रविवार, जुलाई 20, 2025
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राधिका यादव हत्याकांड: ‘न्यू इंडिया’ में बेटियों की ‘इज्जत’ के नाम पर पिता ने की हत्या, मनुस्मृति की सोच हावी

जब राधिका को मारने आये मनु के चरणों में लहालोट होते मनुजाये

पिछले सप्ताह जब दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा नदी की तरह उफना पड़ रहा था, गाड़ियाँ डूब रही थीं, यूपी से गुजरात तक चारों ओर पुल टूट कर गिर रहे थे, उसी सप्ताह में इसी राष्ट्रीय राजधानी के एक पॉश इलाके के एक बड़े से घर में एक इंटरनेशनल टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की साँसों का पुल टूट गया, एक युवती के सपने खुद उसी के खून में डूब गए। दिल्ली देर-सबेर सूख जायेगी, मगर राधिका के खून के धब्बे – यदि उनके निशान और जहां ले जाए जाने के वे संकेत दे रहे हैं, उस मुकाम की सही शिनाख्त नहीं हुई तो – बहुत कुछ लहूलुहान करने की आशंका से भरे हैं।

राधिका यादव खुद अपने पिता के हाथों मारी गयी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से यह भी साफ़ हो गया कि हत्यारे पिता का पीछे से गोलियां मारने का दावा गलत था, गोलियां उसकी आँखों से आँखें मिलाकर उसके सीने में मारी गयी थीं। हत्या के पीछे के जघन्य इरादे पर पर्दा डालने के लिए आनन-फानन में इसे हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की कोशिशें हुईं, मगर वे ज्यादा देर तक नहीं टिकीं – हालांकि हरियाणा पुलिस ने इसे लपक कर अपने खींसे में डाल लिया है और जांच के लायक बताया है। बहुत संभव है कि देर-सबेर यह कुटिलता आजमाई जाए। मगर फिलहाल राधिका की ख़ास दोस्त ने हत्या से पहले यंत्रणा के जिस दौर से वह गुजर रही थी, उसकी सच्चाई सामने ला दी है। सभी अफवाहों और सनसनियों को बेबुनियाद बताते हुए हिमान्शिका ने जो बताया, उसका सार यह है कि “राधिका का परिवार उसकी खेलकूद और सांस्कृतिक अभिरुचियों को नापसंद करता था, राधिका पर सख्त पाबंदियां लगाता था, उसके वीडियो कॉल्स पर निगरानी रखता था, अपने ऊपर सोसायटी के प्रेशर की बात करता था, हर छोटी-बड़ी बात पर उसे टोकता था, उससे सफाई माँगता था। वह घुट कर रह गयी थी।  लड़कों से बातचीत करने पर, शॉर्ट्स तक पहनने पर रोका-टोका जाता था। राधिका अपनी शर्तों पर जीती थी, जो उसके घर वालों को पसंद नहीं था। इन सब पर रोक लगाने के लिए आखिर में उसकी हत्या ही कर दी।“

उसके पिता ने भी यही बात अलग अंदाज में कही है। उसने कहा कि उसके गाँव के लोग और रिश्तेदार उसकी बेटी को लेकर ताना मारा करते थे। पुलिस के मुताबिक़ उसकी नजर में “ग्रामीणों द्वारा ताने मारे जाने के बाद अपनी बेटी को एकेडमी बंद करने के लिए कहने के अलावा कोई और मकसद सामने नहीं आया है।” मतलब यह कि यह हत्या तात्कालिक गुस्से या क्रोध में नहीं की गयी, ठंडे दिमाग से योजना बनाकर की गयी है। एक काबिल खिलाड़ी की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गयी, क्योंकि वह अपनी तरह की सृजनात्मकता में दिलचस्पी रखती थी, बच्चों को ट्रेनिंग देती थी, उन्हें खेलना सिखाती थी, संगीत पसंद करती थी। 

