नई दिल्ली : बजट 2021 पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन ने कहा है कि कोविड महामारी के बाद आए इस पहले बजट में मोदी सरकार के द्वारा अर्थव्यवस्था को सुधारने की दिशा में ना तो कोई प्रयास की गई है और न ही अपनी नौकरी गंवा चुके तथा आमदनी व जीवन यापन के स्तर में भारी गिरावट से परेशान जनता के लिए कोई तात्कालिक राहत ही प्रदान की गई है बल्कि संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था की असहनीय बोझ को जनता के कंधों पर डालकर बड़े कारपोरेटों के लिए अकूत संपत्ति जमा करने के अवसर के दरवाजे को और बड़ा कर दिया गया है।
भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने एक बयान में कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था में सरकारी निवेश और खर्च बढ़ाने की नितांत आवश्यकता है किंतु यह बजट थोक के भाव में विनिवेश और विनिवेशीकरण की दिशा में ही पूरी तरह से केंद्रित है।
रोजगार सृजन आमदनी में बढ़ोतरी और आम आदमी की खरीद सकने की शक्ति में बढ़ोतरी करने की दिशा में इस बजट को केंद्रित होना चाहिए था लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा है कि भारत के 100 सर्वाधिक धनी अरबपतियों की संपत्ति में इस महामारी और लॉकडाउन के दौरान लगभग तेरह लाख करोड़ की भारी बढ़ोतरी हुई है किंतु उनके इस संपत्ति को छोड़ दिया जा रहा है। इस पर संपत्ति कर या ट्रांजैक्शन टैक्स क्यों नहीं लगाया जा सकता? राजस्व नीति में सुधार कर अपराधियों से राजस्व वसूली बढ़ाने और मध्यम वर्ग को जीएसटी और आयकर में राहत देने के बजाय यह बजट पहले की तरह ही अत्यधिक अमीर परस्त राजनीति पर यह सरकार आगे की ओर लगातार बढ़ रही है।
सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) की कानूनी गारंटी देने की किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को सरकार ने फिर से खारिज कर दिया है। भारत के छोटे किसान और माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज के बोझ से दबे हुए लोग परेशान हैं। पूरे देश में छोटे कर्जदारों की ऋण माफ करने की मांग लगातार उठ रही है। किंतु बजट 2021 ने इस महत्वपूर्ण मांग को बिल्कुल नहीं माना है।
भाकपा महासचिव ने कहा है कि यह बजट 2021 भारत की गिरती हुई अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में पूरी तरह से विफल रही है। हम सरकार से मांग करते हैं कि इस बजट पर विस्तार से पुनर्विचार किया जाए। इस बजट के विरोध में भारत की मेहनत कश जनता को आवाज उठाने के लिए हम आव्हान करते हैं।
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