शनिवार, जुलाई 27, 2024
होमउत्तरप्रदेशबहुत बर्बर, झूठा व नकारा है कोरोना से निपटने का योगी मॉडल

बहुत बर्बर, झूठा व नकारा है कोरोना से निपटने का योगी मॉडल

कोविड-19, यूपी का सच

उत्तर प्रदेश की सच्चाई आज क्या है, यह बता रही हैं गाजीपुर, बलिया, उन्नाव में गंगा में बहती लाशें, नदी किनारे रातों रात उग आई बेशुमार कब्रें, बेहिसाब जलती चिताएं, पीपल के पेड़ों पर रोज लटकती नई मटकियों की बाढ़।

ग्रामीण भारत में कोविड से मची तबाही से सुलगते जन-आक्रोश को भांपते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 मई को किसान खातों में सम्मान -निधि की 2000 रुपये की क़िस्त जारी की, दरअसल महामारी की दूसरी लहर की शायद सबसे बड़ी कहानी यही है कि अबकी बार यह भारत के गांवों में कहर बरपा कर रही है, टेस्ट, दवा, अस्पताल, इलाज के अभाव में इस विनाशलीला का कोई अंत नहीं दिख रहा।

उत्तर प्रदेश में तेजी से बिगड़ते हालात के बीच वाराणसी जो प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है, वहां मोदी जी के चहेते पूर्व IAS अधिकारी अरविंद शर्मा (जो किसी बड़े पोलिटिकल assignment की अटकलों के बीच MLC बनाये गए थे) को लगाया गया है। पर हालत यह है कि वहां मोदी जी के 2014 चुनाव के प्रस्तावक, प्रख्यात शास्त्रीय संगीत गायक पद्म-विभूषण छन्नू मिश्र की बेटी तक की उचित इलाज के अभाव में मौत हो गयी। उनकी दूसरी बेटी के मीडिया के सामने आने के बाद अब DM ने जांच बैठा दी है। सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक, पद्मभूषण राजन मिश्र की वेंटिलेटर के अभाव में मौत हो गयी। अब उनके नाम पर बनारस में एक कोविड अस्पताल का नामकरण किया गया है। अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उनके बेटे रजनीश ने कहा, ” पिताजी अस्पताल देखने नहीं आएंगे, न रामजी अयोध्या में मंदिर देखने। प्रधानमंत्री का नया आवास बाद में भी बन सकता है, इस समय देश को सारी सुविधाओं से सुसज्जित अच्छे अस्पतालों की जरूरत है, ताकि लोगों की जान बचाई जा सके।” उनके चाहने वालों में गुस्सा है, ” जरूरत पर सरकार उन्हें वेंटिलेटर नहीं दे सकी, अब नाम रखने से क्या फायदा ?”

अंतिम क्रिया के लिए शवों का जिस तरह अम्बार लगा हुआ है, मणिकर्णिका घाट श्मशान की तस्वीरें लोगों को डरा रही हैं।

राजधानी लखनऊ में लगातार मौतें जारी हैं, कोरोना की दूसरी लहर में यहां ऑक्सीजन, बेड, अस्पताल और दवाओं के अभाव में तबाही का मंजर दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों जैसा है।

इलाहाबाद में स्थिति की भयावहता को बताने के लिए स्वरूपरानी अस्पताल में सही इलाज और वेंटिलेटर के अभाव में उसी अस्पताल में मशहूर सर्जन रहे डॉ. जेके मिश्र की दुःखद मौत ही पर्याप्त है।

उप्र की सच्चाई आज क्या है, यह बता रही हैं गाजीपुर, बलिया, उन्नाव में गंगा में बहती लाशें, नदी किनारे रातों रात उग आई बेशुमार कब्रें ( दैनिक भास्कर की टीम ने गंगा किनारे ऐसी 2000 कब्रों की रिपोर्ट किया है ), बेहिसाब जलती चिताएं, पीपल के पेड़ों पर रोज लटकती नई मटकियों की बाढ़।

बुखार, खांसी, सांस की तकलीफ और पट-पट गिरती लाशें। मेरठ, मुजफ्फरनगर से लेकर गोरखपुर, कुशीनगर तक हाहाकार मचा हुआ है।

टेस्ट हो नहीं रहा तो ये अनगिनत मौतें कोविड में दर्ज नहीं हो रहीं। इसलिए आंकड़े बिल्कुल चाक चौबंद, अब घटते जा रहे!