उसे सिर्फ इसलिए मार डाला गया, क्योकि उसके ऐसा करने से परिवार की  ‘इज्जत और प्रतिष्ठा’  खराब हो रही थी। उसके बाप को “सोसायटी” के ताने-तिश्ने सुनने पड़ते थे। यह हत्या उनके द्वारा की गयी, जो आधुनिकता से अपरिचित किसी दूरदराज के गाँव-खेड़े में नहीं, मॉडर्न और विकसित भारत की धनी बसाहटों में से एक गुडगाँव – जिसे अब गुरुग्राम कहा जाने के लिए कहा गया है – में रहते थे। यह हत्या उच्च मध्यम वर्ग के ऐसे परिवार में की गयी है, जिसके बारे में यह भ्रम पाला जाता है कि वह दकियानूसीपन से बाहर आ चुका है।यही है न्यू इंडिया – मोदी का न्यू इंडिया। यही वह ताने मारने वाली ‘सोसायटी’ है, जो इस नए भारत में पाल पोस कर तैयार की जा रही है ; यही हैं उसकी ‘इज्जत और प्रतिष्ठा’ के मानदंड, जो एक पिता को अपनी ही बेटी की हत्या करने और उसे ‘वध’ बताने की बर्बरता से लैस करती है। इसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि इसके पहले का भारत युवतियों और महिलाओं के लिए कोई स्वर्ग था – बिलकुल नहीं। मगर नरक जैसे हालात से बाहर आने की ओर उद्यत तो था। पूरी तरह सुबह नहीं हुई थी, मगर भोर के उजाले की आमद तो दिखने लगी थी। समाज की चेतना और जागृति में, भले धीमे-धीमे ही सही, एक सकारात्मक  परिवर्तन तो हो रहा था, महिलाओं में बेड़ियों से मुक्त होने की जिद और उसके लिए जूझने के संकल्प तो सुदृढ़ हो रहे थे। बहसों, आन्दोलनों, संघर्षों और उनके दबाब में उठाये गए धनात्मक कदमों से सदियों पुरानी वे जंजीरें ढीली हो रही थीं, जिन्हें कुछ स्मृतियों की धधकती आग में पिघलाकर,  कई संहिताओं के कठोर सांचों में ढालकर, परम्पराओं के नाम पर आभूषण बताकर भारतीय समाज और उसमें भी खासकर महिलाओं को नख से लेकर शिख तक पहनाया गया था।

मोदी के न्यू इंडिया – जो दरअसल मनुस्मृति में यकीन करने वाले संघ का न्यू इंडिया है – में इस सबको उलटा जा रहा है। मनु का झंडा उठाये पिछड़ी चेतना का जैसे अंधड़ सा ही ला दिया है। राधिका यादव उसी अंधड़ की भेंट चढ़ गयी है। यह दीपक यादव नहीं था, यह मनु था, जो इस बार हाथ में बन्दूक लेकर मनु की तय सीमाएं लांघ रही राधिका का ‘वध’ करने आया था। उसके द्वारा हत्या की जगह ‘वध’ के शब्द का उपयोग अकारण ही नहीं ; वह हत्या और वध में अंतर जानता है। उसे पता है कि शास्त्रानुसार ‘वध’ दैत्यों और असुरों, बुरे लोगों का किया जाता है और इस तरह एक पुण्य काम होता है।

मनुस्मृति, जिसे भारत के संविधान की जगह प्राण प्रतिष्ठित करने के लिए भाजपा का मात-पिता संगठन कटिबद्ध है, वह ग्रन्थ है, जो पूरे विस्तार के साथ महिलाओं की स्थिति के बारे में नियम निर्धारित करता है।  इसके अध्याय नौ में 300 से ज्यादा श्लोक हैं, जिनमें महिलाओं के साथ किए जाने वाले बर्ताव के बारे में विस्तार से प्रावधान किए गए हैं :

इनमें से एक श्लोक कहता है कि “सभी जातियों में इस कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए कि  पत्नियों और महिलाओं पर चौकसी रखी जाये।” 

