रायपुर (पब्लिक फोरम)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने आज कांग्रेस सरकार द्वारा पेश बजट को ‘गोबर गणेश बजट’ करार दिया है, जिसमें न अपने चुनावी वादों को पूरा करने की झलक है और न ही प्रदेश की गरीब जनता की समस्याओं से टकराने का साहस।
आज यहां जारी बजट प्रतिक्रिया में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि का अनुमान इसलिए गलत है कि रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना काल में आजीविका को हुए नुकसान के कारण प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय में 4% की गिरावट आई है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था मंदी की शिकार है और इस पर काबू पाने के लिए मनरेगा के सही क्रियान्वयन और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, खासकर योजनकर्मियों के मानदेय में वृद्धि के बारे में चुप है।
रसोईया मजदूरों को पिछले बजट में घोषित बढ़ा मानदेय अभी तक नहीं मिल रहा है, जबकि उच्च न्यायालय ने अभी-अभी उन्हें कलेक्टर दर पर मजदूरी देने का आदेश जारी किया है। बेरोजगारों को भत्ता देने के अपने चुनावी वादे पर यह सरकार आज भी मौन है। स्वास्थ्य मानकों पर नीति आयोग के अनुसार छत्तीसगढ़ 10वें स्थान पर है और कोरोना संकट के दौरान हमने निजी क्षेत्र की लूट देखी है, इसके बावजूद सरकार अभी भी भर्ती-भर्ती का खेल खेल रही है, जबकि पिछले तीन सालों में 25000 से अधिक आदिवासी बच्चों की मौत हुई है।
उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना का लागू किया जाना तो स्वागतयोग्य है, लेकिन जब आम जनता की आय गिर रही हो, तब जन प्रतिनिधियों के वेतन-भत्तों में भारी बढ़ोतरी आगामी चुनाव के मद्देनजर ही है। दूसरी ओर, निजीकरण की नीतियों के जरिये आम जनता को मिलने वाली पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं पर भारी टैक्स टैक्स लादने की नीति से पलटने के कोई संकेत यह सरकार नहीं दे रही है।
माकपा नेता ने कहा कि प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की लूट मची हुई है और ग्राम सभाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। यदि सरकार पेसा कानून को लागू करने के प्रति ईमानदार है, तो कॉरपोरेटों को सौंपी गई खदानों को वापस लेने तथा किसानों से अधिग्रहित भूमि को उसे वापस करने की घोषणा करनी चाहिए।
बस्तर के अंधाधुंध सैन्यीकरण पर भी उसे रोक लगाना चाहिए। 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू किये बिना और ग्राम सभाओं की सहमति के बिना आदिवासी क्षेत्रों में 47 स्टील प्लांट बनाने की योजना से इस क्षेत्र में नए तनाव पैदा होंगे और सामाजिक अशांति बढ़ेगी। पिछले बजटों में की गई बड़ी-बड़ी घोषणाएं कितनी पूरी हुई, इस बारे में भी कोई ब्यौरा इस बजट में नहीं मिलता।
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