लेकिन हालात की भयावहता को इससे समझा जा सकता है कि थोड़ा-बहुत जो टेस्ट हो रहा, उसमें Positivity दर अप्रैल के पहले सप्ताह के 2.69% की तुलना में बढ़कर मई के पहले हफ्ते में 20% हो गयी अर्थात हर 5 आदमी में 1 कोरोना पीड़ित। दरअसल, जिस तरह गांव-गांव, घर-घर लोगों में लक्षण है, शायद यह संख्या भी under-estimation है।

वैक्सीन का तो टोटा पड़ ही गया है, प्रशासनिक अराजकता और झूठ-फरेब का आलम यह है कि अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार इलाहाबाद में अनेक लोगों को बिना टीका लगे ही टीकाकरण का प्रमाणपत्र उनके पास पहुंच रहा है!

आज हालत कितनी बुरी है यह जानने के लिए स्वयं संघ-भाजपा के अंदर से उठती आवाजों को सुनना ही पर्याप्त है। केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह और संतोष गंगवार जो प्रदेश भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में हैं, प्रदेश सरकार के ताकतवर मंत्री ब्रजेश पाठक, अवध के भाजपा के बड़े पासी नेता सांसद कौशल किशोर और अनेक विधायक अपनी ही सरकार की नाकामी पर सवाल उठा चुके हैं। अमित जायसवाल जैसे संघ के कार्यकर्ता जिन्हें प्रधानमंत्री स्वयं फॉलो करते थे, वे मोदीजी, योगी जी को टैग करने के बावजूद इलाज के अभाव में विदा हो गए।

बुलंदशहर के बनेल गांव में संघ के सरसंघचालक रहे रज्जू भैया (प्रो. राजेन्द्र सिंह) के जवान पोते की इलाज के अभाव में कोविड से मौत हो गई। NDTV के श्रीनिवासन जैन की वहां से जारी रिपोर्ट के अनुसार इस VIP गांव में अनेक लोग दम तोड़ चुके हैं, 10 हजार की आबादी में मात्र 79 लोगों की टेस्टिंग हुई जिसमें 19 पॉजिटिव निकले। न टेस्टिंग है, न डॉक्टर है, न अस्पताल में कोई इलाज है। यह VIP गांव की कहानी है जिसे बुलंदशहर के भाजपा सांसद गोद लिए हुए हैं। बहरहाल परम्परागतरूप से भाजपा समर्थक वहां के ग्रामवासियों में भाजपा और योगी सरकार के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है, जिसकी अभिव्यक्ति पंचायत चुनाव में हुई जहाँ भाजपा का जिला पंचायत उम्मीदवार चौथे स्थान पर चला गया।

यह देखना रोचक है कि विदेशी मीडिया में हो रही थू-थू से घबड़ाई हुई मोदी-योगी की परम् स्वदेशी/राष्ट्रवादी सरकारें विदेशी सर्टिफिकेट के लिए बेतरह बेचैन हैं, हालत यह है कि झूठ-फरेब के बल पर विदेशी अखबारों, संस्थाओं के तमगे का नैरेटिव गढ़ने के desperation में वे पूरी दुनिया में मजाक बन कर रह गए हैं। माहौल बनाया गया जैसे कि लंदन के अखबार Guardian में मोदी सरकार की तारीफ की गई हो, मोदी कैबिनेट के अनेक मंत्रियों ने उसे शेयर और रीट्वीट कर डाला, बाद में पता चला कि वह पाठकों को ठगने के लिए Guardian के बगल में Daily जोड़कर बनाई गई कोई लोकल वेबसाइट है उत्तर प्रदेश की!

इसी तरह योगी जी के नवरत्नों ने यह प्रचारित करवा दिया था कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय की किसी आर्टिकल में कोरोना से निपटने के योगी मॉडल की प्रशंसा की गई है। बाद में हार्वर्ड के प्रवक्ता को सार्वजनिक बयान देना पड़ा कि यह सफेद झूठ है!