एक और श्लोक में कहा गया है कि “ईश्वर ने महिला को बनाते वक्त उसमें जिस तरह की मनोवृत्ति जोड़ी थी, उस को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि पुरुष  पूरे ध्यान  से उन पर निगरानी रखें।”

मनुस्मृति का एक और कुख्यात श्लोक महिलाओं के बारे में यह प्रावधान करता है कि “बचपन में उसे अपनी पिता के संरक्षण में, युवा काल में पति के संरक्षण में और बुढ़ापे में अपने पुत्रगणों के संरक्षण में रहना चाहिए। एक औरत कभी भी स्वाधीन रहने के काबिल नहीं होती।”  

एक और श्लोक निर्देश देता है कि “परिवार में पुरुषों को चाहिए कि वे औरत को दिन-रात अपना गुलाम बना कर रखें और जब भी वे यदि इंद्रिय भोग का सुख लेना चाहें, तब लें और स्त्री को हमेशा अपने  वश में रखें।”

यह मनुस्मृति थी, जो भारत की गुलामी का एक बड़ा कारण बनी थी। यही वजह है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जितने भी राजनीतिक और सामाजिक सुधार के आंदोलन चले, उनमें से ज्यादातर ने इस मनुस्मृति को अभिशाप माना और इसके दुष्प्रभावों से समाज को मुक्त कराने के अभियान छेड़े। मगर कुछ लोग थे, जो उस दौर में अंग्रेजों की गुलामी को भी अभिशाप नहीं मानते थे।  जो तब भी मनुस्मृति को ही भारत पर राज करने का एकमात्र समुचित और व्यवस्थित प्रावधान मानते थे। यही कुछ लोग हैं, जो बाद में आरएसएस के रूप में संगठित हुए और जिन्होंने आजादी के महासंग्राम का विरोध किया। जनता ने इन्हें तब ठुकरा दिया था। हालात कुछ बदले, मगर पुनरुत्थानवादी गिरोह ने अपनी कोशिशें जारी रखीं। पिछले 11 वर्षों से सत्ता सूत्र उसके हाथ में आते ही सामाजिक सोच को दूषित करने का नतीजा 10 जुलाई को राधिका यादव के घर पहुँच गया।

इन्होंने मनुस्मृति कभी नहीं त्यागी – उसके प्रति अपना समर्पण बार बार दोहराया। आरएसएस – जो मनुस्मृति के आधार पर राज लाना चलाना चाहता है, उसके विचार गुरु गोलवलकर के शब्दों में : “एक निरपराध स्त्री का वध पापपूर्ण है, परन्तु यह सिद्धांत राक्षसी के लिए लागू नहीं होता।“ – राक्षसी कौन? जो उनके मनु के कहे को न माने।  इस प्रसंग में वे एक कहानी सुनाते है, जिसमे शादी के लिए अपने परिवार को राजी करने में असफल प्रेमी अपनी प्रेमिका का गला घोंट कर मार देता है और उसे तनिक भी पीड़ा नहीं होती। 

उन्होंने अनेक बार कहा कि महिलायें मुख्य रूप से माँ है। उनका काम बच्चों को जन्म देना, पालना पोसना, संस्कार देना है। यह सिर्फ एक ‘गुरु जी’ के कथन नहीं है, यह संघ के हिन्दू राष्ट्र का विधान है, जिसे बाद के सरसंघचालकों ने भी बार-बार दोहराया है। इसकी महिला शाखा राष्ट्र सेविका समिति की नेता सीता अन्नदानम भी यही मानती हैं। उन्होंने कहा कि “हमारी परम्पराओं में महिला अधिकारों के बीच संतुलन चाहिए। पिता की संपत्ति में हिस्सा हमारी संस्कृति नहीं है। शास्त्रों में जिस तरह लिखा है, वैसा ही किया जाना चाहिए – वैवाहिक बलात्कार नाम की कोई चीज नहीं होती – यह पाश्चात्य धारणा है।  समता, बराबरी, लोकतंत्र सब पाश्चात्य धारणा है।“ 

