शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024
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बस्तर: सरकार के खिलाफ आंदोलन के लिए बाध्य क्यों है आदिवासी?

बस्तर (पब्लिक फोरम)। पेसा कानून पांचवीं अनुसूची, ग्राम सभा को सही तरीके से पालन करने, पुलिस कैंप खोलने, फर्जी मुठभेड़ जैसे मामलों को लेकर छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिलों में सरकार और प्रशासन के खिलाफ़ आंदोलन तेज़ हो गया है। अब देखा जाए तो बस्तर संभाग के अंदरूनी क्षेत्रों से ग्रामीण अपने हक अधिकार और संवैधानिक अधिकारों के हनन को लेकर सीधे गांवों से निकलकर सड़कों पर आ रहे हैं और शासन-प्रशासन पर ग्राम सभा, पेसा कानून, पांचवीं अनुसूची जैसे संवैधानिक अधिकारों के नियमों को दरकिनार करने का आरोप लगाकर छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी बहुल जिलों के ग्रामीण अलग-अलग क्षेत्रों में आंदोलन कर रहे हैं और बीते पिछले चार पांच सालों से सरकार के खिलाफ़ ऐसे कई बड़े आंदोलन कर चुके हैं।

इस समय छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में आंदोलन का दौर चल रहा है अपनी मांगों को लेकर आदिवासी ग्रामीण अपने पारंपरिक देवी देवताओं, पारंपरिक हथियारों के साथ आंदोलन कर रहे हैं।

बस्तर संभाग के आदिवासी बहुल जिलों कांकेर, बस्तर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा , बीजापुर, सुकमा, कोडागांव, सभी सातों जिलों में ग्रामीण अलग-अलग समय पर आंदोलन कर चुके हैं और अभी भी कई क्षेत्रों में सरकार के खिलाफ़ अनिश्चित कालीन आंदोलन कर रहे हैं।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि बस्तर संभाग के जितने भी जिलों में आंदोलन हुए हैं उन आंदोलनों का नेतृत्व करने वाला ना तो कोई राजनीतिक पार्टी है ना कोई विपक्ष का नेता है ना कोई बड़ा सामाजिक कार्यकर्ता है।

सभी अंदरूनी क्षेत्रों के ग्रामीण हैं और आंदोलन पर उनका ही नेतृत्व है।

तो वही कल एक बड़ा आंदोलन बीजापुर ज़िले के भैरमगढ़ ब्लॉक में देखने को मिला जहाँ एक महीने से बेचापाल में पुलिस कैंप, सड़क, फर्जी मुठभेड़ जैसे मामले में आंदोलनरत ग्रामीण एक साथ चार से पांच हज़ार की संख्या में ग्रामीण अपने पारम्परिक हथियारों को लेकर मुख्य मार्ग से कुछ दूर ताड़ बकड़ी नाम के गाँव में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन कर रहे थे। यही सभी ग्रामीण मुख्य मार्ग में आंदोलन करना चाहते थे जिन्हें पुलिस ने पहले ही रोक दिया और आगे बढ़ने नहीं दिया।

ये आदिवासी ग्रामीण अपनी 12 सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं जिनमें प्रमुख मांगे हैं –

1. बस्तर संभाग में पेसा क़ानून, पांचवीं अनुसूची, ग्राम सभा का पालन हो।

2. हमें बड़ी सड़क, पुलिया, पुलिस कैम्प नहीं चाहिए।

3. हमें मूलभूत सुविधा शिक्षा, अस्पताल, आंगनबाड़ी पीने का पानी चाहिए।

4. पूरे बस्तर संभाग में पुलिस नरसंहार, दमन अत्याचार, पुलिस गश्ती तुरन्त बंद हो!

5. जिन आदिवासियों को भी नक्सली केसों में फंसाकर जेलों में डाला गया है , उन सभी को तत्काल बगैर शर्त रिहा करो।

6. सभी बेरोजगारों को नौकरी देने की गारंटी करो। जल जंगल जमीन छीनने वालों का बहिष्कार करो।

7. जल जंगल जमीन पर आदिवासियों का हक है , इसे जबरदस्ती ना छीना जाए ।

8. आदिवासियों को गुलाम जिंदगी नहीं चाहिए।

9. हिन्दू ब्राह्मणवाद सामंतवाद से आजादी चाहिए।

10. हम जान देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे।

11. गांवों में पुलिस कैंप स्थापित करना गैरकानूनी है, इस प्रस्ताव को रद्द करो।

12. आदिवासी इलाकों में बिना अनुमति बिना ग्राम सभा किये कोई कार्य नहीं होना चाहिए।

