गोडसे ने गांधीजी की हत्या को ही सबसे बड़ा राष्ट्र भक्ति माना। गांधीजी की हत्या के बारे में अदालत को दिये गये एक बयान में नाथूराम गोडसे ने कहा था,”मैंने देश की भलाई के लिए यह कार्य किया।मैंने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीति से हिन्दुओ पर घोर संकट,हिन्दू नष्ट हुए।”
यह सबूत हैं संघ परिवार की देशभक्ति का।जो अपने आपको गांधी का सच्चा उत्तराधिकार मानता है। संघ के ही लोग गांधीजी की हत्या के बाद मिठाईयाँ बांची थी।
आम धारा तो यही है कि द्विराष्ट्र के सिद्धांत के लिए सिर्फ मुस्लिम लीग ही जिम्मेदार हैं। लेकिन हिन्दू महासभा की गतिविधियों से यह पता लगता है कि द्विराष्ट्र की सिद्धांत को विकसित करने में हिन्दू महासभा,मुस्लिम लीग से कतई पीछे नहीं थी।
1933 में महासभा के अजमेर अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए भाई परमानंद ने कहा,”हिन्दुस्तान सिर्फ हिन्दुओं की भूमि हैं तथा मुसलमान,ईसाई एवं अन्य समूह सिर्फ हमारे अतिथि मात्र हैं। वे अतिथि बनकर ही यहां रह सकते हैं।”
1937 में अहमदाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए सावरकर ने मुसलमानों का अलग राष्ट्र का दर्जा दे दिया।उन्होने कहा ,”भारत को एक समरूपी (होमोजीनियस) राष्ट्र नही माना जा सकता।भारत में मुख्य रूप से दो विरोधी राष्ट्र साथ-साथ अस्तित्व में हैं,यथा-हिन्दू और मुसलमान ।”
द्वितीय विश्वयुद्ध एवं 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी महासभा ने अंग्रेजों से आपसी सहयोग की अपील की ।31 अगस्त 1942 को पारित कार्यकारिणी के प्रस्ताव में इसने अपने तमाम सदस्यों को अपने कार्य में चिपके रहने का आदेश देते हुए ब्रिटिश सरकार से किसी प्रकार का व्यवधान न करने की अपील की ।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हिन्दू महासभा,आर.एस.एस.,मुस्लिम लीग के अलावा तमाम ब्रिटिश विरोधी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया ।तथाकथित राष्ट्रभक्त महासभा के नेतृत्व के अनेकों लोग ब्रिटिश सरकारी पदों पर चिपके रहे।मसलन श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में मंत्री पद पर बने रहे, जे.पी.श्रीवास्तव अग्रेज सरकार के खाद्य मंत्री बने रहे।एम.एस.अणे श्रीलंका में भारत के राजदूत बने रहे।
संघ परिवार अपने आपको देशभक्त एवं राष्ट्रवादी कहते हुए नहीं थकता हैं। बार-बार झूठ के प्रचार से जनता में एक भ्रम पैदा हो जाता हैं। इसका साम्प्रदायिक और फासीवादी एजेंडा छद्म राष्ट्रवाद का लबादा ओढ़े रहता हैं।
बहुसंख्यक की साम्प्रदायिकता राष्ट्रवाद का छद्म रूप लिए हो सकती है फिर भी ये संगठनों ने कुल मिलाकर अंग्रेजों के प्रति वफादारी या कम से कम गैर-राष्ट्रवादी रवैया अपनाते रहे।
