शुक्रवार, नवम्बर 8, 2024
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वेदांता द्वारा जारी अनैतिक श्रम प्रक्रिया पर रोक कब लगेगा?

” अनैतिक श्रम प्रक्रिया याने कि Unethical Labor process. वैसे यह मामला औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत आता है “

एक लंबे समय से वेदांता प्रबंधन के द्वारा बालको संयंत्र में एल्युमिनियम उत्पादन के कार्यों में दक्ष, कुशल, नियमित कर्मचारियों को उनके विभाग से एवं उनके कार्य स्थल से स्थानांतरित करके (सीधे शब्दों में कहें तो उनको हटा कर) उनके बदले, उन कार्य स्थलों में ठेका श्रमिकों को नियोजित किया जा रहा है।

अब आप कहेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है लेकिन विदांता अधिकृत बालको में यह प्रक्रिया डंके की चोट पर एक लंबे समय से हो रहा है। वैसे इस प्रकार के आड़े-तिरछे औद्योगिक कानूनी दांवपेच में श्रम विभाग की अहम भूमिका रही है।

नियमित कर्मचारियों के स्थान पर ठेका में कार्य करने के आदेश/अनुज्ञप्ति या सरल शब्दों में कहें तो लाइसेंस। यह लाइसेंस श्रम विभाग के द्वारा जारी की जाती है उसी लाइसेंस के आधार पर प्रबंधन के द्वारा ठेंका कर्मियों के नियोजन को वैध ठहराया जाता है और उस पर फंडा यह कि उन दक्ष और अनुभवी नियमित कर्मचारियों को अन्य विभागों में स्थानांतरित करके एक नए अनट्रेंड जॉब में उनको लगा दिया जाता है और नए होने के कारण कर्मचारी तत्काल अपनी पूरी दक्षता के साथ कार्य नहीं कर पाता ऐसी स्थिति में उन्हें रिजाइन कर देने अथवा सेवा निवृत्ति (VRS) भर के नौकरी छोड़कर चले जाने के लिए बहुत ही निर्लज्ज व अपमानजनक तरीके से प्रबंधन के द्वारा दबाव बनाया जाता है।

बालको नहीं रहा अब देश की शान

यह कार्य बालकों के निजीकरण के बाद 2001 से लगातार बालको कारखाने में वही अनुज्ञप्ति/ लाइसेंस जो कि श्रम विभाग के द्वारा जारी किया जाता है और वर्तमान में धड़ल्ले से जारी किया जा रहा है।

शासन प्रशासन के नाक के नीचे बहुत ही चतुराई के साथ इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने में सबसे बड़ा मददगार श्रम विभाग का वह जिम्मेदार अधिकारी जिन को बहुत अच्छी तरह से जानकारी होता है कि नियमित और लगातार चलने वाले उत्पादन के कार्यों में ठेका श्रमिकों का नियोजन निहायत ही अवैधानिक एवं अनैतिक श्रम प्रक्रिया है इसके बाद भी श्रम विभाग के द्वारा इस प्रकार के लाइसेंसों/ अनुज्ञप्तियों को जारी करना इस अनैतिक श्रम प्रक्रिया में श्रम विभाग याने कि प्रशासन की संलिप्तता को सीधा सीधा सिद्ध करता दिखाई देता है। और यह बात आम कर्मचारियों को भी एकदम साफ साफ समझ में आता है।

दुखद बात यह है कि इन श्रम विरोधी गतिविधियों के खिलाफ बोलने के लिए जिन श्रम संगठनों के पास लाइसेंस है (याने कि ट्रेड यूनियनों का पंजीयन) वे श्रम संगठन प्रबंधन के द्वारा प्रदत्त विभिन्न सुविधाओं, लाभों व कृपाओं की छुक-छुक गाड़ी में सवार होकर अपने ही उद्योग के, अपने ही कामगार साथियों को अपने नौकरी से हाथ धो बैठने के तमाशा देखने को याने कि है कि अपने ही बर्बादी के कारोबार को आगे बढ़ते देखने को मजबूर, लाचार व लगभग बदहवास की सी हालात में आज पड़े-पड़े बस टुकुर-टुकुर देखते रह जाते हैं। जिन श्रमिक संगठनों ने इसी स्टरलाइट/वेदांता के खिलाफ में संगठित होकर कभी 67 दिन का ऐतिहासिक आंदोलन किया था, लेकिन आज परिस्थिति बदल गई है? खैर, वक्त-वक्त की बात है।

श्रम विभाग के द्वारा जारी अनुज्ञप्तियों के आधार पर लोगों की नौकरी छीन लेना एक षडयंत्रकारी कार्यवाही है, तथा श्रमिक हित के नाम पर एक बहुत ही खतरनाक प्रक्रिया है। बालको में कार्यरत श्रमिकों के साथ ही जागरूक युवाओं को भी वेदांता प्रबंधन के द्वारा नौकरी छीन लेने वाली ऐसी कूटनीतिक कार्यवाही का पुरजोर विरोध करना ही चाहिए।

अगर वो इस शोषण का विरोध नहीं करेंगे तो फिर प्रबंधन के तो बल्ले बल्ले रहेंगे ही।

हमें इस बात को अब नहीं भूलना चाहिए कि बालको अब देश की शान नहीं रहा बल्कि अब वह वेदांता का एक लाभकारी दुकान बन गया है जहां पर लोगों की बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी की झुलसती आग में अपना हाथ और अपनी रोटी सेंकते हुए वेदांता अपना अकूत मुनाफा कमाते चला जा रहा है।

जनपद पंचायतों के निर्वाचन क्षेत्रों का हुआ अंतिम प्रकाशन

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