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रविवार, दिसम्बर 22, 2024
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मजदूरों की गुलामी के चार श्रम कोडों को रद्द करो

ऐक्टू का देशव्यापी अभियान

किसानों की जमीन छीनकर अंबानी-अडानी सरीखे कारपोरेट घरानों के हवाले करने वाले मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का ऐतिहासिक देशव्यापी आंदोलन जारी है। इस अभूतपूर्व आंदोलन को मजदूरों समेत आम अवाम का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। 150 से अधिक किसानों की शहादत और अनेकों कठिनाइयों के साथ पिछले साल 26 नवंबर संविधान दिवस से चल रहे दृढ़ता और चट्टानी संकल्प से भरपूर इस किसान आंदोलन को तिलमिलाई अहंकारी मोदी सरकार ने अपने निरंतर अपनाए गए साजिश, भय और दमन समेत हर तरीके से दबाने के बेहद भर्त्सनीय प्रयास किए; यहां तक कि किसानों और उनके नेताओं के खिलाफ देशद्रोह और यूएपीए कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसका देश का मजदूर आंदोलन सख्त विरोध करता है।

ये विनाशकारी कृषि कानून न केवल किसानों व किसानी को तबाह कर देंगे बल्कि आम जनता को दाने-दाने का मोहताज बना देंगे। खासकर असंगठित मजदूरों, मजदूरों की आगामी पीढ़ियों और गरीब अवाम को खाद्य सुरक्षा से भी वंचित कर देंगे क्योंकि खाने की वस्तुओं को बाजार और जमाखोरी के हवाले कर दिया जाएगा। राशन व पीडीएस प्रणाली समाप्त कर दी जाएगी।

देश के मजदूरों को इन्हीं पूंजीपति घरानों, मालिक वर्ग का गुलाम बनाने के लिए मोदी सरकार ने चार श्रम कानून (कोड) बना दिए हैं. मालिकों और पूंजी की गुलामी से खुद को बचाने के लिए देश के मजदूर वर्ग ने ब्रिटिश शासन के समय से ही लंबी संघर्षों और कुर्बानी के जरिए कई श्रम कानून का अधिकार हासिल किए थे। जिन्हें मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है। केंद्रीय स्तर पर 44 श्रम कानूनों और कई राज्य कानूनों को खत्म करके यार ऐसे श्रम कोर्ट बना दिए गए हैं जो मजदूरों को पूरी तरह से मालिकों के रहमों करम पर छोड़ देंगे। 12 घंटे का कार्य दिवस देश भर में आम बनता जा रहा है और इसे कई खासकर भाजपा शासित राज्यों ने कानूनी बना दिया है। जहां, इन सभी कृषि और श्रम कोड कानूनों को लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए संसद में बिना किसी बहस और वोटिंग के कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार ने पास कर दिया। वही श्रम कानूनों को बनाने की प्रक्रिया में ट्रेड यूनियन संगठनों ने जो कोई भी मजदूर पक्षीय सुझाव दिए। उन्हें रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया गया।

यही असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महामारी के संकट को अवसर में बदलने के मंत्र का एक शर्मनाक सच है किसानों की जमीन छीनना और लॉक डाउन की मार से पीड़ित मजदूरों को मालिकों की मजदूरी में धकेलना, ताकि कारपोरेट घरानों के मुनाफे के अंबार बढ़ते जाएं जब मजदूर लॉकडाउन के चलते दर-दर की ठोकरें खा रहे थे। मुकेश अंबानी हर घंटे की 90 करोड रुपए कमा रहे थे। कुल मिलाकर यह कृषि कानून और श्रम कोड फांसी का फंदा है जिससे किसानों और मजदूरों को खुद को मुक्त करना है। किसानों ने इस दिशा में एक ऐतिहासिक आंदोलन छेड़ दिया है। अब अपने संघर्ष को और अधिक तेज करने की मजदूर वर्ग की बारी है। ी कोरोना काल में निजी करण की रफ्तार को तेज करते हुए रेल, डिफेंस से लेकर खनिज-खदान तक देश की समूची संपत्ति देशी-विदेशी कंपनियों को बेच दी गई है। बची थी खेती, जिस पर देश की अधिकतर जनता निर्भर है। वह भी इन तीन कृषि कानूनों के माध्यम से अंबानी अडानी के हवाले कर दी जा रही है।