इन्हें समय समय पर लागू भी किया गया। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए महिलाओं की “सुरक्षा” के नाम पर एक ख़ास “इंतजाम” का एलान किया गया था, जो पुलिस का उन पर नजर रखने, उनकी आवाजाही की निगरानी करने का था। शिवराज के बयान के अनुसार मध्यप्रदेश में “जो भी महिलायें नौकरी या काम पर जाएगी, उन्हें अपने पुलिस थाने में अपना पंजीयन कराना होगा, ताकि पुलिस उन्हें ट्रैक कर सके, मतलब उन पर निगरानी रखी जा सके।” कामकाजी महिलाओं से शुरू किये गए इस इंतजाम में बाद में सभी लड़कियों, कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं और घर से बाहर निकलने वाली बाकी की महिलाओं को भी निगरानी के दायरे में लिया जाएगा। यही सोच है, जिसके चलते इन 11 सालों के राज में कथित सम्मान हत्याओं – ऑनर किलिंग – के खिलाफ कोई कानून नहीं लाया गया।

तय है कि लोकतंत्र की सिकुड़न के इस दौर में, वह जहां पहले से ही सिकुड़ा हुआ था, वहां और भी ज्यादा संकुचित होगा। जहां सामाजिक लोकतंत्र नाम के वास्ते हो, परिवारिक लोकतंत्र एकदम अनुपस्थित हो, ऐसे समाज में मनु की बहाली सिर्फ सदियों पुरानी कीचड़ और काई को लहलहाने भर तक नहीं रुकेगी, यह हाल की डेढ़-दो सदी में चले सामाजिक सुधार आन्दोलनों की हासिल कमाई को भी हड़प लेगी।

भारतीय दर्शन के इतिहास में एक कहानी है। जनक के दरबार में शास्त्रार्थ चल रहा था। एक तरफ पुनर्जन्म और कर्मफल के सिद्धांत और नारी की हीनता और ब्राह्मणवाद की श्रेष्ठता के प्रतिपादक याज्ञवल्क्य थे, दूसरी तरफ याज्ञवल्क्य के गुरु की पत्नी की भतीजी और इन सब धारणाओं की मुखर विरोधी गार्गी थी। दो दिन तक चले शास्त्रार्थ में जब याज्ञवल्क्य हारने को हुआ और निरूतर हो गया, तो चिल्लाकर बोला कि “गार्गी अब अगला सवाल मत करना, वर्ना तेरा सर धड़ से गिर जायेगा।“  गार्गी ने उसे जवाब देते हुए कहा था कि याज्ञवल्क्य तेरी भाषा एक विद्वान की भाषा नहीं, ऐसा तो उग्र लोहितपाणी – खून से हाथ रंगने वाले – ही बोल सकते हैं। गार्गी को बोलने से रोक दिया गया। याज्ञवल्क्य विजयी घोषित किया गया। इनाम में हजारों सुन्दर दासियां, अनगिनत सोने की अशर्फियां, हजारों गायें मिली।

इस अपमान से आहत गार्गी का अपनी बुआ लोपा के साथ हुआ संवाद दिलचस्प है। राहुल सांकृत्यायन इसे वोल्गा से गंगा में दर्ज करते हैं : लोपा कहती है, “तू बच्ची है गार्गी। तू जानती है कि यह ब्रह्मवाद मन की उड़ान है, मन की कलाबाजी है। इसके पीछे राजाओं और ब्राह्मणो का बहुत बडा स्वार्थ छिपा है। यह राजसत्ता और ब्राह्मणसत्ता को दृढ़ करने का भारी साधन है। बहुत से लोग इस बात को नहीं समझते। राजा जनक भी नहीं समझता होगा, मैं भी नहीं समझती थी, पर मेरा पति प्रवाहण समझता था और याज्ञवल्क्य जो उसका पक्का चेला है, एकदम समझता है। जनता की गाढ़ी कमाई को मुफ्त में खाने का तरीका है। यह राजवाद, ब्राह्मणवाद, यज्ञवाद है। प्रजा को कोई इस जाल से तब तक नहीं बचा सकता, जब तक वह खुद सचेत न हो और उसे सचेत होने देना इन स्वार्थियों को पसंद नहीं। क्या मानव हृदय हमें इस वंचना से घृणा करने की प्रेरणा नहीं देगा? बेटी,  मुझे एकमात्र उसी की आशा है।“

