कोरबा/बालकोनगर (पब्लिक फोरम)। ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच बालको के तत्वाधान में दो दिवसीय हड़ताल को सफल करने के लिए बालको के कर्मचारी आज 28 मार्च के प्रथम पाली से ही हड़ताल में शामिल हो गए। संयुक्त मंच के घटक दल इंटक, एटक, सीटू, एस एम एस, ऐक्टू एवं सहयोगी यूनियनों के साथ भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) में प्रथम पाली से ही ‘जनता बचाओ देश बचाओ’ के नारे के साथ ही केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी, किसान विरोधी जनता विरोधी एवं देश विरोधी नीतियों के विरोध में बालको के कर्मचारी दो दिवसीय हड़ताल को सफल बनाने बालको के मटेरियल गेट के सामने पंडाल लगाकर जोरदार नारेबाजी के साथ हड़ताल आंदोलन की शुरुआत की।
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बताते चलें कि देश के 10 से अधिक केंद्रीय ट्रेड यूनियनों केंद्र राज्य सरकार बैंक बीमा दूरसंचार रक्षा संगठित असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों व मजदूर संगठनों ने 11 नवंबर को नई दिल्ली में आयोजित खुले राष्ट्रीय सम्मेलन के जरिए केंद्र की वर्तमान सरकार की श्रमिक किसान एवं आम जनता विरोधी नीतियों के खिलाफ 28 व 29 मार्च को 2 दिन की देशव्यापी हड़ताल का निर्णय लिया है हम बाल्को कोरबा सहित छत्तीसगढ़ के समस्त मजदूर किसान कर्मचारी साथियों आम नागरिक नागरिकों से इस हड़ताल की कार्यवाही का समर्थन करते हुए इसे पूरे प्रदेश में पुरजोर ढंग से सफल बनाने की अपील करते हैं।
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हम देश के अन्नदाता किसान साथियों और किसान संगठनों की अभूतपूर्व एकता को सलाम करते हैं जिन्होंने केंद्र सरकार द्वारा उनकी मर्जी के विपरीत उनके समर्थन मूल्य पर उपज की खरीदी के अधिकार समाप्त कर बड़े पैमाने पर खेती की जमीन को भी कारपोरेट के हवाले करने वाले तीन काला कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए एकता बंद ऐतिहासिक संघर्ष को कुचलने के लिए सरकार के द्वारा चलाए गए तमाम घृणित दुष्प्रचार और हमलों का मुकाबला करते हुए 750 से अधिक साथियों की शहादत के बाद मोदी सरकार को इन काले कानून को वापस लेने के लिए बाध्य कर एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की ट्रेड यूनियनों की संयुक्त मंच ने किसानों के इस आंदोलन के साथ प्रत्येक कदम पर एकजुटता की कार्यवाही संगठित की। निश्चय ही इससे भारत का निर्माण करने वाले मजदूर किसान की एकता का नया अध्याय लिखा गया। किसानों की एक तानाशाही सरकार पर विजय हासिल हुई इस जबरदस्त जीत ने देश के सभी जनवादी आंदोलन को एक नई ताकत दी है निश्चित हम इसके लिए किसान आंदोलन का अभिनंदन करते हैं।
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केंद्र की वर्तमान सरकार ने जिस तरह से किसानों के विरोध के बाद भी काले कृषि कानून पारित किए थे ठीक उसी तरह देश के श्रमिक वर्ग के कड़े विरोध के बावजूद मजदूरों द्वारा लंबे संघर्ष के बाद हासिल किए गए 29 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिता में बदलकर संसदीय बहुमत का दुरुपयोग कर विपक्ष की आवाज को कुचल कर संसद में इसे पारित करा लिया गया इस कदम के जरिए मजदूरों के सारे अधिकार छीन कर केंद्र सरकार ने वास्तव में श्रमिकों को फिर एक बार गुलामी की जंजीरों में जकड़ ने और मालिकों के हाथों बदहाली की ओर धकेल दिया है।
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यह सब कोरोना की महामारी के दौर में अर्थव्यवस्था की बदहाली कारखाना बंदी शर्म बेरोजगारी आम जनता और मजदूरी के अभाव में घटती क्रय शक्ति प्रवासी मजदूरों की दयूय जीनीय स्थिति के दौर में आपदा को अवसर में बदलने के नाम पर किया जा रहा है। पेट्रोल डीजल घरेलू गै⁷⁸स आवश्यक खाद्य वस्तुओं की बेलगाम कीमतों में वृद्धि ने स्थिति को और भी भयानक बना दिया है ऐसे समय लोगों को नगद सहायता देकर उनकी आजीविका और साथ ही ओ की बजाय सरकार आत्मनिर्भर भारत के नारे पर आत्मनिर्भरता की बुनियाद देश के सभी सार्वजनिक क्षेत्र की नीलामी कर रही है।
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बैंक बीमा कोयला रक्षा इस्पात ऊर्जा रेल भेल सेल दूरसंचार आदि हर क्षेत्र के सार्वजनिक संस्था जिनका देश की जनता की गाढ़ी कमाई से निर्माण हुआ है। उसे अपने पूंजीपति मित्रों को विनिवेशी करण और निजी करण के नाम पर कौड़ियों के मोल बेचने केंद्र की सरकार देश विरोधी अभियान चला रही है।
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यहां तक कि मोदी सरकार ने ‘राष्ट्रीय मुद्रा परियोजना’ ( National monetization pipeline ) के नाम पर देश की संपत्ति को एक तरह से मुफ्त में देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हवाले कर दिया है।
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