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पहलगाम हमला: कश्मीर के जख्म और अनुत्तरित सवाल

पहलगाम (जम्मू-कश्मीर) 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न केवल कश्मीर घाटी, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में निर्दोष पर्यटकों और स्थानीय लोगों की जान गई, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे। लेकिन इस त्रासदी के बीच कश्मीरियों का साहस और इंसानियत सामने आई, जब उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर मेहमान पर्यटकों को बचाया। फिर भी, इस घटना ने कई सवाल खड़े किए हैं, जिनके जवाब देश को चाहिए। आखिर सुरक्षा में चूक कहां हुई? क्या यह हमला पहले से नियोजित था? और क्यों सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने से बच रही है?

कश्मीर का दिल, जो दर्द और साहस से भरा है
पहलगाम, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए जाना जाता है, उस दिन खून से लाल हो गया। आतंकियों ने न केवल पर्यटकों को निशाना बनाया, बल्कि धर्म पूछकर गोली चलाई—एक ऐसी हरकत, जो पहले कभी नहीं देखी गई। इस हमले में कई परिवार उजड़ गए, बच्चों ने अपने माता-पिता खो दिए, और कश्मीर की शांत वादियां चीखों से गूंज उठीं। लेकिन इस अंधेरे में कश्मीरियों ने उम्मीद की किरण जलाए रखी। स्थानीय लोग, जिनमें सैयद जैसे कई युवा शामिल थे, आतंकियों से भिड़ गए और पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।

यह पहली बार था जब पिछले 35 सालों में पूरा कश्मीर एकजुट होकर सड़कों पर उतरा। बंद, प्रदर्शन और गुस्सा—सब कुछ इस हमले के खिलाफ था। लेकिन दुख की बात यह है कि कश्मीर के इस साहस और बलिदान को देश के बाकी हिस्सों में वह जगह नहीं मिली, जिसका वह हकदार था।

सवाल, जो देश के मन में कौंध रहे हैं
इस हमले ने कई सवालों को जन्म दिया है, जिनका जवाब सरकार को देना होगा। जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है, और कानून-व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के पास है। फिर भी, पहलगाम जैसे पर्यटक स्थल, जहां हर दिन 2500-3000 सैलानी आते हैं, वहां सुरक्षा बलों की एक टुकड़ी तक क्यों नहीं थी? क्या यह सच है कि पहले वहां सीआरपीएफ की दो टुकड़ियां तैनात थीं, जिन्हें हटा लिया गया? अगर हां, तो क्यों?

8 अप्रैल को गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की थी। उस बैठक में क्या चर्चा हुई? क्या कोई ठोस योजना बनाई गई थी? जुलाई में अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है, जो पहलगाम से होकर गुजरती है। ऐसे में इस इलाके की सुरक्षा को लेकर सरकार इतनी लापरवाह क्यों थी? जहां 6-7 लाख सुरक्षाकर्मी तैनात हैं, वहां यह चूक कैसे हुई?

क्या यह हमला पहले से नियोजित था?
17 अप्रैल के आसपास सोशल मीडिया पर कई पोस्ट वायरल हुईं, जिनमें दक्षिणपंथी संगठनों और उनके समर्थकों ने संकेत दिए कि “कुछ बड़ा होने वाला है।” कुछ पोस्ट में पीएम मोदी, गृहमंत्री शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की बैठकों का जिक्र था। एक यूजर, पंकज जैन उज्जैन, ने तो खुलकर ऐसी पोस्ट की स्क्रीनशॉट तक शेयर करने की बात कही। क्या ये महज संयोग थे, या इनके पीछे कोई साजिश थी?

हमले से ठीक एक दिन पहले उपराज्यपाल मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर से बाहर थे और यूपी की गवर्नर आनंदी बेन पटेल से मिल रहे थे। पीएम मोदी ने भी अपनी कश्मीर यात्रा रद्द कर दी थी। इन घटनाओं को जोड़कर देखें, तो कई सवाल उठते हैं। क्या सरकार को इस हमले की आहट पहले से थी? अगर हां, तो इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए?

सियासत का खेल और देश का दर्द
इस हमले ने न केवल कश्मीर, बल्कि देश की सियासत को भी हिलाकर रख दिया। गृहमंत्री अमित शाह ने हमले के बाद घाटी का दौरा तो किया, लेकिन न तो उन्होंने कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस की, न पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया, और न ही अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की। वहीं, पीएम मोदी दुबई यात्रा से लौटे, लेकिन देश को संबोधित करने की बजाय उन्होंने बिहार का रुख किया, जहां जल्द चुनाव होने हैं। क्या यह सियासी फायदे की खोज थी?

कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) की बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ कुछ प्रस्ताव पारित किए गए, जैसे इंडस वॉटर ट्रीटी को निलंबित करने की बात। लेकिन क्या इससे आतंकवाद रुकेगा? विशेषज्ञों का कहना है कि यह अंतरराष्ट्रीय समझौता एकतरफा रद्द नहीं किया जा सकता। फिर इन फैसलों का मकसद क्या है? क्या यह सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने की कोशिश है?

आतंक का कोई धर्म नहीं
यह हमला पहला था, जिसमें आतंकियों ने धर्म पूछकर गोली चलाई। लेकिन क्या आतंक का कोई धर्म होता है? सरकार ने खुद मालेगांव ब्लास्ट में प्रज्ञा ठाकुर को दोषी ठहराया है। श्रीलंका में तमिल हिंदू समुदाय के प्रभाकरन को आतंकी माना गया। म्यांमार में बौद्धों ने रोहिंग्या मुसलमानों पर हमले किए। ये उदाहरण साफ करते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। फिर क्यों इस हमले को सांप्रदायिक रंग देकर देश को बांटने की कोशिश हो रही है?

कश्मीरियों की इंसानियत, जो अनसुनी रह गई
इस त्रासदी में कश्मीरियों ने जो इंसानियत दिखाई, वह देश के लिए एक मिसाल है। उन्होंने न केवल पर्यटकों को बचाया, बल्कि आतंकियों से लोहा लिया। लेकिन देश के बाकी हिस्सों में उनकी इस कुर्बानी को नजरअंदाज किया जा रहा है। क्यों नहीं हम उनके साहस की तारीफ करते? क्यों नहीं उनकी इंसानियत को सलाम करते?

पहलगाम हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि देश की एकता और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल है। सरकार को चाहिए कि वह इन सवालों का जवाब दे, जिम्मेदारी ले और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए। कश्मीरियों की इंसानियत और साहस को सलाम करते हुए, हमें यह समझना होगा कि आतंक का मुकाबला नफरत से नहीं, बल्कि एकजुटता और इंसानियत से किया जा सकता है।

आइए, हम सब मिलकर कश्मीर के उन नायकों को याद करें, जिन्होंने अपनी जान देकर दूसरों की रक्षा की। क्या आप मानते हैं कि सरकार को इन सवालों का जवाब देना चाहिए? अपनी राय हमारे साथ साझा जरूर कीजिएगा!

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