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क्यों चिन्तित है गुजरात का आदिवासी समाज?

केंद्र की पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ने की परियोजना के विरोध में गुजरात के आदिवासी वलसाड जिले के कपराडा में लगातार जनसभा कर रहे हैं। विगत 28 फरवरी के बाद से इस परियोजना के विरोध में चौथी बार इस तरह की विशाल जनसभा का आयोजन किया गया है।

क्या है पार-तापी-नर्मदा नदियों को जोड़ने की परियोजना?

पार, तापी नर्मदा लिंक परियोजना की परिकल्पना 1980 की नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के तहत पूर्व केंद्रीय सिंचाई मंत्रालय और केंद्रीय जल आयोग (CWC) के तहत की गई थी। इस परियोजना में पश्चिमी घाट के क्षेत्रों से नदियों में मौजूद अधिशेष जल की मात्रा को सौराष्ट्र और कच्छ के कम जल वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है। इसके तहत तीन नदियों को जोड़ा जाएगा जिसमें पार, तापी और नर्मदा नदी शामिल हैं। पार नदी महाराष्ट्र के नासिक से निकलती है और वलसाड से होकर बहती है।

तापी नदी सतपुड़ा रेंज से निकलती है और महाराष्ट्र एवं गुजरात के सूरत से होकर बहती है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश से निकलती है जो कि महाराष्ट्र और गुजरात के भरूच एवं नर्मदा जिलों से होकर बहती है। इस लिंक में मुख्य रूप से 07 बांध (झेरी, मोहनकवचली, पाइखेड़, चासमांडवा, चिक्कर, डाबदार और केलवान) तीन डायवर्जन वियर (पाईखेड़, चासमांडवा और चिक्कर बांध) और दो सुरंगों का निर्माण शामिल है। इसके अलावा इसमें 395 किलोमीटर लंबी नहरों और 06 बिजली घरों का निर्माण भी किया जाएगा।

केंद्र सरकार की स्थिति

* 3 मई 2010 को गुजरात का महाराष्ट्र और केंद्र सरकार के बीच एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए गए थे जिसमें परिकल्पना की गई थी कि गुजरात को इस नदी लिंक परियोजना का लाभ लिंक नहरों से मार्ग में सिंचाई के माध्यम से मिलेगा। * इस परियोजना के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) 2015 में नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी (NWDA) द्वारा तैयार की गई थी और 2016 में गुजरात सरकार के हस्तक्षेप पर संशोधित की गई थी। * इसके तहत सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण से बचने/कम करने के साथ-साथ वाष्पीकरण और रिसाव के नुकसान को कम करने के लिए खुली नहरों के बजाय एक पाइप लाइन प्रणाली प्रदान करने का प्रस्ताव दिया।

आदिवासियों की चिंता

* इस परियोजना को लेकर सबसे बड़ी और अहम चिंता विस्थापन की है। * दरअसल NWDA की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रस्तावित जलाशयों के कारण लगभग 6065 हेयर जमीन जलमग्न हो जाएगी। * इससे प्रभावित गांव नासिक में सुरगाना और पेंट तालुका और वलसाड के धर्मपुर तालुका, नवसारी के वानस्दा तालुका और गुजरात में डांग जिलों के अहवा तालुका में स्थित हैं। * जिन जिलों में इस परियोजना को लागू किया जाएगा उस में बड़े पैमाने पर आदिवासियों का वर्चस्व है और ऐसे में उन्हें विस्थापन का डर है। * परियोजना के विरोध मेंआदिवासियों के द्वारा पहले ही 03 विशाल जनसभाएं आयोजित की जा चुकी हैं। आगामी और बैठकें होनी हैं लेकिन अभी तारीख घोषित नहीं की गई है। * इस आंदोलन को समस्त आदिवासी समाज, आदिवासी समन्वय समिति, आदिवासी संघर्ष मोर्चा, आदिनिवासी गण परिषद, आदिवासी एकता परिषद आदि कई आदिवासी संगठनों का समर्थन प्राप्त है। * पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना की अनुमानित लागत 10,211 करोड रुपए हैं।

क्या है इसका समाधान?

* उचित पुनर्वास व मुआवजा की आवश्यकता- NWDA की रिपोर्ट के मुताबिक जलाशय बनने पर प्रभावित परिवारों को उनकी जमीन और घरों के नुकसान की उचित भरपाई की जाएगी और उनका पुनर्वास किया जाएगा। * परियोजना के लाभों के साथ-साथ इनसे जुड़े मुद्दों को भी संबोधित करने की जरूरत है याने कि आदिवासियों की चिंताओं को अनदेखा बिल्कुल नहीं किया जा सकता। * इसके अलावा परियोजना के पर्यावरणीय सामाजिक प्रभाव जैसे जैव विविधता पर प्रभाव कामा वनस्पतियों और जीव कामा जलाशय के पानी की गुणवत्ता पारिस्थितिकी आदि को भी पहचानने और उनका यथोचित मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

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