अभी हाल-फिलहाल यह प्रचारित किया जा रहा है कि WHO ने योगी सरकार की तारीफ की है। लोग हैरान हैं कि जिस दिन गंगा में कोरोना मृतकों की लाशें तैरती मिल रही हैं, गांवों में चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है, उस समय इसका क्या मतलब है। बहरहाल, थोड़ा तह में जाइये तो पता लगता है कि यह उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता का बयान है कि WHO ने हमारी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की तारीफ की है, WHO का कहीं पब्लिक डोमेन में कोई बयान नहीं है। दैनिक भास्कर की विस्तृत पोलखोल के अनुसार जब WHO के कार्यालय से इसके बारे में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। सच्चाई यह है कि जब कम्युनिटी ट्रांसमिशन के हालात हैं, गांव का गांव, मुहल्ले का मुहल्ला बुखार में तप रहा है, तब कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर पीठ थपथपाने का कितना औचित्य और उपयोगिता बची है, वह भी संदिग्ध आंकड़ों और मैनेजमेंट से!

आखिर इन तिकड़मों की क्या जरूरत है ? क्या इन एजेंसियों के प्रमाणपत्र से आज प्रदेश का जो भयावह सच है, वह बदल जाएगा ? क्या इनसे जिन लोगों ने अपनों को खोया है, वे अपना दर्द भूल जाएंगे ?

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपनी चर्चित टिप्पणी में कहा है कि उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है यह जनसंहार से कम नहीँ हैं ! उसने पंचायत चुनाव की ड्यूटी पर लगाये गए 2 हजार से ऊपर शिक्षकों, कर्मचारियों तथा अनगिनत आम जनता की मौत के लिए चुनाव आयोग और उत्तरप्रदेश सरकार को जिम्मेदार माना है।

वे परिवार, वे गांव जिन्होंने अपनों को खोया है, वे पूछ रहे हैं कि ये चुनाव स्थिति सामान्य होने पर होते तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता ? कौन सा संवैधानिक संकट खड़ा हो जाता ? संविधान, लोकतंत्र की रक्षा की मोदी- योगी को कितनी परवाह है, यह देश-दुनिया में किससे छिपा है !

दरअसल, बंगाल विजय की जो बेचैनी मोदी-शाह को थी, वही पंचायत-विजय की योगी जी को थी। शायद उनके कुनबे को यह आशंका थी कि अभी चुनाव टला तो विधानसभा चुनाव के पूर्व नहीं हो पायेगा, इसलिए अपनी सरकार के रहते, मशीनरी की मदद से वे सत्ता और धन के स्रोत पंचायत के विभिन्न स्तरों पर अपना कब्जा सुनिश्चित करने को व्यग्र थे। हालांकि, उप्र की जनता ने योगी और उनके सिपहसालारों के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया।

सच्चाई यह है कि योगी जी हर मर्ज की केवल एक दवा जानते हैं -ठोंक दो।

आज उप्र में लोगों को सबसे ज्यादा दुःख और नाराजगी इस बात को लेकर है कि मुख्यमंत्री लगातार झूठे दावे कर रहे हैं और अहंकारपूर्ण मुद्रा अख्तियार किये हुए हैं। जो लोग आईना दिखा रहे हैं और संकट की घड़ी में लोगों की मदद कर रहे हैं, उन्हें ही कठघरे में खड़ा करने और धौंस धमकी देने में लगे हैं। योगी ने एलान कर दिया कि प्रदेश में किसी अस्पताल में ऑक्सीजन, बेड, डॉक्टर की कोई कमी नहीं है और जो भी इसकी शिकायत कर रहा है, वह माहौल खराब कर रहा है, उसके ऊपर NSA लगाया जाएगा और उसकी सम्पत्ति जब्त होगी।

ऐसे संवेदनहीन बयानों पर कड़ी फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, “सोशल मीडिया पर जो लोग अपनी परेशानियां जता रहे हैं, उनके साथ बुरा बर्ताव नहीं होना चाहिए। यहां से यह कड़ा संदेश जाना चाहिए कि अगर किसी नागरिक पर मदद की गुहार लगाने के लिए एक्शन लिया गया, तो उसे कोर्ट की अवमानना माना जाएगा.”

