कोरबा/बालकोनगर (पब्लिक फोरम)। देशभर के श्रमिक संगठनों ने आज चार नए श्रम संहिताओं के विरोध में विरोध दिवस मनाया। छत्तीसगढ़ में भी संयुक्त ट्रेड यूनियनों के आवाहन पर व्यापक स्तर पर प्रदर्शन किए गए। इसी क्रम में अल्युमिनियम एम्प्लॉइज यूनियन, एटक ने बालको कारखाने के मुख्य द्वार परसा भाटा, आजाद चौक में बड़े धरना एवं आमसभा का आयोजन किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉमरेड एस.के. सिंह ने की तथा संचालन यूनियन के महासचिव कॉमरेड सुनील सिंह ने किया। उन्होंने चारों श्रम संहिताओं को “घोर मजदूर-विरोधी” बताते हुए कहा कि कारखानों में विशेषकर आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण लगातार बढ़ रहा है और नई संहिताएं इस समस्या को और गंभीर बना देंगी।
धरना सभा को संबोधित करते हुए एटक के प्रांतीय महासचिव कॉमरेड हरिनाथ सिंह ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि चार नए श्रम संहिताओं ने मजदूरों के अधिकारों को कमजोर कर उन्हें कारखाना मालिकों के सामने असुरक्षित बना दिया है।
उन्होंने सरकार द्वारा प्रचारित दावों—सामाजिक सुरक्षा, दुगने दर से ओवरटाइम, रोजगार पत्र और मातृत्व लाभ—को “भ्रमपूर्ण” बताया। उनके अनुसार ये सभी अधिकार मजदूर वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद पहले ही हासिल कर चुके हैं और नई संहिताएं कोई अतिरिक्त संरक्षण नहीं देतीं।
कॉमरेड सिंह ने न्यूनतम मजदूरी तय करने के मापदंडों पर भी गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि वर्तमान नियम 1957 की भारतीय श्रम सम्मेलन सिफारिशों पर आधारित बताकर भ्रामक छवि बनाई जा रही है, जबकि पिछले 65 वर्षों में जीवन-स्तर, आवश्यकताओं और उपभोक्ता ढांचे में भारी बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि यह ढांचा पुराना हो चुका है और मजदूर वर्ग की मौजूदा परिस्थितियों से मेल नहीं खाता।
ट्रेड यूनियनों की ताकत कमजोर करने की कोशिश
सभा में कहा गया कि नई संहिताओं का असल उद्देश्य है:—
ट्रेड यूनियनों को कमजोर करना।
मोलभाव (बर्गेनिंग) की शक्ति को सीमित करना। अस्थायी, ठेका और कैजुअल मजदूर बढ़ाकर स्थायी रोजगार को खत्म करना।
हायर-एंड-फायर की नीति को आसान बनाना।
एटक नेताओं ने कहा कि फिक्स्ड टर्म अपॉइंटमेंट जैसी व्यवस्थाएं स्थायी मजदूरों को समाप्त करने की दिशा में बड़ा कदम हैं।
44 पुराने श्रम कानूनों को खत्म करने पर आपत्ति
कॉमरेड सिंह ने बताया कि अब जिन 29 कानूनों की बात की जा रही है, वास्तव में उन्हें समेटने के लिए 44 श्रम कानूनों का विलोपन किया गया है। इनमें- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948, वेतन भुगतान अधिनियम 1936, बोनस भुगतान अधिनियम 1965, समान पारिश्रमिक अधिनियम 1967
जैसे महत्वपूर्ण कानून शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि यह मजदूरों पर सीधा आक्रमण है।
कॉमरेड सिंह ने केंद्र सरकार पर परिवारिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए कहा कि माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 स्पष्ट रूप से बताता है कि बुजुर्गों और आश्रितों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी कमाने वाले सदस्य की होती है। नई संहिताओं में इस सामाजिक ढांचे का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे परिवारों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
सभा को सीटू के कॉमरेड एस.एन. बनर्जी, एटक के एस.के. सिंह, धर्मेंद्र तिवारी, एम.एल. रजक सहित कई श्रमिक नेताओं ने संबोधित किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मजदूर शामिल हुए और अंत में चार श्रम संहिताओं की प्रतियां जलाकर विरोध दिवस मनाया गया।






Recent Comments