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सोमवार, दिसम्बर 23, 2024
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महिलाओं के आर्थिक अधिकार, सामाजिक सम्मान और राजनीतिक न्याय के लिए अपनी एकता और संकल्प को मजबूत करें: ऐपवा

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर।


8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है .महिला दिवस के इतिहास से हम वाकिफ हैं कि काम के घंटे कम करने ( 8 घंटे कार्य अवधि ) फैक्ट्रियों, कारखानों समेत सभी कार्य स्थलों पर शोषण मुक्त और सुरक्षित कार्यस्थितियों के लिए और महिलाओं के वोट देने के अधिकार के आंदोलन को मजबूत करने के लिए 1910 में कम्युनिस्ट महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में महिला दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था.इस तरह महिला दिवस महिलाओं के आर्थिक अधिकार, सामाजिक गरिमा व राजनीतिक न्याय हासिल करने के संघर्ष का प्रतीक बन गया. तब से इस दिन को दुनिया भर में महिलाओं ने बड़े – बड़े आंदोलन किए हैं और कई जीत हासिल की हैं.
लेकिन, आज 110 वर्षों के बाद संघर्ष से हासिल हमारे ये अधिकार खतरे में हैं और पूरी दुनिया में महिलाएं अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ रही हैं. अपने देश की बात करें तो –
-मजदूर महिलाएं मोदी सरकार द्वारा पारित श्रम कानूनों के खिलाफ लड़ रही हैं. स्कीम वर्कर्स लड़ रही हैं कि उन्हें कर्मचारी की मान्यता और न्यूनतम वेतन मिले.

  • किसान महिलाएं दिल्ली के बॉर्डर पर और पूरे देश में कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ रही हैं. अंबानी, अडाणी और बड़े पूंजीपतियों के फायदे के लिए बनाए गए ये कानून किसानों की गुलामी का दस्तावेज हैं. इन कानूनों के जरिए सरकार धीरे धीरे राशन व्यवस्था (जन वितरण प्रणाली) को खत्म कर देगी. इसलिए यह देश भर की गरीब महिलाओं के हितों पर हमला है. बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों का अनाज पर नियंत्रण होने पर अनाज और महंगा होकर बाजार में बिकेगा और मध्यवर्गीय महिलाओं की रसोई को भी प्रभावित करेगा. इसलिए, इन तीन कृषि कानूनों को खत्म करने की मांग किसान महिलाओं की ही नहीं देश की आम महिलाओं की भी मांग है.
    -पेट्रोल, डीजल और और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों से महिलाएं परेशान हैं इसलिए निजीकरण का विरोध और कीमतों पर नियंत्रण की मांग कर रही हैं.
  • स्वयं सहायता समूहों व माइक्रो फायनांस संस्थाओं से छोटे कर्ज लेने वाली महिलाएं कर्ज माफी, ब्याज दरों को कम करने और अन्य राहतों की मांग कर रही हैं. (सरकार ने लॉकडाउन के समय और बजट में भी पूंजीपतियों को राहत दिया!)
  • भाजपा शासित राज्य खुलेआम बलात्कारियों का बचाव कर रहे हैं. हाथरस, उन्नाव जैसी घटनाएं उत्तर प्रदेश में बार-बार हो रही हैं इसलिए महिलाएं योगी सरकार से इस्तीफे की मांग कर रही हैं.
  • मोदी सरकार से असहमति रखने वाले नागरिक आंदोलन पर हमले हो रहे हैं और सीएए , एनआरसी, तीन कृषि कानून विरोधी आंदोलन में शामिल महिला कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न किया जा रहा है. सच बोलने और सरकार के अन्यायपूर्ण नीतियों का विरोध करने के कारण आज बड़ी संख्या में महिलाएं और लड़कियां या तो जेल में डाल दी गई हैं या मुकदमा झेल रही हैं. भाजपा की सांप्रदायिक नीतियों का विरोध करने के कारण कुछ वर्ष पहले गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई.
    इसलिए, आइए इस वर्ष 8 मार्च को हम सरकार से कहें कि महिलाओं की बराबरी और सम्मान की थोथी बातों और भाषण की हमें जरूरत नहीं है बल्कि सरकार हमारी बराबरी व आजादी का सम्मान करे और हमारे अधिकारों को कुचलना बंद करे.
  • आइए, हम देश की सभी संघर्षरत महिलाओं और खास तौर पर बॉर्डर पर डटी किसान बहनों का अभिनंदन करें और उनकी आवाज को पूरे देश में गुंजायमान कर दें.

( अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन ‘ऐपवा’ की प्रेस को जारी बयान पर आधारित )

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