सरकार की सारी कोशिश सच्चाई को छिपाने की, आंकड़ों को दबाने की और झूठे प्रचार से बस यह नैरेटिव स्थापित करने की है कि सरकार बहुत तत्परता से सारी चीज़ों को ठीक कर रही है और किसी चीज की न कोई कमी है न किसी तरह की कोई समस्या है। जो किसी भी तरह की शिकायत या आलोचना कर रहे हैं, उनका मुंह बंद करने को सरकार तत्पर है।

गौर से देखा जाय तो यह संघ-भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लॉन्च किए गए “पॉजिटिविटी अनलिमिटेड” अभियान का ही योगी संस्करण है। संघ के दूसरे सबसे ताकतवर नेता सर कार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय हसबोले ने कहा कि, ” विध्वंसक और भारत-विरोधी ताकतें समाज में इन परिस्थितियों से फायदा उठाकर नेगेटिविटी और अविश्वास ( mistrust ) पैदा कर सकती हैं।” जाहिर है, महामारी से निपटने की सरकार की नीतियों, तौर-तरीकों और कदमों से जो लोग असहमत हैं, उसकी आलोचना करते हैं, उसमें बदलाव की मांग करते हैं, उसके लिए सुझाव देते हैं, ऐसे लोगों को निगेटिविटी फैलाने वाला, विध्वंसक और भारत-विरोधी करार दिया जा सकता है और उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है!

स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन द्वारा चॉकलेट का सुझाव, कोरोनिल का प्रचार, गुजरात मे गोबर लेपन, गोमूत्र, हवन-मंत्र , गाँवों में महिलाओं द्वारा कोरोना माई के शमन के लिए सामूहिक तौर पर जल चढ़ाना आदि इसी पॉजिटिविटी कैम्पेन का हिस्सा लगता है।

बहरहाल महामारी से लड़ने के लिए सबसे जरूरी है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाय, बीमारी की सच्चाई को स्वीकार किया जाय, सही तथ्यों और आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर ही उससे निपटने की सही नीति स्वास्थ्य विशेषज्ञ निकाल सकते हैं, जिसे उनके मार्गदर्शन में कुशलता, ईमानदारी और संवेदनशीलता से लागू करके ही सरकार महामारी से सफलतापूर्वक लड़ सकती है।

पर यहां तो ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी दिशा ही उल्टी है। जनता की प्राणरक्षा नहीं, अपनी छवि-रक्षा (Image building ) एजेंडा है। कल तक उनके परम् भक्त रहे अनुपम खेर को भी कहना पड़ा, ” छवि बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है जान बचाना। “

The Australian ने मोदी और केंद्र सरकार के बारे में लिखा, ” अहंकार, अतिराष्ट्रवाद और नौकरशाही अक्षमता ने मिलकर भारत में इस विराट आपदा को जन्म दिया है ।” यह बात योगी ( जिन्हें अनेक हिंदुत्व समर्थक मोदी जी का उत्तराधिकारी मानते हैं ) के उप्र मॉडल पर भी समान रूप से लागू होती है।

बहरहाल, महामारी नियंत्रण की नाकामी ने राजनीतिक कीमत वसूलना शुरू कर दिया है। किसान आंदोलन और कोविड की तबाही ने मिलकर उप्र पंचायत चुनावों में भाजपा को 2019 की प्रचण्ड जीत और 2017 विधानसभा की 70% सीटों के भारी बहुमत से जिला-पंचायत की 30% सीटों पर पहुंचा दिया है, दूसरे स्थान पर। उल्लेखनीय है कि मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी, योगी जी के गृहक्षेत्र गोरखपुर, धर्मनगरी अयोध्या, मथुरा, प्रयागराज में भी भाजपा की करारी हार हुई है। प. बंगाल चुनाव परिणाम से उत्साहित किसान नेताओं ने भी हुंकार भरी है कि बंगाल के बाद उप्र अब उनका अगला निशाना है।

माननीय उच्च न्यायालय के शब्दों में यह जो उप्र में नरसंहार हो रहा है, जनता उसे याद रखेगी और समय आने पर उसका हिसाब चुकता करेगी ।

( लेखक लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं )

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments