नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। मजदूरों का राष्ट्रीय कन्वेंशन नई दिल्ली मे जंतर-मंतर पर 11 नवंबर 2021 को केंद्रीय श्रमिक संगठन तथा स्वतंत्र फेडरेशन/असोसिएशन्स द्वारा संयुक्त रूप से गठित किया गया. कन्वेंशन के अध्यक्ष मंडल में संजय सिंह (इंटक), सुकुमार दामले (एटक), राजा श्रीधर (हिंद मजदूर सभा), हेमलता (सीटू), आर. पराशर (एआययुटीयुसी), शिवशंकर (टीयूसीसी), फरीदा जलीस (सेवा), शैलेंद्र के शर्मा (ए आय सी सी टी यू), आर. के. मौर्य (एल पी एफ), नजीर हुसेन(युटीयुसी) थे।
कन्वेंशन की शुरुआत उन साथियों को श्रद्धांजली अर्पण करते हुए हुई जिन का पिछले कन्वेंशन के बाद देहांत हो गया – जिस मे करीब करीब 800 किसान साथी हैं जो उन के जारी आंदोलन के दौरान शहीद हो गये, कई साथी जो करोना काल में (हाल ही में साथी वि. सुब्बुरामन, एल.पी.एफ.के अध्यक्ष) या बाढ़ या पहाड के स्खलन की घटनाओं में गुजर गये और जो लिंचिंग जैसी घटनाओं के बेवजह शिकार हुए.
कन्वेंशन मे मुख्य रूप से भारत सरकार द्वारा मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और कार्पोरेट की पक्षधर पॉलिसी अपनाई जा रही है, जिन की बदौलत जनता का अधिकांश हिस्सा गरीबी और भूखमरी के कगार पर है, देश की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, उसकी कड़ी निंदा की गई. और इस बात को विषेश तौर पर कहा गया कि संघर्ष का दायरा जनता की रोजीरोटी तक सीमित नहीं रह गया, अब तो पूरी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से रोकना, देश की लोकशाही व्यवस्था का संरक्षण करना तथा देशी-विदेशी नीजी कॉर्पोरेट कंपनीओं के हवाले देश जाने से रोकने के लिए भी करना होगा।
सभी वक्ताओं ने, जिन में अशोक सिंह (इंटक), अमरजीत कौर (एटक), हरभजन सिंह सिधु (हिंद मजदूर सभा), तपन सेन (सीटू), सत्यवान (एआययुटीयुसी), जी.देवराजन (टीयूसीसी), सोनिया जॉर्ज (सेवा), राजीव डिमरी (ए आय सी सी टी यु), जे.पी.सिंह (एल पी एफ), शत्रुजित सिंह (युटीयुसी) थे, केंद्र सरकारने जो लापरवाही करोना महामारी में बर्ताई, जनता जब उस संकट से झूझ रही थी तब मौकापरस्ती से लेबर कोड और कृषी कानून, बिना चर्चा के, लोकसभा में पास कर दिए और अब नीजीकरण की ऐसी होड़ लगाई है – जिसमे जनता के पैसों से पिछले सत्तर साल मे खडे किए, सरकार को मुनाफा देने वाले सार्वजनिक उद्योग बेचे जा रहे हैं, या नैशनल मोनेटायझेशन पाईपलाईन के नाम पर, नीजी उद्योगों को भाड़े पर दिए जा रहे हैं. इस का बहुत बुरा असर आम जनता पर होगा – एक तो महंगाई बेतहाशा बढ़ेगी और नौकरियों के अवसर पिछड़े जातीवर्ग और नौजवानों के लिए कम हो जायेंगे.
अब कई राज्यों मे चुनांव आ रहे हैं, तो भा.ज.पा. उन की “उपलब्धीयों” की डींग मारने में लगी है. जब कि जमीनीस्तर की वास्तविकता छुपाना उनके लिये नामुमकिन है – जैसे भूखमरी के मामले में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 106 देशों की सूची मे 101 नंबर पर है. आज देश मे जातधर्म के नाम पर गुंडागर्दी की जा रही है और सरकार जानबूझ कर उसे अनदेखी करती है. यह हमारे देश के लिए एक नया संकट है, जो हमने इससे पहले अनुभव नही किया था।
कन्वेंशन में उन मांगों को दोहराया गया जो इस से पहले भी की गई थी, लेकिन जनता के लिए अहमियत रखती है. जैसे – 4 लेबर कोड समाप्त करना, कृषी कानून और बिजली संशोधन विधेयक को निरस्त करना, किसी भी रूप मे निजीकरण के खिलाफ और एन.एम.पी. को समाप्त करना, आयकर भुगतान के दायरे से बाहर वाले परिवारों को प्रतिमाह 7500 रुपये की आय और खाद्य सहायता, मनरेगा के लिए आवंटन में वृद्धि और शहरी क्षेत्रों मे रोजगार गारंटी योजना का विस्तार, सभी अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा, आंगनवाडी, आशा, मध्यान्न भोजन योजना कार्यकर्ताओं के लिए वैधानिक न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा, महामारी के दौरान लोगो की सेवा करने वाले फ्रन्टलाइन कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षा बीमा सुविधाएं, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और सुधारने के लिए संपत्ती कर आदि के माध्यम से अमीरों पर टैक्स लगा कर कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपयोगिताओं में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि, पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कमी और मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए ठोस उपचारात्मक उपाय आदि.
कन्वेंशन में देश के मजदूरों से आवाहन किया कि इस कन्वेंशन का संदेश नीचे तक, हर गांव कसबे में जनता तक मेहनत और लगन सेे पहुंचाएं. “जनता को बचाओ, देश को बचाओ” के नारे को बुलंद करने के लिए वर्ष 2022 मे लोकसभा का जो बजट सैशन चलेगा तब दो दिवसीय मुकम्मल हड़ताल की तैयारी करें।
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