शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024
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उधर देश बिक रहा है और इधर देश सो रहा है

“गजब का देश है भारत” जिसे हिन्दुस्तान बनाने के लिए पूरे हिन्दुओं को 33 करोड़ देवी देवताओं का सुरक्षा कवच पहनाया गया है। सैकड़ों वर्षों से “चमत्कारवाद और अवतारवाद” ने भारत में “आविष्कारवाद” को दफन कर दिया, जिसके दुष्परिणामों ने देश को ना सिर्फ गुलाम बनाये रखा, बल्कि आज भी बहुसंख्यक समुदाय मानसिक, बौद्धिक व आर्थिक रुप से अपनी आजादी से वँचित हैं।

सैकड़ों वर्षों से “चमत्कारवाद और अवतारवाद” ने भारत में “आविष्कारवाद” को दफन कर दिया, जिसके दुष्परिणामों ने देश को ना सिर्फ गुलाम बनाये रखा, बल्कि आज भी बहुसंख्यक समुदाय मानसिक, बौद्धिक व आर्थिक रुप से अपनी आजादी से वँचित हैं।मोहम्मद बिन कासीम से लेकर बाबर के हमले तक ना तो “श्री राम” का “शिवधनुष” चला और ना ही “श्रीकृष्ण” का “सुदर्शन चक्र” काम आया। डेढ हजार सालों तक शक्ति के सामने भक्ति नतमस्तक होते रही। फिर भी हमारा दिल है कि मानता ही नहीं।

मोहम्मद बिन कासीम से लेकर बाबर के हमले तक ना तो “श्री राम” का “शिवधनुष” चला और ना ही “श्रीकृष्ण” का “सुदर्शन चक्र” काम आया। डेढ हजार सालों तक शक्ति के सामने भक्ति नतमस्तक होते रही। फिर भी हमारा दिल है कि मानता ही नहीं। आज भी “आस्था” और “विश्वास” ने सम्पूर्ण ग्लोबल को नियंत्रित करने वाले हमारे “मस्तिष्क” को लकवाग्रस्त कर रखा है और इन्हीं कारणों से भारत का बहुजन (ओबीसी, एससी, एसटी) सामाजिक व राजनीतिक क्रांति करने मे सफल नही हो पा रहा है।
“सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं बिकने दूँगा” इस प्रकार के भावनात्मक लच्छेदार भाषणों एवं “सबका साथ सबका विकास” जैसे गरीमामय नारों से 2014 मे भारतीय जनमानस को आकर्षित कर देने वाले नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी ने भारतीय जनता पार्टी को भारी बहुमत से चुनाव जीतवा कर स्वयं प्रधानमंत्री बने। 2019 मे भी जनता ने पुनः विश्वास जताया और जनता इन्तजार करती रही कि “अच्छे दिन” आयेंगे।

आज भी “आस्था” और “विश्वास” ने सम्पूर्ण ग्लोबल को नियंत्रित करने वाले हमारे “मस्तिष्क” को लकवाग्रस्त कर रखा है और इन्हीं कारणों से भारत का बहुजन (ओबीसी, एससी, एसटी) सामाजिक व राजनीतिक क्रांति करने मे सफल नही हो पा रहा है।

“सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं बिकने दूँगा” इस प्रकार के भावनात्मक लच्छेदार भाषणों एवं “सबका साथ सबका विकास” जैसे गरीमामय नारों से 2014 मे भारतीय जनमानस को आकर्षित कर देने वाले नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी ने भारतीय जनता पार्टी को भारी बहुमत से चुनाव जीतवा कर स्वयं प्रधानमंत्री बने। 2019 मे भी जनता ने पुनः विश्वास जताया और जनता इन्तजार करती रही कि “अच्छे दिन” आयेंगे।

काँग्रेस के जिन “बुरे दिन” का भय दिखाकर मोदी जी ने भारत की सत्ता प्राप्त की, आज लोग अपने उन्हीं पुराने दिनों को याद कर दिल बहला रहे हैं।

