back to top
रविवार, फ़रवरी 23, 2025
होमUncategorisedकटघोरा कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र के द्वारा जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय...

कटघोरा कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र के द्वारा जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय वेबीनार का हुआ आयोजन


कोरबा//कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कटघोरा के अंतर्गत 3 जुलाई को ’’जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कृषि एवं वानिकी के क्षेत्र में कम करने के लिये रणनीतियाॅं एवं चुनौतियाॅं’’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम उद्घाटन एवं तकनीकी दो सत्रों में किया गया। इसका शुभारंभ सुबह 11 बजे कुलपति महोदय, डॅा. एस.के. पाटील, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा किया गया।

यह कार्यक्रम श्री आनंद मिश्रा जी, श्री बोधराम कंवर जी, बोर्ड मेम्बर, डॅा. आर.के. बाजपेयी (संचालक अनुसंधान सेवायें), डॅा. जी.के. दास (निदेशक शिक्षण), एवं डॅा. एम.पी. ठाकुर, कृषि संकाय, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के विशिष्ट आतिथ्य में संपन्न हुआ।
इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि श्री आनंद मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिस सभ्यता का उपयोग हम कर रहे है उसका आधार ही सेवन है। साथ ही उन्होंने वनों की अनियंत्रित हो रही कटाई एवं प्राकृतिक संसाधनों के उत्खनन से प्रकृति में हो रहे बदलावों पर भी अपनी चिंता जाहिर की, उन्होंने वनीकरण के महत्व पर खास जोर दिया तथा उनके प्रमुख वाक्यः स्माल वल्र्ड इज व्यूटीफूल कह कर अपने वाणी को विराम दिये।

इसके पश्चात श्री बोधराम कंवर ने अपना विचार व्यक्त करते हुये बताया कि प्राकृतिक वनों में जल की गुणवत्ता को सुधारने, शुष्क भूमि में जल संग्रहण को बढ़ाने, भूमि अपरदन को रोकने, जैव विविधता को सुरक्षित करने तथा रोजगार के नये अवसरों का सृजन करने की अधिक क्षमता विद्यमान होती है। तत्पश्चात डॅा. आर.के. बाजपेयी ने ग्लोबल वार्मिंग के लिये उत्तरदायी कार्बन डाई आक्साइड, मिथेन गैस, नाइट््रस आक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के हानिकारक प्रभावों को बताते हुये उनके कारको की भी विवेचना की।

उन्होंने बताया कि हमारे किसान भाई भारी मात्रा में नत्रजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग कर रहें है जो कि एक चिंता का विषय है। उन्होंने इससे निजात पाने के लिये ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण तथा जैव उर्वरक के उपयोग तकनीक पर बल दिया। साथ ही मिथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिये धान के खेतों में जल भराव विधि से बचने की सलाह दी।

तदोपरांत डॅा. जी.के. दास जी ने विदेशों में बढ़ते तापमान के विषय में संक्षेप में प्रकाश डाला एवं उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की फसल सघनता 137 प्रतिशत है। उन्होंने किसानों के लिये महत्वपूर्ण जानकारी साझा की जिसमें छत्तीसगढ़ के मध्यम शुष्क जलवायु के अनुरूप फसलों के चयन के बारे में बात की। इसके पश्चात् डाॅ. एम.पी ठाकुर द्वारा बताया कि जलवायु परिवर्तन का मेजबान – रोगजनक की परस्पर क्रिया पर सीधा प्रभाव पड़ता है जिससे रोगजनक की नई प्रजातियाॅं विकसित हो रही है। जिसके परिणाम स्वरूप फसलों की संवेदनशीलता भी बढ़ रही है।

उन्होंने कहा कि वनोन्मूलन की वजह से कार्बन की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जो कि चिंताजनक है। इसके प्रभाव से बचने के लिये नई फसलों की प्रजातियों के इस्तेमाल पर बल दिया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में डाॅ. अजीत सिंह नयन, संचालक अनुसंधान सेवायें, गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक वि , पंतनगर उत्तराखण्ड द्वारा जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव तथा अनुकुलन रणनीतियां अननाने विषय पर चार्ज किये। ये लगभग 30 वर्षो से जलवायु परिवर्तन एवं कृषि अनुसंधान में शोध कार्य कर रहे हैं। वे भूस्थानिक प्रौद्योगिक एवं जलवायु परिवर्तन पर विशेषज्ञता रखते हैं।

इसके साथ ही इन्होंने समन्वित फसल प्रणाली पर भी जोर दिया। तत्पश्चात डॅा. एम.डी. ओसमान, अध्यक्ष पी.एम.ई. जो कि केन्द्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान हैदराबाद, तेलंगाना में विगत 35 वर्षो से बारानी कृषि पर कार्यरत हैं इन्होंने जलवायु परिवर्तन एवं वर्षा आधारित फसल प्रणाली के बारे में विस्तारपूर्वक अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कृषि प्रौद्योगिकी अनुपयोग अनुसंधान संस्थान, के आधार पर कृषि विज्ञान केन्द्रों को विभाजित किया तथा किसानों की क्षमता बढ़ाने व उन्हें सशक्त करने पर बल दिया।

इसके उपरांत डॅा. एस.एस. नारखेड़े, निदेशक कृषि संकाय डॅा. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ दापोली द्वारा जलवायु परिवर्तन एवं वानिकी विपरित प्रभाव को संक्षिप्त में समझाया गया। साथ ही साथ उन्होंने विभिन्न प्रजातियाों के विलोपित होने की विस्तृत जानकारी प्रदान की एवं प्रलयों के उतपत्ति का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया। उन्होंने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से इनके प्रबंधन के लिये कार्बन का निर्धारण वनों में वृद्धि प्राकृतिक संसाधन का उपयोग जिसे पुनः चक्रीकरण किया जा सके एवं फसल के अवशेषों का बुद्धिमता से उपयोग करने जैसे कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं को चिन्हित किया।

इसके उपरांत डॅा. संजीव चैहान, विभागाध्यक्ष वानिकी, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा कृषि वानिकी पर अपने बहुमूल्य विचार किये गये। अंत में डॅा. आर.के. प्रजापति, प्राध्यापक वानिकी द्वारा जलवायु परिवर्तन का आदिम जनजातियों की अजीविका पर पड़ने वाले प्रभाव एवं समाधान विषय पर अपने विचार व्यक्त किये गये।
इस कार्यक्रम का आयोजन डॅा. एस.एल. स्वामी, आयोजक सचिव एवं अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कटघोरा, कोरबा के निर्देशन में किया गया। महाविद्यालय द्वारा इस एक दिवसीय वेबीनार का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। अंत में डॅा. तरून ठाकुर, विभागाध्यक्ष पर्यावरण विज्ञान, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातिय विश्वविद्यालय, अमरकंटक द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया।

इस कार्यक्रम का संचालन डॅा. अभय बिसेन एवं डॅा. योगिता कश्यप द्वारा किया गया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के वैज्ञानिक श्री जी.पी. भास्कर, अतिथि शिक्षक डॅा. हरिशचन्द्र दर्रो, कु. सोनाली हरिनखेरे, कु. पायल ब्यास, कु. आंचल जायसवाल, कु. मधु कुमारी, कु. रूपारानी दिवाकर, श्री परमिन्दर सेनी, श्री संजीव गुर्जर भी उपस्थित थे।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments