गाजा में सैकड़ों लोग भुखमरी की चपेट में, बच्चे खाली बर्तन लेकर मांग रहे हैं भीख
गाजा में एक मानवीय त्रासदी तेजी से गहराती जा रही है। सैकड़ों लोग भुखमरी से अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि हजारों अन्य लोग इसकी चपेट में हैं। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित हृदयविदारक तस्वीरों में बच्चे खाली बर्तन लिए कुछ खाने की भीख मांगते दिख रहे हैं, जो इस मानवीय संकट की भयावहता को दर्शाता है।
पत्रकारों की दयनीय स्थिति
गाजा में स्थिति इतनी विकट है कि यहां के पत्रकार भी भुखमरी के कगार पर हैं। एक स्थानीय पत्रकार ने अपनी व्यथा बयां करते हुए कहा, “मेरी हालत इतनी खराब है कि मैं किसी भी क्षण मौत का आलिंगन कर सकता हूँ, क्योंकि मेरे पास अब कोई भी ऐसा साधन नहीं है जिससे मैं अपनी भूख को शांत कर सकूं।”
फ्रांस की एक न्यूज एजेंसी के पत्रकार ने बताया कि गाजा में वर्षों से अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों के लिए काम करने वाले कई पत्रकार अब अपने और अपने परिवार का पेट भरने में असमर्थ हैं। उनका मिलने वाला अल्प वेतन भी अब उनके जीवनयापन के लिए पर्याप्त नहीं है।
“इस समय फिलिस्तीन के लोगों के साथ इज़राइल वैसा ही व्यवहार कर रहा है जैसा यहूदियों के साथ हिटलर ने किया था। कुछ मामलों में उसके द्वारा किया जाने वाला व्यवहार हिटलर द्वारा किए जाने वाले व्यवहार से भी ज्यादा खराब है।”
अस्पतालों में दर्दनाक मंजर
एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, अनेक प्रभावित लोगों तक सहायता नहीं पहुंच पा रही है। गाजा के एक अस्पताल में एक ऐसे व्यक्ति का उल्लेख किया गया है, जिसके शरीर में सिर्फ हड्डियां और चमड़ी रह गई है, क्योंकि उसे कई दिनों से भोजन नहीं मिला है। चिकित्सकों का अनुमान है कि वह उन 15 व्यक्तियों में शामिल हो सकता है, जिनकी भुखमरी से पिछले 24 घंटों में मौत हो गई है।
बच्चों के लिए दूध का संकट
गाजा में शिशुओं के लिए दूध का अभाव एक गंभीर समस्या बन गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, काला बाजारी में एक लीटर दूध की कीमत 100 डॉलर तक पहुंच गई है, जो अधिकांश परिवारों की पहुंच से बाहर है। ऐसे सैकड़ों फिलिस्तीनी परिवार हैं, जो पिछले कई दिनों से भुखमरी का सामना कर रहे हैं।
ऐतिहासिक समानताएं
वर्तमान स्थिति की तुलना अनेक विश्लेषकों ने 1943 के बंगाल अकाल से की है। उस समय भी, जब अमेरिका की ओर से बंगाल के भूखे लोगों के लिए सहायता भेजी गई थी, तब ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने कथित तौर पर खाद्य सामग्री के बजाय हथियार भेजना उचित समझा था। इसी तरह की क्रूरता अब फिलिस्तीन में देखी जा रही है।
मानवीय सहायता पर रोक
संयुक्त राष्ट्र संघ ने चिंता व्यक्त की है कि गाजा में भेजी गई मानवीय सहायता प्रभावित लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। यू.एन. के अधिकारियों के अनुसार, गाजा में व्याप्त भुखमरी की स्थिति पिछले कई वर्षों में देखी गई सबसे भयावह मानवीय त्रासदियों में से एक है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार, इज़राइली सेना की कार्रवाई में अब तक कम से कम 60,000 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, और इज़राइल का इरादा गाजा में रहने वाले फिलिस्तीनियों को चुन-चुनकर मारने का है।
इज़राइल के भीतर विरोध
इज़राइल सरकार की कार्रवाई का विरोध उसके अपने नागरिकों द्वारा भी किया जा रहा है। रॉयटर्स ने एक ऐसी महिला के बारे में रिपोर्ट दी है, जिसे इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि वह कथित तौर पर इज़राइली प्रधानमंत्री के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल थी। इस प्रकार के कई इज़राइली नागरिक अपने प्रधानमंत्री की नीतियों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस बीच, यह एक सकारात्मक विकास है कि कई यूरोपीय देशों ने इज़राइल पर युद्ध बंद करने का दबाव बनाया है। फ्रांस ने हाल ही में फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान की है। हालांकि, दुनिया भर के शांतिप्रिय देशों के प्रयासों के बावजूद, इज़राइल अपनी सैन्य कार्रवाई जारी रखे हुए है।
विश्व समुदाय के सामने अब एक बड़ी चुनौती है कि वह इस मानवीय त्रासदी को कैसे रोके और गाजा के निर्दोष नागरिकों, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों की रक्षा कैसे सुनिश्चित करे।
(यह रिपोर्ट एलएस हरदेनिया, सेकुलर फ्रंट के संयोजक द्वारा साझा की गई जानकारी पर आधारित है)
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