भाजपा के श्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय सम्पत्ति के नाम पर सात सालों में एक भी नवरत्न कम्पनी या सँस्थान का निर्माण किया हो। लेकिन आज वे ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री अवश्य बन गए हैं, जिनके कार्यकाल में देश की तमाम मजबूत और शक्तिशाली सँस्थान व नौरत्न कम्पनियां बिक रही हैं। बेहद मुनाफा कमा रही भारतीय जीवन बीमा निगम और भारत पेट्रोलियम जैसी कम्पनियों को बेचने का निर्णय ही भाजपा सरकार के भावी इरादों को स्पष्ट करता है कि, अब देश बचने वाला नहीं बल्कि बिकने वाला है। राज्य सभा में 11अगस्त को जो शर्मनाक घटना पहली बार हुई, वह इन्हीं बिकाऊ बिलों को बिना चर्चा के पास करने के कारण ही हुई थी।

सँसद के भीतर जिन विपक्षी साँसदो का जमीर जागा, उन्होंने इस बिल का पूरी ताकत से विरोध किया, लेकिन बहुमत के दँभ मे पागल मोदी सरकार ने देश को बेचने वाले बिल को ध्वनिमत से पारित करा लिया। इसी घटना से क्षुब्ध होकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश माननीय श्री रमना का ताजा बयान बहुत कुछ कहता है। इतना सब कुछ हो रहा है और ना जाने आगे क्या क्या होने वाला है, किन्तु देश की अवाम खामोश है। इतनी अधिक खामोश कि होश मे कौन है और बेहोश कौन है, यह फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है।

भारत में राम के नाम की राजनीति कर राष्ट्रीय स्वयं सेवक सँघ ने भाजपा को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया। अब राम के नाम की रोटी से भाजपा के नरेंद्र मोदी 85 प्रतिशत भारतीय बहुजनों की शारीरिक, मानसिक व आर्थिक भूख को शाँत कर रहे हैं। देश की जनता को यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही है कि देश की सम्पत्ति जनता की सम्पत्ति है और उसने सरकार इसलिये नही चुनी है कि उसकी इजाजत के बिना सरकार उसकी सम्पत्ति को बेच दे। सरकारी सम्पत्तियों से ही 85 प्रतिशत बहुजनों का स्वर्णिम भविष्य सँवरता है। इन्हीं सँस्थानो में दलित, आदिवासी व पिछडी जातियों को नौकरियों में आरक्षण मिलता है और इन्हें निजी हाथों में दे दिया जायेगा तो आरक्षण बिना हटाये ही स्वमेव समाप्त हो जायेगा।

भारत का आदिवासी सैकड़ो सालों से जल, जँगल और जमीन की समस्या से जुझ रहा है। उसके सँवैधानिक अधिकारों की महालूट जारी है, फिर भी वह नाचने, गाने, झूमने व सडक पर अपनी सँस्कृति का प्रदर्शन करने में मस्त है। भारत का दलित आज भी अपने सामाजिक सम्मान के लिए लड तो रहा है किन्तु बाबासाहेब अम्बेडकर को पूजने मे ज्यादा मस्त है। देश की सबसे बड़ी जमात ओ.बी.सी. के तेली,कुर्मी, लोधी, गुर्जर, मौर्या आदि स्वयं को क्षत्रिय घरानों का वीर पुत्र साबित करने मे मस्त है।

इस प्रकार बहुसंख्यक समुदाय की मदमस्त अदाओं से भारत का वर्तमान और भविष्य दोनों पस्त है। एक तरफ देश बिक रहा है और दूसरी तरफ देश सो रहा है। अब अल्लाह जाने क्या होगा आगे।

जिस गति से सरकारी सम्पत्तियों का निजीकरण हो रहा है, उसकी सबसे अधिक भयावह मार आदिवासी समाज को झेलनी पड़ेगी, क्योंकि आज भी आदिवासी विकास की बुनियाद “आरक्षण” पर ही खडी है। जय सेवा। सेवा जोहार। ( लेखक श्री के.आर.शाह, ‘आदिवासी सत्ता’ के संपादक हैं )

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