कोरबा/बालकोनगर (पब्लिक फोरम)। एल्युमिनियम नगरी बालको नगर की निराली छटा हर साल की तरह ठंड बढ़ने के साथ ही और निखरने लग जाती है जिससे आकर्षित होकर जंगली जानवर भी यदा-कदा कालोनियों में आ धमकते हैं। ऐसा लोग बताते हैं। हालांकि नगर प्रशासन ने जंगली जानवरों से सावधान करने वाले होर्डिंग-पोस्टरों से नगर को सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है, भले ही इस कार्य के लिए भारी भरकम खर्च क्यों न करनी पड़े। अब इससे नगर वासियों को जंगली जानवरों से सुरक्षा मिलती है या नहीं यह तो नगर प्रशासन वाले ही जाने।
नगर के आवासीय क्षेत्रों की बात करें तो नगरवासी एक तरफ तो जंगली जानवर खास तौर से भालू आदि से खौफ खाए रहते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ कालोनियों में मच्छरों के प्रकोप से व तेज हमलों से हलकान हैं। डेंगू, मलेरिया, फाइलेरिया, जीका वायरस, चिकनगुनिया, इंसेफेलियासिस जैसी कई मच्छर जनित संभावित खतरनाक बीमारियों की रोकथाम के लिए नगर प्रशासन के समुचित प्रयासों की बाट जोहते हुए बालको का श्रमिक परिवार उकता गया है, सब्र का घड़ा बस फूटने ही वाला है। विगत लंबे समय से कर्मचारियों की आवासीय परिसर में मच्छरों की रोकथाम के लिए धुआं करने वाला फॉगिंग अथवा एंटी लारवा का छिड़काव जैसे प्रयोगों का उपयोग ही नहीं किया जा रहा है।
जबकि अधिकारियों के आवासीय परिसर में नियमित अंतराल में मच्छर विनाशक उपायों का उपयोग किया जाता है। वैसे नगर की सुरक्षा, साफ-सफाई, सौंदर्यीकरण और जन स्वास्थ्य के सवाल पर सजग रहते हुए बिना कोई कोताही के, बिना कोई भेदभाव के, मुस्तैदी के साथ बालको के नगर प्रशासन को अभी और तेज चलने की जरूरत है।
कर्मचारी परिवार की ओर से तो यही कहा जाता है कि इन सब सारे परेशानियों से उबरने के बाद ही रोजी-रोटी, विकास, व्यापार और रोजगार के सवाल पर अमन चैन के साथ हम आगे सोच पाएंगे कि सच में बालको देश की शान है?
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