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मंगलवार, जुलाई 29, 2025
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कोरबा में जातिगत गाली-गलौज का मामला: सफाईकर्मी ने नगर निगम कर्मी पर दर्ज कराई शिकायत, कार्रवाई की मांग

कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक सफाईकर्मी द्वारा जातिगत अपमान और गाली-गलौज के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। पीड़ित करन कलशे (उम्र 28), निवासी प्रगति नगर, दर्री डेम के नीचे, ने कोतवाली थाने में आवेदन देकर नगर निगम के कर्मचारी पीयूष राजपूत के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

इस घटना ने एक बार फिर समाज में गहराई से व्याप्त जातिगत भेदभाव और सफाईकर्मियों के प्रति असम्मान की मानसिकता को उजागर कर दिया है।

बाजार के बीच अपमान, सफाईकर्मी की भावनाओं को लगी ठेस

घटना 12 जुलाई 2025 को बजरंग टाकीज़ के पास की बताई जा रही है, जहां करन कलशे अपने ठेकेदार बरून गोस्वामी के अंतर्गत सिलाई (सफाई) कार्य कर रहे थे। करन के अनुसार, नगर निगम कर्मचारी पीयूष राजपूत वहां अपनी गाड़ी से आए और उनसे कहा, “यहां का कचरा उठाओ।” जब करन ने काम करना शुरू किया, तभी पीयूष का रवैया अचानक बदल गया।

शिकायत के अनुसार, जब करन ने उनके व्यवहार पर प्रश्न किया तो पीयूष ने कथित तौर पर उन्हें जातिसूचक शब्दों के साथ माँ-बहन की भद्दी गालियाँ दीं। “नीच जाति के माँ की…, तुम मुझसे बहस करोगे?” जैसे अपशब्द कहे गए। करन ने स्पष्ट किया कि यह पूरी घटना आम लोगों के सामने हुई, जिससे उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित होना पड़ा।

“यदि आज आवाज न उठाई, तो कल औरों के साथ भी होगा यही”

करन कलशे ने अपने आवेदन में लिखा है कि इस तरह का व्यवहार केवल उनके आत्मसम्मान को नहीं, बल्कि हर उस मेहनतकश को ठेस पहुँचाता है जो समाज के सबसे कठिन और उपेक्षित कार्य करता है। उनका मानना है कि यदि ऐसे मामलों पर समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो अन्य सफाईकर्मियों को भी भविष्य में इसी तरह के अपमान का सामना करना पड़ सकता है।

साफ शब्दों में उन्होंने यह भी कहा कि – “एक सरकारी कर्मचारी होकर यदि कोई आम नागरिक के साथ इस प्रकार का जातिगत अपमान करता है, तो यह प्रशासनिक जवाबदेही और सामाजिक संवेदना दोनों पर सवाल खड़ा करता है।”

पुलिस ने जांच शुरू की, समाज में फिर उठा जातीय सम्मान का प्रश्न
कोतवाली पुलिस ने करन कलशे के आवेदन को संज्ञान में लेते हुए प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है। हालांकि, अब तक किसी प्रकार की एफआईआर दर्ज होने की पुष्टि नहीं हुई है।

यह मामला न केवल एक व्यक्ति के सम्मान का है, बल्कि उस वर्ग की गरिमा से भी जुड़ा है जो सफाई जैसे श्रमसाध्य कार्यों से समाज की बुनियादी स्वच्छता और स्वास्थ्य को बनाए रखता है।

जातीय अपमान: सिर्फ अपराध नहीं, सामाजिक बीमारी
भारत जैसे लोकतांत्रिक और संवैधानिक राष्ट्र में जातिगत गाली-गलौज केवल एक अपमानजनक व्यवहार नहीं, बल्कि अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। यह घटना साफ दिखाती है कि आज भी सफाईकर्मियों जैसे वंचित वर्गों को केवल उनके कार्य और जाति के आधार पर अपमानित किया जाता है, जो संविधान की मूल भावना – समानता और गरिमा – का उल्लंघन है।

समाज से सवाल – कब रुकेगा यह अपमान?
यह घटना केवल एक पुलिस शिकायत नहीं, बल्कि समाज के उस आईने की तरह है जो हमें बार-बार चेतावनी देता है कि जातीय अहंकार, व्यवस्था में ऊँच-नीच और श्रमिकों के प्रति मानसिकता अब भी बदलने को तैयार नहीं।

ऐसे मामलों पर सख्त कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ, समाज में संवेदनशीलता और सम्मान की संस्कृति को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। क्योंकि, सफाईकर्मी सिर्फ कचरा नहीं उठाते, वे शहर की आत्मा को भी साफ रखते हैं।

कोरबा की यह घटना एक चेतावनी है कि सम्मान और गरिमा की लड़ाई आज भी अधूरी है। अब देखना यह है कि कानून और समाज दोनों मिलकर इस अपमान के खिलाफ क्या कदम उठाते हैं – सिर्फ जांच में मामला दब जाएगा या वास्तव में किसी की आवाज से बदलाव की शुरुआत होगी।

यह समाचार किसी एक व्यक्ति के अपमान की नहीं, बल्कि श्रमिकों के प्रति हमारी सामूहिक संवेदनहीनता की कहानी है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि संविधान की रक्षा केवल अदालतों से नहीं, समाज की सोच से भी होती है।

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