आंदोलन कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि जब तक प्रशासन हमारी मांगों को नहीं मानेगा हम यहाँ धरने पर बैठे रहेंगे और आंदोलन करते रहेंगे।

कोरोना संक्रमण और ऑमिक्रॉन को देखते हुए राज्य ने जिलों में धारा 144 लागू की जिसको देखते हुए प्रशासन ने पहले से सुरक्षा बलों को तैनात किया हुआ था और आंदोलन कर रहे ग्रामीणों को मुख्य मार्ग से पहले ही रोक दिया गया और आगे बढ़ने नहीं दिया गया। ये ग्रामीण कई घंटे भर से ताड़ बकड़ी गांव में बैठे रहे। प्रशासन के अधिकारियों के समझाने के बाद सभी शाम तक वापस चले गए।

आंदोलन में शामिल ग्रामीणों से जब हमने पूछा तो उसमें से एक आंदोलनकारी ग्रामीण युवक सुकारू राम ओरसा ने बताया कि शासन-प्रशासन हम से बिना पूछे पुलिस कैंप स्थापित कर रहा है और बड़े सड़क का निर्माण कर रहा है। हमें सुविधा के तौर पर सड़क तो चाहिए लेकिन बड़ी सड़क नहीं छोटी सड़क चाहिए।

बड़ी सड़क के बनने से हमारे खेत बर्बाद हो रहे हैं सड़क बनाने के लिए हमारे खेतों को खोद रहे हैं साथ पेड़ों की भी कटाई हो रही है।

सुकराम ओरसा कहते हैं कि हम भी चाहते है कि हमें सुविधा मिले हमारे गांवों में रोड बने लेकिन बड़े रोड नहीं छोटे रोड, और सुरक्षा बलों के कैम्प के बदले पहले गांवों में स्कूल, आंगन बाड़ी, अस्पताल बने और हमारी आने वाली पीढ़ी आगे बढ़े। लेकिन ग्राम सभा और पेसा कानून जैसे संवैधानिक प्रावधानों के होते हुए भी सरकार बिना अनुमति के पुलिस कैम्प बना रही है। हमारी ज़मीन को हड़प रही है। सुकराम ओरसा गांव के शिक्षित युवा हैं और वे कहते हैं कि मैं पिछले दो तीन सालों से रोजगार और नौकरी की तलाश में घूमने के बाद गाँव में आया हूँ। सुकराम ओर्सा कहते हैं कि सरकार का कुछ भी काम जल्दी होता है और जनता का काम नहीं होता है। ऐसा क्यों हम पिछले दो तीन माह से प्रशासन को पेड़ों और खेतों की खोदाई को लेकर ज्ञापन सौंप चुके हैं लेकिन अभी तक कुछ निष्कर्ष नहीं निकला इस कारण हम आंदोलन कर रहे हैं।

तो वहीं दूसरे आंदोलनकारी बस्तर मूल निवासी बचाओ के सदस्य ने कहा कि हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि पहले गांवों में स्कूल, अस्पताल बने। सरकार बिना अनुमति के ग्राम सभा किए बिना पेड़ों की कटाई और सड़क के लिए जमीन को खोद रही है साथ ही जब हम खेतों में काम करते हैं या जंगलों में लकड़ी के लिए, शिकार करने के लिए तीर धनुष, कुल्हाड़ी लेकर जाते हैं तो नक्सली समझ कर पुलिस पकड़कर अपने साथ ले जाती है।

हम और हमारी महिलाएं जंगलों और खेतों पर निर्भर रहते हैं और कमाई करते हैं तो उस वक्त पुलिस के ज़वान आते हैं और परेशान करते हैं इन सब कारणों से हम आंदोलन कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में सरकार के खिलाफ आदिवासियों का यह आंदोलन लगातार जारी है।

बीते 2021 में सुकमा ज़िले के सिंगारम, गोमपाड़ और बीजापुर जिले के पुसनार और सिलगेर, सारकेगुड़ा, एडसमेटा, और नारायणपुर के अबूझमाड़ जैसे क्षेत्रों में कई बड़े-बड़े आंदोलन हुए हैं और अब बेचापाल कैंप और सड़क निर्माण को लेकर हजारों ग्रामीण सड़कों पर उतर आए हैं।
रिकेश्वर राणा
(रिकेश्वर राणा बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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