मनुष्य की जिंदगी में उसके पास अनेक शक्तियां होती हैं — शरीर की शक्ति, बुद्धि की शक्ति, ज्ञान की शक्ति, धन की शक्ति और समाज की शक्ति। लेकिन इन सभी के मूल में यदि कोई एक ऐसी ताकत है जो सबसे पहले जन्म लेती है, सबसे अंत तक साथ निभाती है, और सबसे बड़ी होती है — तो वह है “इच्छाशक्ति”।
यह शक्ति न तो आंखों से दिखती है, न तराजू से तौली जा सकती है, न किसी प्रयोगशाला में मापी जा सकती है। लेकिन जब यह जागती है, तो पूरी दुनिया उसके आगे झुकती है।
इच्छाशक्ति वह अदृश्य आग है, जो मनुष्य के भीतर से जलती है और उसे अंधेरे में भी रास्ता दिखाती है, तूफानों में भी खड़ा रखती है, और असफलताओं में भी मुस्कुराना सिखाती है।
इच्छाशक्ति का संबंध सिर्फ मानसिक दृढ़ता से नहीं है, यह अस्तित्व की बुनियादी ज़रूरत है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु में भी जीवित रहने की प्रवृत्ति (survival instinct) पाई जाती है। वह जन्म के समय सांस लेने के लिए संघर्ष करता है — यह इच्छा होती है जीवित रहने की, जो उसकी सबसे पहली शक्ति बनकर सामने आती है।
इसका अर्थ स्पष्ट है — इंसान का पहला कदम ही संघर्ष और इच्छा से शुरू होता है।
कई बार जीवन में परिस्थितियाँ इतनी कठिन हो जाती हैं कि शरीर जवाब दे देता है, लोग साथ छोड़ देते हैं, संसाधन खत्म हो जाते हैं। लेकिन तब भी कुछ लोग आगे बढ़ते हैं — क्योंकि उनके पास होती है “जिद”, “इरादा”, और “अडिग संकल्प”।
इसे ही हम इच्छाशक्ति कहते हैं। यही वह शक्ति है जो—
अंधेरे में उजाले की उम्मीद बनती है,
हार में जीत की संभावना देखती है,
और असफलताओं को सीढ़ियाँ बना देती है।
इतिहास भरा पड़ा है ऐसे उदाहरणों से जहाँ केवल इच्छाशक्ति के बल पर असाधारण सफलताएँ हासिल की गईं।

निक वुयिसिक (Nick Vujicic) का शरीर बिना हाथ-पैर के जन्मा, लेकिन इच्छाशक्ति के बल पर वह विश्व प्रसिद्ध प्रेरक वक्ता बना।
हेलेन केलर ने ना देख पाने, ना सुन पाने और ना बोल पाने की सीमाओं को इच्छाशक्ति से तोड़ डाला।
महात्मा गांधी के पास न हथियार थे, न सत्ता — लेकिन केवल नैतिक इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने एक साम्राज्य को झुका दिया। ब्रिटिश साम्राज्य।
एक बहुत बड़ी भ्रांति यह है कि सफलता के लिए साधनों की आवश्यकता होती है। साधन आवश्यक हो सकते हैं, लेकिन सबसे आवश्यक होता है — संकल्प।
“जहां चाह होती है, वहां राह अपने आप बन जाती है।”
जिसके पास इच्छाशक्ति है, वह साधनों का निर्माण कर सकता है। लेकिन जिसके पास केवल साधन हैं और संकल्प नहीं, वह कुछ नहीं कर सकता।
वास्तविक इच्छाशक्ति तब परखी जाती है जब जीवन आपको तोड़ने पर आमादा हो।
जब आपके अपने ही आपकी आलोचना करें।
जब लगातार विफलताएं मिलें।
जब स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति या समाज आपका साथ न दे।
ऐसे कठिन समय में जो व्यक्ति अपने मन की आग को बुझने नहीं देता, वही आगे चलकर मिसाल बनता है।
इसलिए कहा गया है—
“हीरे को परखना हो तो अंधेरे में देखिए, चमक सबमें होती है, फर्क रोशनी का होता है।”
इच्छाशक्ति केवल लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति नहीं है, यह आत्म-नियंत्रण का भी आधार है।
जब आपको क्रोध आता है, और आप उसे संयमित कर लेते हैं — वह इच्छाशक्ति है।
जब भूख लगने पर भी आप उपवास रखते हैं — वह इच्छाशक्ति है।
जब दुनिया कहती है “हार मान लो”, और आप कहते हैं “एक बार और कोशिश करूंगा” — वह इच्छाशक्ति है।
यह शक्ति मनुष्य को पशुता से उठाकर मानवता तक पहुंचाती है, और फिर उसे महानता की ओर अग्रसर करती है।
इच्छाशक्ति कोई स्थायी गुण नहीं है, इसे हमेशा जागृत और विकसित किया जा सकता है।
– सकारात्मक सोच: हर परिस्थिति में समाधान खोजने की आदत।
– छोटे-छोटे लक्ष्य: रोज़ एक चीज़ पर जीत हासिल करें।
– नियमित अनुशासन: समय पर उठना, पढ़ना, योग, ध्यान आदि।
– हार से न डरना: असफलता को अनुभव मानकर सीख लेना।
– प्रेरक साहित्य और संगत: अच्छे विचारों और लोगों के साथ रहना।

मनुष्य के जीवन की अंतिम घड़ी में, जब शरीर साथ छोड़ देता है, जब दवाइयाँ बेअसर हो जाती हैं, तब केवल यही शक्ति होती है जो व्यक्ति को जीवन से जोड़ कर रखती है।
कई चिकित्सकीय उदाहरण मौजूद हैं, जहाँ डॉक्टरों ने जवाब दे दिया लेकिन मरीज ने केवल अपनी जीने की जिद से मौत को मात दे दी।
यह इस बात का प्रमाण है कि इच्छाशक्ति सिर्फ मानसिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा भी है।
इच्छाशक्ति ही वह बीज है जिससे आत्मबल, आत्मविश्वास, चरित्र, नेतृत्व और महानता का वृक्ष पनपता है। यह वह शक्ति है जो गरीब को भी राजा बना सकती है, और जो राजा महाराजा है, उसे भी सही रास्ते पर चलना सिखा सकती है।
“इच्छाशक्ति वह दीपक है, जो भीतर जलता है। और, जब यह जलता है, तभी बाहर की दुनिया में प्रकाश फैलता है।”
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