आधुनिक काल में “लोकतंत्र” या डेमोक्रेसी शब्द का उत्पत्ति ग्रीक शब्द “डेमोस” से हुई है लेकिन प्राचीन काल के दुनियां में राज्य के अस्तित्व में आने के पूर्व तक जनजाति समाज का शासन पद्धति लोकतांत्रिक ही रहा है।
जनजाति समाज जो एक वर्ग विहीन समाज है उनके शासन पद्धति लोकतांत्रिक तरीके से ही संचालित होते हैं। और आज भी दुनियां में जहां पर भी मानव जनजातीय जीवन व्यातीत कर रहे है उनकी शासन पद्धति अभी भी लोकतांत्रिक ही है।उनकी सभाओं में गोत्र के सभी वयस्क पुरूष और महिलाएं उपस्थित होकर हर विषय पर सामूहिक रूप से या बहुमत के आधार पर निर्णय लेते है।
ऋग्वैदिक काल में आर्यो का जीवन जनजातीय था। ऋग्वेद में “सभा” शब्द का उल्लेख आठ बार हुआ हैं। इन सभाओं में वयस्क पुरूष और महिलाओं की भागीदारी होती थी।
लोकतांत्रिक राज्य की अवधारणा आधुनिक काल का हैं। राज्य के आविर्भाव के लिए समाज का वर्गों में विभाजन होना आवश्यक शर्त माना जाता है।क्योंकि वर्गों में विभाजित होने के कारण राज्य में वर्ग संघर्ष होना स्वाभाविक हैं।
ऋग्वेद में “सभा” शब्द का जिक्र होना यह प्रमाणित नहीं करता है कि दुनियां में सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था भारत में कायम रहा हो।
दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा यह दुष्प्रचार किया जा रहा हैं कि क्यों कि ऋग्वेद में सभा शब्द का उल्लेख है इसलिए दुनियां में ग्रीक के पहले भारत में लोकतंत्र कायम था और दुनियां में सबसे पहले हमारे देश में लोकतंत्र कायम हुआ था।
आधुनिक काल के पूंजीवादी लोकतंत्र और जनजातीय समाज के लोकतांत्रिक शासनपद्धति की विभेद को वे घालमेल कर देना चाहते हैं।आधुनिक काल के लोकतंत्र जो पूंजीवादी समाज का देन है जिस समाज में मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण होता हैं उस समाज का लोकतंत्र शासक वर्ग अपने हितों में उपयोग करते हैं।
जो समाज शासक और शोषक वर्गो में विभाजित न हो, उस जनजातीय समाज में हर मनुष्य सही मायने में अपने लोकतांत्रिक्र अधिकारों का उपयोग कर सकते थे।
ऋग्वेद में सभा और समिति का उल्लेख होना इस बात का सबूत है कि इस भू-भाग में अतीत काल में मनुष्य जनजातीय समाज में जीवन व्यातीत करते थे,जहां पर वर्गीय विभाजन नही था।
प्राचीन काल में इसी भू-भाग में एक वर्ग विहीन समाज का अस्तित्व था इस वास्तविकता को नकारने के लिए ही वे आधुनिक काल के लोकतंत्र और जनजातीय समाज के लोकतंत्र को घालमेल कर प्रस्तुत करते है।इसके साथ ही अपने देश की अतीत पर झूठा गौरव प्रचार कर अंधराष्ट्रवाद को बढावा देने का भी उनका एक प्रयास हैं।
जनजातीय समाज का लोकतंत्र की खात्मा राज्य की उत्पत्ति के साथ ही होता हैं।ऋग्वैदिक काल में जब सामाजिक वर्ग विकसित अवस्था में नहीं थे,अमीर-गरीब का अधिक भेद नहीं था और राजपद में स्थायित्व नही आया था,तब समाज में लोकतांत्रिक्र शासनपद्धति रहा। लेकिन ज्यों-ज्यों आर्थिक असमानता बढती गई और सामाजिक वर्ग विकसित होते गए और जैसे जैसे राजा की प्रधानता उभरती गई त्यों-त्यों उन धनी लोगों के द्वारा अपने वर्गीय स्वार्थ की पूर्ति के लिए लोकतंत्र को कमजोर किया गया हैं।
समाज विकास में दुनियां का यही इतिहास हैं।जो लोग आधुनिक काल के लोकतंत्र और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करना चाहते है,वे लोकतंत्र पर झूठा गर्व कर रहे हैं।
भविष्य की बेहतर समाज के निर्माण के लिए लोकतंत्र की रक्षा करना अनिवार्य शर्त है। -सुखरंजन नंदी
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