बेरोजगारी के खिलाफ भी प्रस्ताव पारित
केरल/कन्नूर (पब्लिक फोरम)। माकपा की लड़ाई देश के उस भविष्य की रक्षा करने की लड़ाई है, जिसका सपना हमारे देश के स्वाधीनता सेनानियों और समाज सुधारकों ने देखा था। आज संघी गिरोह देश के धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक चरित्र को खत्म करना चाहता है। इसके लिए वह संविधान के बुनियादी मूल्यों के साथ ही दगाबाजी कर रहा है, जिसकी रक्षा की शपथ लेकर वह दुबारा सत्तासीन हुआ है। हिन्दुत्व की अपनी फासीवादी परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए वह आम जनता के अधिकारों और शोषित-उत्पीड़ित तबकों के मानवाधिकारों को कुचल रहा है। संघी गिरोह की इन कुचालों का राजनैतिक-वैचारिक-सांस्कृतिक-सामाजिक स्तर पर मुकाबला करना होगा। देश को संकट से निकालने की यह लड़ाई माकपा को सांगठनिक स्तर पर मजबूत करके और आम तौर पर वामपंथी-जनवादी आंदोलन को देशव्यापी मजबूती देकर ही लड़ी जा सकती है।
उक्त बातें माकपा पोलिट ब्यूरो सदस्य प्रकाश करात ने पार्टी के कन्नूर (केरल) में चल रहे 23वें महाधिवेशन के समक्ष राजनैतिक-सांगठनिक प्रस्ताव पेश करते हुए कही। उन्होंने कहा कि माकपा का एक मजबूत देशव्यापी संगठन और वामपंथी-जनवादी-धर्मनिरपेक्ष ताकतों की मजबूत धुरी के इर्द-गिर्द संचालित देशव्यापी आंदोलन ही संघ-भाजपा की फासीवादी परियोजना को शिकस्त दे सकता है। पार्टी संगठन को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने पार्टी सदस्यों के वैचारिक प्रशिक्षण, आंदोलनात्मक कार्यवाहियों में उन्हें सक्रिय करने, पार्टी ब्रांचों सहित सभी कमेटियों की नियमित बैठकें करने तथा जनसंगठनों में सक्रिय जुझारू कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल करने ; और इस प्रकार व्यापक जनाधार वाली क्रांतिकारी पार्टी के निर्माण पर जोर दिया।
पिछले चार सालों में पार्टी और उसके जन संगठनों द्वारा चलाये गए आंदोलनों की भी रिपोर्ट में समीक्षा की गई है और किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ ऐतिहासिक देशव्यापी आंदोलन की सफलता को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि किस प्रकार श्रम कानूनों को खत्म करने और मजदूर वर्ग पर गुलामी की शर्तों को लादने वाली श्रम संहिता थोपने के खिलाफ और नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों और देश बेचने वाली निजीकरण की नीतियों के खिलाफ देशव्यापी प्रतिरोध बढ़ रहा है। संघ संचालित मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता का संघर्ष मजदूर-किसान एकता में रूपायित होने की प्रक्रिया को भी माकपा के दस्तावेज में रेखांकित किया गया है।
प्रकाश करात द्वारा पेश इस रिपोर्ट पर महाधिवेशन में उपस्थित प्रतिनिधियों ने बहस शुरू कर दी है। वे अपने राज्यों में चलाए गए संघर्षों के अनुभवों की रोशनी में रिपोर्ट की अंतर्वस्तु को पुष्ट कर रहे हैं। विगत वर्षों में पार्टी को जो चुनावी धक्के लगे हैं, उस पर गर्मागर्म बहस भी हो रही है और वे पार्टी की चुनावी कार्यनीति को ठोस परिस्थितियों पर आधारित करने की मांग कर रहे हैं। आगामी दिनों में पार्टी और आंदोलन को मजबूत करने, और खासकर हिंदी भाषी राज्यों में राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वे सुझाव दे रहे हैं। पार्टी प्रतिनिधि वामपंथ के ‘केरल मॉडल’ का पूरे देश मे प्रचार करने पर जोर दे रहे हैं, जहां मानव विकास संकेतक देश में सबसे ऊंचे स्तर पर है।
महाधिवेशन के चौथे दिन बेरोजगारी के मुद्दे पर प्रस्ताव पारित करके इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन विकसित करने का आह्वान किया गया है। रिपोर्ट में जिन आंकड़ों का जिक्र किया गया है, वे भयावह हैं। रिपोर्ट के अनुसार, आज देश में बेरोजगारी की दर 6.1% से ज्यादा है, जिनमें औपचारिक शिक्षा प्राप्त युवाओं में बेरोजगारी दर 10% के करीब है और 20-24 वर्ष के नौजवानों में यह दर 39% से अधिक है। महिलाओं में 35% महिला स्नातक बेरोजगार हैं।
इसके बावजूद केंद्र, राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विभिन्न विभागों में लाखों पद खाली पड़े हुए हैं और उनमें से कई को समाप्त किया जा रहा है। माकपा ने इन रिक्तियों को तत्काल भरने की मांग करती है। पार्टी ने यह भी मांग की है कि मनरेगा के तहत प्रत्येक श्रमिक को 200 व्यक्ति-दिवस का रोजगार प्रदान किया जाए और भारत के सभी शहरी क्षेत्रों में एक शहरी रोजगार गारंटी शुरू की जाए। सरकार द्वारा शिक्षा और ढांचागत सुविधाओं पर अपने खर्च में काफी वृद्धि करने की मांग की है, जिससे रोजगार पैदा हो सके।
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