बुधवार, जुलाई 23, 2025
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वेदांता पर बड़ा खुलासा: गुप्त पाइपलाइन से हिंदुस्तान ज़िंक का पैसा विदेश भेजने का आरोप? वायसरॉय रिपोर्ट से हड़कंप

🔸वायसरॉय रिसर्च की रिपोर्ट में वेदांता समूह पर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) से मुनाफ़ा निकालने का गंभीर आरोप।
🔸मिनोवा रुनाया नामक एक ज्वाइंट वेंचर को “पासथ्रू” कंपनी की तरह इस्तेमाल करने का दावा।
🔸आरोप है कि प्रमोटरों ने नियमों को ताक पर रखकर खुद को फायदा पहुंचाया, जिससे सरकारी खजाने और छोटे 🔸निवेशकों को नुकसान हुआ।
मामले में सेबी, कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय और खनन मंत्रालय से जांच की मांग।

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। अरबपति अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले वेदांता समूह पर एक बार फिर कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। एक सनसनीखेज रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि समूह ने अपनी सहयोगी कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) से करोड़ों रुपये का मुनाफ़ा एक “गुप्त पाइपलाइन” के ज़रिए अपनी निजी संस्थाओं में पहुंचाया है। शॉर्ट-सेलर फर्म वायसरॉय रिसर्च (Viceroy Research) द्वारा जारी इस रिपोर्ट ने भारतीय कॉर्पोरेट जगत में भूचाल ला दिया है, खासकर इसलिए क्योंकि हिंदुस्तान जिंक में भारत सरकार की भी एक बड़ी हिस्सेदारी है।
यह रिपोर्ट एक ऐसी कहानी बयां करती है, जिसमें दोस्ती, दिखावा और धोखे की गंध है, और जिसके केंद्र में है मिनोवा रुनाया प्राइवेट लिमिटेड नामक एक ज्वाइंट वेंचर कंपनी।

मुनाफ़े की गुप्त पाइपलाइन: क्या है मिनोवा रुनाया का सच?

रिपोर्ट का दावा है कि मिनोवा रुनाया असल में कोई बड़ी उत्पादन इकाई नहीं, बल्कि सिर्फ एक “पासथ्रू” यानी पैसा आगे बढ़ाने वाली कंपनी है। यह कंपनी, मिनोवा मिनेटेल प्राइवेट लिमिटेड और रुनाया मेटसोर्स एलएलपी के बीच 51:49 का एक संयुक्त उद्यम है। रुनाया मेटसोर्स पर वेदांता के प्रमोटरों का नियंत्रण है, जिसका सीधा मतलब है कि इस खेल का एक बड़ा हिस्सा सीधे अनिल अग्रवाल के परिवार तक पहुंचता है।

आरोप है कि पिछले चार सालों से यह ज्वाइंट वेंचर बिना कोई ठोस उत्पादन किए हिंदुस्तान जिंक को ऊंचे दामों पर माल बेच रहा था। यह एक ऐसा चक्रव्यूह था, जिसे सिर्फ और सिर्फ HZL के खजाने से पैसा निकालकर प्रमोटरों की जेब तक पहुंचाने के लिए रचा गया था।

रिपोर्ट के गंभीर आरोप: एक नज़र में

– मुनाफ़ा सीधे प्रमोटरों को: एमसीए के दस्तावेज़ बताते हैं कि मिनोवा रुनाया में 49% हिस्सेदारी रखने वाली रुनाया मेटसोर्स का 99% हिस्सा ट्विनस्टार ओवरसीज़ के पास है, जिसके अंतिम लाभार्थी स्वयं अनिल अग्रवाल हैं। यह इस बात का सीधा संकेत है कि पूरा तंत्र प्रमोटरों को फायदा पहुंचाने के लिए ही बनाया गया था।
– नियमों की अनदेखी?: वायसरॉय ने सवाल उठाया है कि क्या इन लेन-देन के लिए कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 188 के तहत ऑडिट कमेटी से मंज़ूरी ली गई थी? सबसे बड़ा सवाल यह है कि HZL के बोर्ड में बैठे सरकार द्वारा नियुक्त निदेशकों ने इन सौदों पर अपनी सहमति कैसे दे दी?
– वित्तीय आंकड़ों में झोल: रिपोर्ट में एक हैरान करने वाली विसंगति का ज़िक्र है। वित्त वर्ष 2023-24 में मिनोवा रुनाया ने HZL से 253 करोड़ रुपये की आय दिखाई, जबकि उसका कुल राजस्व ही 222 करोड़ रुपये था। यह गणितीय हेरफेर अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
– सिर्फ़ कागज़ों पर घूमता पैसा: एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि मिनोवा रुनाया ने वेदांता समूह की ही एक अन्य कंपनी, ईएसएल स्टील से 36 करोड़ रुपये का माल खरीदा और उसे 30% मुनाफ़े के साथ HZL को बेच दिया। यह एक क्लासिक उदाहरण है कि कैसे पैसा समूह के भीतर ही घुमाकर मुनाफ़ा बनाया जा रहा था, जबकि असल में कोई मूल्यवर्धन नहीं हुआ।

गोदाम या फैक्ट्री? तस्वीरों ने खोली पोल

रिपोर्ट में सोशल मीडिया और गूगल मैप्स की तस्वीरों का हवाला देते हुए कहा गया है कि मिनोवा रुनाया का परिसर एक औद्योगिक निर्माण इकाई जैसा नहीं, बल्कि एक साधारण गोदाम जैसा दिखता है। सवाल उठता है कि अगर वहां कोई बड़ा उत्पादन होता ही नहीं था, तो करोड़ों रुपये का माल HZL को कैसे बेचा जा रहा था?

रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में मिनोवा रुनाया का कुल आयात सिर्फ़ 5.49 करोड़ रुपये था, जिसमें कच्चे माल की लागत महज़ 23 लाख रुपये थी। ऐसे में 253 करोड़ रुपये की बिक्री और उस पर 30% का मार्जिन किसी बड़े घोटाले की ओर इशारा करता है।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर कड़े सवाल और आगे की राह

यह मामला सिर्फ़ वित्तीय गड़बड़ी का नहीं, बल्कि भरोसे के टूटने का भी है। इसने हिंदुस्तान जिंक की ऑडिट कमेटी, स्वतंत्र निदेशकों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। क्या इन सभी ने जानबूझकर इन लेन-देन को नज़रअंदाज़ किया?

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब गेंद सेबी, कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) और खनन मंत्रालय के पाले में है। मांग की जा रही है कि इस पूरे प्रकरण की एक निष्पक्ष और गहरी जांच हो। अगर आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न केवल वेदांता समूह के लिए एक बड़ा झटका होगा, बल्कि यह भारत के कॉर्पोरेट गवर्नेंस के ढांचे पर भी एक स्थायी दाग छोड़ जाएगा।

फिलहाल वेदांता लिमिटेड ने इन आरोपों पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन वायसरॉय द्वारा पेश किए गए सबूतों ने मामले को नियामक एजेंसियों और निवेशकों की नज़रों में ला दिया है। यह देखना अहम होगा कि सरकार अपने ही उपक्रम में हुए इस कथित घोटाले पर क्या कदम उठाती है, क्योंकि इसमें सिर्फ़ पैसे का नहीं, बल्कि लाखों छोटे निवेशकों के विश्वास का भी सवाल है।

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