लोपा को एकमात्र आशा मानव ह्रदय से थी। मनुजायों का कुनबा इसीलिए समाज को हृदयहीन बना देने की महापरियोजना लेकर आया है। राधिका की निर्मम हत्या के बाद सोशल मीडिया पर किया जा रहा कपालिक नृत्य इसी परियोजना का हिस्सा है!! यही बिना किसी प्रमाण या आधार के राधिका को लांछित करते उन कुंठित कापुरुषों में दिखता है, जो हत्यारे पिता के लिए ‘सैल्यूट दीपक यादव’ की मुहिम छेड़े हुए है। उसके द्वारा टेनिस पर खर्च की गयी ढाई करोड़ की कथित रकम और स्कूल की पढाई के लिए चुकाई गयी फीस की दुहाई देकर दावा कर रहे हैं कि जिस पिता ने उसे उड़ान के लिए पंख दिए, उसी को गालियाँ दी जा रही हैं।

इनमें से कई तो इस बात के लिए भी हत्यारे की स्तुति गा रहे हैं कि उसने बजाय पीठ पर मारने के सीधे सीने पर गोलियां दागी। कहने की जरूरत नहीं कि हत्यारे की प्रशस्ति में हुआं-हुआं करते ये शाखा शृगाल किस सोच  से इतनी नफरत और विषाक्तता लेकर आये हैं। ये वही भाषा बोल रहे हैं, जो कोई दो हजार साल पहले मनु ने बोली थी – वही हिदायतें दे रहे हैं, जो मनु जाये देते रहते हैं। ऐसी ऑनर किलिंग्स को धर्मोचित बताने वाले ये बर्बर  मांग कर रहे हैं कि लड़कियों की शादी के लिए शास्त्र सम्मत नियम विधान – नॉर्म्स – तय किये जाएँ और उन्हें सख्ती से लागू किया जाए। कल्पना ही की जा सकती है कि इनके अपने घर की स्त्रियाँ, इनकी माँ, पत्नी, बहन और बेटियाँ किस तरह का जीवन जीने के लिए अभिशप्त होंगी।

(लेखक: बादल सरोज)

ऊपर लिखी कथा में याज्ञवल्क्य ने जब गार्गी को मार डालने की धमकी देकर चुप कराया था, तब जनक खामोश था। आज जनक और याज्ञवल्क्य एकमेक हुए पड़े हैं। गार्गी को जबरिया खामोश किये जाने के साथ आधी आबादी की जिस बाड़ाबंदी और मौन की शुरुआत हुयी थी, उसने न जाने कितनी लोपा, अपाला और मैत्रेयीओं को अधेरे में धकेल दिया, कितनी राधिकाएं मार डाली गयीं। इस बाड़े और मौन को  तोड़ना है, तो गार्गियों को तो जोखिम उठानी ही होगी –  वे उठा भी रही हैं। अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर भी उतर रही हैं, जान की जोखिम भी उठा रही हैं।

मगर यह सिर्फ गार्गियों और राधिकाओं तक की बात नहीं है। जो भी सभ्य और लोकतांत्रिक समाज और मानवीय दुनिया चाहते हैं, उन्हें भी बोलना होगा। जनक या उसका दरबारी बनने की बजाय गार्गी से लेकर राधिका तक को चुप कर देने के खिलाफ बोलना होगा।
(लेखक: बादल सरोज, लोकजतन के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव)

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