मोदी सरकार की नोटबंदी से शुरू कर lock-down तक रोजगार का भारी पैमाने पर विनाश हो गया है। देश आज रिकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी और साथ ही कमरतोड़ महंगाई के नीचे कराह रहा है। Lock-down उठने के बाद भी आज काम मिल नहीं रहा है या आंशिक तौर पर मिल रहा है। छटनी बड़े पैमाने पर जारी है। यह Qचार 66 कोड मजदूरों के अधिकारों, रोजगार और सुरक्षा का खात्मा कर देंगे। न्यूनतम मजदूरी के सवाल को ही खत्म कर दिया गया है। यूनियन बनाने और हड़ताल करने के अधिकार छीन लिए गए हैं। ऐसे में, देश का एक विशाल, सबसे शोषित असंगठित हिस्सा शोषण से अपनी सुरक्षा के लिए कभी संगठित नहीं हो सकेगा। मनमर्जी से छटनी (हायर एंड फायर) की खुली छूट जहां मालिकों को दे दी गई है वहीं स्थाई व नियमित रोजगार का खात्मा कर दिया गया है।

फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों के लिए सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थितियों की शर्तों से मालिकों को मुक्ति दे दी गई है, और ऐसा श्रम कानूनों में बदलाव करके किया गया है। इसी तरह ठेका मजदूरों को कानून की सुरक्षा के दायरे से बाहर कर दिया गया है और ठेकेदारों का राज स्थापित किया जा रहा है। सामाजिक सुरक्षा के तहत की एसआईपीएफ ग्रेच्युटी, पेंशन इत्यादि मालिकों या सरकार की नहीं श्रमिकों की अपनी जिम्मेदारी बन जाएगी। ना तो नियोक्ता और न ही सरकार को जवाबदेह ठहराया जाएगा। महिला श्रमिकों को और भी अधिक शोषणकारी व असुरक्षित स्थिति में धकेल दिया जाएगा। यहां तक कि मातृत्व लाभ भी छीन लिया जाएगा और गर्भावस्था व प्रसव की स्थिति में छटनी का दंड झेलना पड़ेगा और बड़ी संख्या में महिला श्रमिकों को ‘श्रमिक’ का दर्जा पाने से वंचित कर दिया जाएगा।

मोदी सरकार ने सभी श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर वर्ग पर युद्ध की घोषणा कर दी है। किसानों की ही तरह मजदूरों का अस्तित्व भी संकट में पड़ गया है। अब मोदी सरकार के खिलाफ जवाबी युद्ध छेड़ने की बारी देश के मजदूर वर्ग की है। केवल तभी मजदूर विरोधी श्रम कोड कानूनों को परास्त किया जा सकता है। देश की संपत्ति को बेचने के मंसूबों को परास्त किया जा सकता है। मजदूर वर्ग ने दूसरी बार आई मोदी सरकार के खिलाफ अपने संघर्ष का बिगुल पिछले साल ही 26 नवंबर को सफल देशव्यापी हड़ताल कर बजा दिया था। इसी दिन से कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के ऐतिहासिक आंदोलनों की शुरुआत भी हुई।

आइये, कृषि कानूनों की वापसी के लिए जारी किसानों के देशव्यापी आंदोलन के साथ कंधा से कंधा मिलाते हुए श्रम कोड कानूनों को रद्द करने का संघर्ष को और तेज करें। भारत को कंपनी राज्य से आजाद कराने और देश के संविधान व लोकतंत्र की रक्षा के संघर्ष को तेज करें। इस दिशा में इस वर्ष 26 जनवरी को किसानों और आम जनता ने अपनी एकता जड़ता और ताकत के प्रदर्शन के माध्यम से देश के संविधान की गणतंत्र आत्मा समुचित न्याय स्वतंत्रता समानता व भाईचारा को पुनः जगा कर एक नया इतिहास रच दिया है। आइये, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन ‘ऐक्टू’ के द्वारा आहूत “श्रम कोड रद्द करो” देशव्यापी अभियान को जोरदार ढंग से सफल बनाएं।

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