हिजाब पहनकर स्कूलों में प्रवेश का विरोध करने वाली ताकतें देश की संविधान को नकारते हैं और उनका असली उद्देश्य मुस्लिम समाज के लड़कियों को शिक्षा से बंचित रखना।
अंग्रेजी शब्द “सेक्युलरिज्म” का समानार्थी शब्द के रूप में हिन्दी शब्द “धर्मनिरपेक्ष” का उपयोग किया जाता है। दुनिया के अनेक धार्मिक राष्ट्रों के बदले धर्मनिरपेक्ष भारत हमारे लिये गर्व का एहसास कराता है।
धर्मनिरपेक्षता, धर्म के प्रति उदासीन होना या सभी धर्मों के प्रति सदभाव कायम करना भी नही होता हैं तथा अपनी धर्म के प्रति आस्था रखकर दूसरे धर्म के प्रति सहिष्णु होना भी धर्म निरपेक्षता की परिभाषा नही है।
लोकतांत्रिक राष्ट्र के बिना किसी भी राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता हैं। दुनियां के किसी भी अलोकतांत्रिक राष्ट्र,धार्मिक राष्ट्र में खासकर जहा किसी विशेष धर्म, राष्ट्र के धर्म के रूप में स्वीकृत हो वह एक कट्टरपंथी राष्ट्र के रूप में ही परिवर्तित होता है जहां पर धर्मनिरपेक्षता की कोई संभावना ही नहीं होती हैं। एक लोकतांत्रिक देश होने के कारण ही भारत में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत की विकास की संभावनाएं मौजूद हैं।
भारत के संविधान में लंबे समय तक धर्मनिरपेक्ष नीति का कोई उल्लेख नहीं रहा हैं। सन 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान के 42 वां संशोधन कर संविधान के उद्देशिका में “पंथनिरपेक्ष”शब्द को शामिल किया गया हैं।
संविधान के विभिन्न भागों में अलग-अलग धाराओं में धर्म और राष्ट्र के बारे में जिक्र किया गया है ।संविधान के भाग 3 में जनता के मूल अधिकार के धारा 15 में कहा गया है कि:-
राज्य ,किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म,मूलवंश,जाति, लिंग,जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।उक्त बातों में भारत की धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत ही निहित हैं।
संविधान के धारा 25(1) के में इस बात पर जोर दिया गया है कि सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अवाध रूप से मानने,आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।
संविधान के धारा 26(1) में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को –
🔺️धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
🔺️ अपने धर्म विषयक कार्यो का प्रबंध करने का,
🔺️जंगम और स्थावर सम्पत्ति के अर्जन और स्वामित्व का,
🔺️ऐसी सम्पत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार होगा।
उपरोक्त सभी बातों से यह स्पष्ट होता है कि भारत का संविधान सभी धर्म,धार्मिक समूह एवम धार्मिक संस्थाओं को समान रूप से स्वीकृति प्रदान करता है।
संविधान ने सभी को अपने अपने धर्म को मानने और अपने धर्म को प्रचार करने पर भी अधिकार देता हैं।संविधान रचयिताओं का मुख्य भावनायें यही था कि सभी नागरिक धार्मिक होकर अपने अपने धर्म के प्रति आस्था रखते हुए अन्य दूसरें धर्मों के प्रति सहनशील रहेंगे ।
संविधान की इस मूल भावना जो किसी विशेष धर्म को प्रोत्साहित नही करता है सभी धर्मों और धार्मिक समुदाय को समान अधिकार प्रदान करता है , हमारे देश के दक्षिण पंथी हिन्दुत्ववादी विचारधारा के लोग इस संविधान को ही नकारता है और देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं।हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा जहां एक तरफ देश की धर्मनिरपेक्ष उसूलों पर हमला करता है वही दूसरी तरफ धर्मं के आधार पर राष्ट्र का निर्माण लोकतांत्रिक परंपरा को भी नष्ट कर तानाशाही को बढावा देने का काम करता है।
आरएसएस के स्वयंसेवक भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक संविधान के प्रति कितनी आस्था रखते है यह उनकी शाखाओं में की जाने वाली प्रार्थना और प्रतिज्ञा से लगाया जा सकता हैं।उनकी प्रार्थना में भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को नकार कर इसे “हिन्दू” “भूमि” की संज्ञा दी गई है।
भारत के मौजूदा संवैधानिक ढांचे को सुरक्षित रखने के बजाए वे प्रतिज्ञा करते है कि अपने पवित्र हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दू समाज का संरक्षण कर हिन्दू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए वे स्वयंसेवक संघ का घटक बना हैं।
भारत के मौजूदा संविधान जो सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है धर्म, जाति, लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार की कोई भेद-भाव का इजाजत नहीं देता है उस संविधान के रक्षा के बिना नागरिकों की बुनियादी अधिकारों को भी सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। (आलेख : सुखरंजन नंदी)
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