सावरकर का हिन्दुत्व की थ्योरी हिन्दू एक धर्म न रहकर हिन्दू एक राष्ट्र मात्र तक सीमित नहीं रखा हिन्दू को एक प्रजाति तक बना दिया।उनका मानना है कि सभी हिन्दुओं की नसों में उसी शक्तिशाली जाति का पावनरक्त प्रवाहित हो रहा है,जिसका उद्भव वैदिक पूर्वजों से हुआ हैं।
अतः सावरकर के तर्क के अनुसार वही व्यक्ति हिन्दू है जो हिन्दूस्तान को केवल पितृभूमि ही नहीं वरन् पुण्यभूमि भी स्वीकार करता है।एक राष्ट्र,एक जाति और एक संस्कृति के आधार पर ही हिन्दुओं की एकता को स्वीकारा जा सकता हैं।
सावरकर के हिन्दुत्व में हिन्दू धर्म और हिन्दू राज्य की स्थापना प्रमुख उद्देश्य थे।सावरकर ने राष्ट्रीय एकता के स्थान पर धर्म की एकता एवं राष्ट्रीय संरक्षण के स्थान पर धर्म रक्षा को वरीयता दी।वे जनता को धर्म के नाम पर एकतावद्ध होने का आव्हान करते है जोकि एकता से अधिक विघटन के तथ्य निहित हैं।
सावरकर ने “हिन्दुत्व”और “हिन्दूवाद” में स्पष्ट भेद माना। हिन्दूवाद धार्मिक और आध्यात्मिक विचार हैं। जबकि हिन्दुत्व के साथ धर्म और अध्यात्म का कोई भी सरोकार नहीं हैं।सावरकर के हिन्दुत्व में हिन्दू को धर्म के बदले हिन्दू को एक जाति माना हैं।सावरकर के हिन्दुत्व में हिन्दू जाति का संपूर्ण इतिहास और विचार निहित हैं ।सावरकर ने माना कि हिन्दू की उत्पत्ति सप्तसिन्धु अर्थात पुरातन शब्द “शप्तहिन्दू” से हुई हैं।
सावरकर का मानना था कि “सिन्धुस्तान” केवल भूखण्ड मात्र ही नही वरन एक राष्ट्र था।सिन्धुस्तान के आगे के देशों को “म्लेच्छ स्थान”की संज्ञा दी गई ।उनका मानना था कि “आर्य” शब्द का तात्पर्य उन सभी लोगों से लिया गया है जो सिन्धु नदी से पार एक जाति के अविभाज्य अंग बन गये।वैदिक-अवैदिक,ब्राह्मण-चंडाल, सभी का इसमें समावेश था।उन सभी की अस्मिता से एक जाति ,एक संस्कृति,एक देश और एक ही राजनीति अनिवार्य रूप से स्थापित थी।
सावरकर के हिन्दुत्व अवधारणा के तहत किसी भी व्यक्ति को भारतीय संघ में सम्मिलित करने के लिए आवश्यक हैं कि वह हमारे *देश,संस्कृति और हमारे इतिहास* को अपनाये,हमारे देश को *मातृभूमि* माने।ऐसे व्यक्तियों के शरीर में समान *रक्त* प्रवाहित हो तथा साथ ही सभी भारत को *पुण्यभूमि* के रूप में स्वीकार करें।
सावरकर के हिन्दुत्व के इस थ्वोरी के हिन्दू धर्मशास्त्रों में लिखी हुई किसी भी बातों का कोई संबंध नहीं हैं।सावरकर के परिभाषा के आधार पर हिन्दुत्व का मतलब :-
प्राचीनकाल से जिस भूमि पर हमारे पूर्वज निवास करते आये है वह हमारे पितृभूमि हैं।
“सनातनी” और “वैदिक ” अनुगामी ही हिन्दू है क्योंकि भारत ही उनका पुण्यभूमि हैं। सावरकर के मतानुसार पुण्यभूमि से तात्पर्य है कि एक स्थान विशेष में किसी धर्म के संस्थापक,ऋषि,अवतार या पैगम्बर का प्रकट होना। इस दृष्टि से ईसाईयों की पुण्यभूमि “फिलिस्तीन “और मुसलमानों की “अरेबिया” हैं। (आलेख : सुख रंजन नंदी)
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