राष्ट्रीय खनिज संपदा के दुरुपयोग का आरोप: ईएएस सरमा ने सरकार को चेताया

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। पूर्व ऊर्जा एवं वित्त सचिव ईएएस सरमा ने केंद्रीय खान मंत्री किशन रेड्डी को लिखे एक तीखे पत्र में गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि वेदांता समूह अपनी लंदन स्थित मूल कंपनी, वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड (वीआरएल) के कर्ज को चुकाने के लिए हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) के मुनाफे का इस्तेमाल कर रही है, जिससे एचजेडएल को कमजोर किया जा रहा है। सरमा ने हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा वेदांता-नियंत्रित एचजेडएल को एक अत्यंत मूल्यवान पोटाश खनिज ब्लॉक आवंटित करने के फैसले पर भी चिंता व्यक्त की है, खासकर कंपनी के भारत के जिंक संसाधनों के प्रबंधन के खराब ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए।

अत्यधिक लाभांश: क्या है पीछे की कहानी?

श्री सरमा ने एचजेडएल द्वारा बार-बार दिए जाने वाले अत्यधिक लाभांश की ओर ध्यान दिलाया है। एचजेडएल, जिसके पास महत्वपूर्ण जस्ता खनन संपत्तियां हैं और जिसमें सरकार की अभी भी 29.54% हिस्सेदारी है, के शेयरधारकों को भारी मुनाफा बांटा जा रहा है। सरमा के अनुसार, भले ही ये भुगतान अल्पकालिक में सरकारी खजाने के लिए आकर्षक लगें, लेकिन सच्चाई यह है कि 63% से अधिक लाभांश वेदांता को जाता है, जो इस पैसे का उपयोग अपनी मूल कंपनी, वीआरएल के बढ़ते कर्ज को निपटाने के लिए करती है।

उन्होंने इन लाभांश भुगतानों के वित्तीय औचित्य पर सवाल उठाए हैं, विशेष रूप से तब जब हिंदुस्तान जिंक का सालाना मुनाफा इतनी उदारता को उचित नहीं ठहराता। सरमा ने चेतावनी दी है, “यह कंपनी अधिनियम की धारा 123 का उल्लंघन हो सकता है।” उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि वेदांता ने जिंक अन्वेषण में पुनर्निवेश किया होता, तो उसे इतना अधिशेष प्राप्त नहीं होता कि वह इतना अधिक लाभांश वितरित कर सके।

राष्ट्रीय खनिज सुरक्षा पर खतरा

श्री सरमा का तर्क है कि इस पूरी प्रक्रिया में असली कीमत भारत की दीर्घकालिक खनिज सुरक्षा को चुकानी पड़ रही है। आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए, सरमा बताते हैं कि 2013 में, भारत के जस्ता भंडार तत्कालीन उत्पादन दर पर 11 साल तक चलने का अनुमान था। लेकिन अब, आक्रामक खनन और नए अन्वेषणों की कमी के कारण, यह समय-सीमा घटकर सात साल से भी कम रह गई है। वे चेतावनी देते हैं कि वर्तमान में सालाना 17 मिलियन टन जस्ता अयस्क का निष्कर्षण हो रहा है, जिसमें से 30% धातु का निर्यात किया जाता है, और भारत जल्द ही घरेलू जस्ता भंडार से पूरी तरह से समाप्त हो सकता है।

श्री सरमा इसे वेदांता द्वारा अपनी मूल कंपनी के वित्तीय दायित्वों को पूरा करने के लिए एचजेडएल के संसाधनों के दुरुपयोग का जानबूझकर किया गया प्रयास बताते हैं। उन्होंने लिखा है, “न तो खान मंत्रालय और न ही वित्त मंत्रालय ने विवेकपूर्ण लाभांश नीति लागू करने या यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप किया है कि भारत का जस्ता उत्पादन टिकाऊ बना रहे।”

पोटाश ब्लॉक आवंटन: एक गंभीर नीतिगत भूल?

विवाद का एक और ताजा केंद्र राजस्थान में झंडावली-सतीपुरा अमलगमेटेड पोटाश और हैलाइट ब्लॉक को हिंदुस्तान जिंक को आवंटित करने का सरकार का निर्णय है। इस ब्लॉक में 10 करोड़ टन से ज़्यादा पोटाश अयस्क होने का अनुमान है, जो उर्वरकों के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है। भारत वर्तमान में अपनी पोटाश की 100% यानी सालाना 20 लाख टन से ज़्यादा की ज़रूरत आयात करता है। श्री सरमा इस ब्लॉक की मौजूदा बाज़ार भाव पर क़ीमत 35 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा आंकते हैं और वेदांता को इसे सौंपे जाने को ‘एक गंभीर नीतिगत भूल’ करार देते हैं।

वित्तीय जोखिम और राष्ट्रीय संपत्ति का दुरुपयोग

उनका तर्क है कि वेदांता अपनी पूंजी से ब्लॉक विकसित करने के बजाय, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) से ऋण लेने के लिए इसे गिरवी रख सकता है। इससे न केवल वित्तीय जोखिम बैंकिंग प्रणाली पर आ जाएगा, बल्कि अंततः जमाकर्ताओं को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। वे इसे ‘लगभग एक राष्ट्रीय संपत्ति को थाली में परोस देने जैसा’ बताते हैं।

न्यायिक जाँच की मांग

श्री सरमा ने खान मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के साथ अपने पूर्व पत्राचार का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया था कि कैसे वेदांता की कार्यप्रणाली एचजेडएल की स्वस्थ भंडार-से-उत्पादन अनुपात बनाए रखने की क्षमता को नुकसान पहुंचा रही है।

उन्होंने अपने पत्र का समापन हिंदुस्तान जिंक के कथित कुप्रबंधन और वेदांता को लाभ पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय खनिज संपदा के दुरुपयोग की न्यायिक जाँच की माँग के साथ किया है। इसके विकल्प के तौर पर, उन्होंने मंत्रालय से व्यापक जनहित में हिंदुस्तान जिंक की लाभांश नीति की समीक्षा करने और रणनीतिक खनिज ब्लॉक निजी कंपनियों को देने पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। इसके बजाय, वे अनुशंसा करते हैं कि ऐसी संपत्तियाँ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) को सौंपी जानी चाहिए, जो उनके विचार से अधिक जवाबदेह और जन कल्याण के प्रति समर्पित हैं।

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