केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने संसद को सूचित करते हुए बताया है कि पिछले 5 सालों में कारखानों, बंदरगाहों, खदानों और निर्माण स्थलों पर कम से कम 6,500 कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान मौत हुई है।
हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार कई मौतों की कोई रिपोर्ट ही नहीं रखी जाती है काम के दौरान घायल होने वाले मजदूरों का भी कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता या कई बार ऐसा होता है कि घायल श्रमिक की कुछ दिनों के बाद मौत हो जाती है ऐसी दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाले मजदूरों की संख्या को भी रिपोर्ट में जोड़ा जाए तो वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा होगी।
विशेषज्ञों ने यह भी बताया है कि फैक्ट्रियों, खदानों या निर्माण स्थलों पर काम के दरमियान मारे जाने वाले मजदूरों की संख्या जब तक अधिक न हो तब तक वह खबरों की सुर्खियों में नहीं आ पाती इस कारण भी बहुत बार मौतों की खबरों को दबा दिया जाता है।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक कुल मौतों में से 5629 या 80% से अधिक फैक्ट्रियों के अंदर हुई जबकि खानों में 549 मौतें, बंदरगाहों पर 74 और केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र (केंद्रीय क्षेत्र) निर्माण स्थलों में 237 मौतें हुई।
मंत्रालय के अनुसार फैक्ट्रियों के अंदर होने वाली मौतों से संबंधित आंकड़े 2014 और 2018 के बीच हैं। बंदरगाहों पर हुई मौतें 2015 से 2019 के दौरान की हैं और खदान में होने वाली मौतों को 2016 से 2020 तक एकत्र किया गया था। केंद्रीय क्षेत्र के तहत निर्माण स्थलों पर मौतों का आंकड़ा 2017 से मार्च 2021 तक का है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कार्य स्थलों पर भी ज्यादातर मौतों के पीछे का कारण विस्फोट, आग लगना, मशीनों के अनियंत्रित होने, बिजली का करंट लगना आदि रही हैं।
2017 और 2018 के बीच फैक्ट्रियों में होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत की वृद्धि
गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे शीर्ष औद्योगिक राज्यों में मजदूरों की मौत की संख्या सबसे ज्यादा है इस दौरान महाराष्ट्र और गुजरात में फैक्ट्रियों में होने वाली मौतों में वृद्धि हुई है. हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में इस अवधि के दौरान कम होते देखी गई।
इस दौरान गुजरात में सबसे ज्यादा मजदूरों की मौत के मामले देखे गए।
2018 में गुजरात से 263 और महाराष्ट्र से 142 जबकि पूरे भारत से 1,131 मौतें दर्ज की गई। इनमें से 263 मौतें फैक्ट्रियों में हुई इसी तरह 2017 में फैक्ट्रियों में हुई 969 मौतों में 229 गुजरात और 137 महाराष्ट्र से थी।
इन 5 वर्षों में खदानों में हुई कुल मौतों में से 111 या लगभग 20 प्रतिशत झारखंड से थी इसके बाद छत्तीसगढ़ में 50 मौतें हुई।
2021 में अब तक निर्माण स्थलों पर 26 मौतें हुई जबकि पिछले साल 14 और 2019 में 1 शो 48 मौतें हुई।
असल में मजदूरों के अपने कार्य स्थलों पर विभिन्न दुर्घटनाओं में मारे जाने की संख्या इन सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक है। इसकी पहली वजह यह है कि विभिन्न राज्यों में निर्माण कार्यों के दौरान मारे गए मजदूरों की गिनती इनमें नहीं की गई और दूसरी वजह यह है कि किसी फैक्ट्री में या खदान में घायल हुए व्यक्ति की अगर 15-20 दिनों के बाद अस्पताल या घर पर मौत हो जाती है तो ज्यादातर मामलों में उन्हें एक साधारण चोट के रूप में गिना जाता है।
एक्स.एल.आर. आई जमशेदपुर के प्रोफ़ेसर के आर श्याम सुंदर ने कहा है कि “नये लेबर बिल को बनाते समय सरकार को मजदूरों की सुरक्षा संबंधी उपायों में सुधार करने चाहिए थे लेकिन अफसोस है कि सरकार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। छोटी फर्मों को मजदूरों की सुरक्षा संबंधी उपायों में ढील देने की छूट दे दी गई है।
मालूम हो कि केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा बनाए गए चार नए श्रम कोड कानूनों में मजदूरों के सुरक्षा संबंधी उपायों को पुख्ता करने की बजाय कंपनियों को इस मामले में अच्छी खासी छूट दी गई है आने वाले समय में इस बात की पूरी आशंका है कि कंपनियों में दुर्घटनाओं की संख्या तो बढ़ेगी ही साथ ही कंपनियों को इन जिम्मेदारियों से बचने की छूट भी मिल जाएगी। ( श्रमिक सॉलिडैरिटी से साभार )
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